MAA YASHODA KA VATASHALAYA PREM मां यशोदा का वात्सल्य प्रेम A RELIGIOUS STORY


मां  यशोदा के वात्सल्य प्रेम  का एक चित्रण कहानी  के रुप  मे  प्रस्तुत  कर रहे  है। किस  तरह  भगवान कृष्ण   मां  यसोदा को अपने  प्रेम  जाल मे उलझा कर उन्हे  चरम सुख  की अनुभूति  दे  रहे हैं।  कभी भगवान के चलते  उनकी  जीवन  न इया  किस  तरह  डगमगा  जाती  है। मां और बेटे के बीच  अगाध प्रेम की  झलक  स्पष्ट  दिखाई  देती है  । यह लघु कथा प्रसंग  सत्संग  से  लिया  गया है।           
त्योहार का दिन था  मां यशोदा ने अपने दास  दासियो को काम बांट दिया  था।  कोई  साफ सफाई  मे  जूटी  थी, तो  कोई गायो की सेवा  मे लगी  थी।  उन्हे कुछ न कुछ  काम देकर  मां यशोदा  स्वयं  कृष्ण के लिए  विशेष  मक्खन  निकालने की  तैयारी  कर  रही  थी  ।उसी  समय कृष्ण  को  स्तन  पान करने की इच्छा  हुई। और वह थोड़ी  सी  हल्की  सी  मुस्कराहट  लिए  मां की  तरफ  बढ़  रहे थे। थोड़े  उजले  बादलो के  बीच   चांद कुछ छुपा हुआ दिखता है उस समय की  सुन्दर छवि कुछ  देखने लायक  होती है।  उसी  तरह  बालक  कृष्ण की  मुखार छवि   दिख  रही  है  जिसे  देख कर  मां  यसोदा इतनी  गदगद और  बेसुध  हो जाती  है कि मक्खन पात्र  मे से  मक्खन निकालने के  बजाय   मक्खनपात्र    मे से  निकाला  हुआ  मक्खन  भी   पुनः   मक्खन पात्र  मे  डाल  रही है।  कृष्ण  मां को इस तरह  वात्सल्य  मे  डुबा  देखकर   और ज्यादा  मुस्कराते  है  ।उस समय उनके  सिर के  घुघराले  बाल कभी  कभी  उनके कमल जैसे नेत्रो   को  ढक  देते  है। फिर कृष्ण भी एक कुशल  हठी बालक की तरह उन बालो के  बीच  से  ही मां यशोदा के  उस  मनो दशा को  ऐसे  निहारते  हे। जैसे  जानबुझ  कर मां यशोदा को उस  मनोदशा  मे  देखना  चाहते  है।  फिर थोड़ा  मां के करीब  आकर  एक  हल्की  सी  किलकारी  मारते  हुए  वहां  से  भागने  का  प्रयास  करते  है। मां अपने  मजबूत  हाथो  से  पकडने  की  कोशिश  करती  है। और किसी  हद्  तक  पकड़  भी लेती  है पर  बालक  कृष्ण  इतने  शरारती  है कि  मां के  हाथो के  पकड़  को  भी छुडा़ कर  भागने मे  सफल  हो जाते  है, फिर  क्या  मां और   बेटे  के  बीच  एक होड़  सी  लग  जाती है  कभी  मां यशोदा उन्हे  पकड़  लेती  तो कभी कृष्ण  अपनी  कुशाग्र  बुद्धि  से  अपने  आप को  छुडा़  लेते है   मां और बेटे के इस अनुठे  खेल  को देख कर  दास दासियां  बहुत  आनंदित  होती है।   थोड़ा  मां से  खिलवाड़ करने के बाद भगवान  श्री कृष्ण स्तन  पान  करने  लगते हैं    भगवान श्री कृष्ण को स्तन पान करते देख दुध को जलन  होने  लगती है। वह सोच  रहा है कि  मां यशोदा का स्तन पान करके ही भगवान श्री कृष्ण संतुष्ट  हो जायेगे  तो  मुझे कौन पियेगा। यह सोच कर  बहुत दुखी  होता है  और अपने  अन्दर  आत्मगलानी  महसूस  करता है कुछ देर बाद  उसे कोई  रास्ता नजर  नही आता है तो  वह आत्म दाह की  सोचता है  ।अपने अंदर आवश्यकता से अधिक  उबाल  लाकर  वह अग्नि  प्रवेश  कर जाना  चाहता है  उधर मां यसोदा कृष्ण को  स्तन पान  करा रही होती है पर उनकी  नजर  बराबर  दुध पर रहती है  कही गीर न जाए  ।और फिर दूध ने वैसे ही  किया।मां यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण को  स्तन पान कराना  छोड़ कर  दुध को अग्नि प्रवेश करने से बचा लिया । इस कृत्य को देख कर  भगवान  श्री कृष्ण बहुत नाराज होते है। और मां यशोदा के  विशेष  गृह मे रखे  माखन के  पात्रो को तोड़ते  है और माखन को  नुकसान पहुचाते  है। कुछ देर बाद मां  यशोदा  भगवान कृष्ण को ढुढते  हुए  वहां  पहुंचती  है तो वहां की दशा देखकर  आग बबुला  हो उठती  है। और एक छोटी  छडी़  लेकर  भगवान कृष्ण के पीछे  पीछे  भागती   है।  बेटा आगे आगे  मां पीछे  पीछे  ये सिलसिला  कुछ देर  तक  चलता है दुनिया के  मालिक  जो  दुनिया  को भगाते है आज सच मे खुद ही भागरहे है  । जब भगवान कृष्ण  देखते हैं कि  मां अब थक चुकि  है  तो  एक जगह खड़ा  होकर  खुद  रोने  लगते हैं  मां तो  मांं होती है  ।वो सब कुछ  बर्दास्त कर  सकती है  पर  अपने  बच्चे  का रोना  उससे  बर्दास्त नही होता  वहां  भी कुछ  ऐसा  ही  हुआ । भगवान कृष्ण को  रोता देख,  मां  छडी़ फेक  कर  भगवान कृष्ण को गले लगा कर खुद  रोने  लगी।  कुछ  समय  बीता  तो  मां  बोली ठहर , तुने  रो  कर जीतने  का  ठीका  लिया  है तू ने  गल्ती  किया  तूझे  सजा तो  जरुर  मिलेगी  । फिर  मां  वही पडी़  एक ओखल  मे  बांध  देती है  । भगवान कृष्ण  लाख  गिड़गिडा़ते है  पर, मां  यशोदा  एक  नही  सुनती।  मां के  इस कृत्य  का  कृष्ण  ने  फायदा  उठाया। पास मे ही दो  पेड़ है जो  कुबेर पुत्र नील कुवर और  मनी ग्रीक  है। जो शाप  के  कारण  पेड़  बन  गये थे।  भगवान  कृष्ण ओखल  खीचते  खीचते  दो पेड़ के बीच  से  निकल जाते हैं। और ओखल दोनो  पेड़ के बीच  फंस  जाती है और भगवान श्री कृष्ण के द्वारा  थोड़ा  सा खिचने  पर  टूट  जाते  है  और वे दोनो पेड़ शाप  से    मुक्त  हो जाते  है।    

दोस्तो कहानी  प्रसंग  कैसा लगा कमेन्ट सैक्सन मे जरुर  बताइये  ताकि हम आप के लिए अच्छी  सी  अच्छी   कथा प्रसंग  ला  सके। लेखक  -भरत गोस्वामी 

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