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DEVADHIDEV MAHADEV देवाधिदेव महादेव A RELEGIOUS STORY

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  देवाधिदेव  महादेव  ब्रह्मांड का एक  सम्पूर्ण और सशक्त  नाम है। जो अजन्मा अविनाशी  और काल से परे है। इस  पौराणिक कथा  मे भगवान भोलेनाथ की एक ऐसी कथा का वर्णन है जो अपने आप मे अद्वितीय  है।    भगवान भोलेनाथ की सबसे प्रिय नगरी काशी  मे एक   ब्राह्मण रहता  था।  भगवान भोलेनाथ की कृपा से ब्राह्मण के पास किसी तरह की कोई  कमी नही थी। दोनो दम्पति  भगवान  भोलेनाथ की  पूजा अर्चना  मे अपने आप को समर्पित कर दिये थे  ।बहुत दिन बीत गये उम्र अब  ढालान के अवस्था तक आ पहुंची। पर उन्हे संतान सुख से बंचित  रहना पड  रहा था। बढती उम्र के साथ साथ उन्हे  संतान न होने का दुख भी सता  रहा था।  निसहाय सा वह ब्राह्मण रोज भगवान शिव के दरबार मे जाकर धंटो भगवान भोलेनाथ के पवित्र  लिंग  को निहारता  रहता  था। दिल के  किसी कोने मे एक आशा की  किरण  जिन्दा थी कि भगवान एक न एक दिन मेरी अर्तरात्मा की  आवाज  सुनेगे।                                                               दिन पर दिन बीतते गये  पर ब्राह्मण के सेवा शुशुर्षा और आशा मे कोई  कमी नही आई। वह सदा की भाँति  निरन्तर धंटो  तक भगवान भोलेनाथ के  पवित्र  लिंग  स्वर

MAA YASHODA KA VATASHALAYA PREM मां यशोदा का वात्सल्य प्रेम A RELIGIOUS STORY

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मां  यशोदा के वात्सल्य प्रेम  का एक चित्रण कहानी  के रुप  मे  प्रस्तुत  कर रहे  है। किस  तरह  भगवान कृष्ण   मां  यसोदा को अपने  प्रेम  जाल मे उलझा कर उन्हे  चरम सुख  की अनुभूति  दे  रहे हैं।  कभी भगवान के चलते  उनकी  जीवन  न इया  किस  तरह  डगमगा  जाती  है। मां और बेटे के बीच  अगाध प्रेम की  झलक  स्पष्ट  दिखाई  देती है  । यह लघु कथा प्रसंग  सत्संग  से  लिया  गया है।            त्योहार का दिन था  मां यशोदा ने अपने दास  दासियो को काम बांट दिया  था।  कोई  साफ सफाई  मे  जूटी  थी, तो  कोई गायो की सेवा  मे लगी  थी।  उन्हे कुछ न कुछ  काम देकर  मां यशोदा  स्वयं  कृष्ण के लिए  विशेष  मक्खन  निकालने की  तैयारी  कर  रही  थी  ।उसी  समय कृष्ण  को  स्तन  पान करने की इच्छा  हुई। और वह थोड़ी  सी  हल्की  सी  मुस्कराहट  लिए  मां की  तरफ  बढ़  रहे थे। थोड़े  उजले  बादलो के  बीच   चांद कुछ छुपा हुआ दिखता है उस समय की  सुन्दर छवि कुछ  देखने लायक  होती है।  उसी  तरह  बालक  कृष्ण की  मुखार छवि   दिख  रही  है  जिसे  देख कर  मां  यसोदा इतनी  गदगद और  बेसुध  हो जाती  है कि मक्खन पात्र  मे से  मक्खन निकालने के  ब

RAJA VIKARMADITYA राजा विक्रमादित्य A Religious Story

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राजा  विक्रमादित्य   एक ऐसे  राजा  थे। जिनका  नाम  राजाओ के  श्रेणी मे सबसे उपर  आता है ।  मानव तो मानव ही है  देवता, दानव  भी उनकी  इज्जत  करते थे। यहां तक  की  वे पशु  पंछी और जानवर  तक की  भाषा  समझने  मे  पारांगत  थे  । उनके जीवन की एक सच्ची  घटना जो  पौराणिक  कथाओ  मे  प्रसिद्ध  है। पूर्व काल मे एक बार  लक्ष्मी  और धर्मराज मे  श्रेष्ठता  को लेकर  बहस  हो  गई। धर्म  बोल रहे थे  मै  बड़ा,  और लक्ष्मी  बोल रही थी  मै बड़ी, दोनो मे इस बात को लेकर  इतनी  बहस हुई की दोनो सही का  स्थिति  पाने के लिए  देवताओ के  राजा  इंद्र के  यहां पहुचे। बहुत देर  बिचार  करने के बाद  इंद्र ने  सोचा  इनके  पचेडे  मे पडने  के बजाय   इनसे  छुटकारा  पाने  मे ही  भलाई  है। कुछ देर  बाद  इंद्र  ने  कहा " आप दोनो  महान   व्यक्तित्व  वाले  देवता  हो  आप दोनो के बारे मे  सही निर्णय  लेना  मेरे  बस   कि  बात नही।                                      आप दोनो पृथ्वी  पर जाइए  वहां  एक  बहुत ही प्रतापी  और धर्म निष्ठ  राजा  है उनका  नाम  राजा  विक्रमादित्य है। वहां आपको  सही  न्याय  सही  फैसला  मिलेगा  ।       

JO BHI HOTA HAI AACHE KE LEA HE HOTA HAI जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है A MOTIVATIONAL STORY

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  मनुष्य की  ज़िन्दगी मे कुछ ऐसा  समय  आ  जाता है,कि   मनुष्य को मजबूरन  उस  तथ्य  को  मानना  ही  पडता  है। प्रकृति  उस  बात का   स्वयं   आभास  दिलाती है। ऐसे ही एक तथ्य  को उजागर  करती एक  लोक कथा  प्रस्तुत   की जा रही है  ।                                                     एक बार एक राजा अपने मंंत्री के साथ शिकार खेलने जंगल मे जाता है। कई  दिन वहां  रुक कर शिकार का आनंद लेता है  ।किसी कारण वश एक दिन  राजा की एक अंगुली कट जाती है  सान्त्वना  देने के बजाय उनका मंत्री  कहता है कि  जो भी होता है वह अच्छे के लिए  ही होता है    उस वक्त   राजा को बहुत  क्रोद्ध  आता है  पर  वह अपने क्रोद्ध  को काबू  कर लेता है  । फिर जब वह अपने  राज्य  वापस आता है तो अपने  मंत्री के उस  शब्द  को याद करता है  और एक दिन अपने उस मंत्री को काम पर से निकाल देता है। जो ऐसे परिस्थिति  मे उसका  उपहास  उडा़ता  है। और उसको  सान्त्वना देने के बजाय  उसका मनोबल  तोड़ने  वाला  शब्द  बोलता  है । यह सोच कर कि ऐसा  मंत्री  कभी  मेरा हितैषी  न ही  हो सकता। वह दूसरा मंत्री नियुक्त  कर देता है।                               

RAM BAN GAMAN

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होइहे  सोई  जो  राम रची  राखा । को करि  तरक  बढावहु  शाखा  ।।   जो नियति  ने  लिख दिया  है। उसे कोई  मिटा भी नहीं पायेगा । कभी कभी ऐसा लगता है कि  मनुष्य  अपने सामर्थ्य  से  भाग्य को  बदल  सकता है।  लेकिन  श्री  रामायण की  यह  पत्तियाँ  यह सत्य  साबित  करती है कि  नही जो  विधि  ने लिख  दिया  है ,उसे  बदलना  किसी और के  बस की  बात  नही है।                                  पवित्र  अयोध्या  नगरी    मे  हर्ष उल्लास  का  माहौल  बना  हुआ  है। प्रजा  हर तरह के  सुख  का   आनंद  उठा  रही  है  राजा दशरथ  जी की  ख्याति  चारो  दिशाओ  मे गुंज  रही थी  एक दिन  राजा अपने  रंग  महल  मे   विश्राम  कर रहे थे। उनके  मस्तिष्क मे राम के  प्रति  कुछ  विचार  चल रहे  धै ।वे सोच  रहे थे  कि  राम अब एक  युवा  हो गये हैं  ।हर तरफ  से निपुण  और  योग्य  हो गये हैं ।क्यो न उनको   राज्य  पाठ  देकर  थोड़ा  विश्राम  किया  जाय।  बहुत तरह से  सोच  विचार करने के उपरान्त उन्होने  यह निर्णय   लिया कि   इस विषय को  गुरूजनो एंव आत्म जन सभासदो के बीच  प्रस्ताव  स्वरूप  रखा जायेगा ।दुसरे दिन जब राजा  दशरथ का  दरबार  लगा तो इस