MAHA SHIVRATRI महाशिव रात्रि
देवो के देव महादेव की महिमा का गुणगान करना आसान नही है, प्रभु अपनी लीलाओ द्वारा कई जीवनोपयोगी ज्ञान का अनुभव कराये है। भगवान चंद्रेशेखर के क ई रुप है। हर रुप मे भगवान ने अपनी लीला का प्रदर्शन करके लोगो को कुछ ना कुछ सिख दी है। इस पवित्र पावन कथा मे भी भगवान भोलेनाथ ने परोपकार का कितना पुण्य होता है, उसके महत्व को बताया है ।
एक शिकारी एक दिन शिकार खेलते खेलते घने जंगल मे पहुंच जाता है। बहुत समय बीत गया पर कोई भी शिकार नही मिला। कुछ समय बाद एक हिरणी दिखाई दी जो अपने खोई हुई बच्ची को ढुढ रही थी। शिकारी सर्तक होकर अपने धनुष पर वाण को चढाता है। तब तक हिरणी की नजर उस पर पढ जाती है ।और वह कहती है "मुझे आप मत मारो मै बहुत दुखी हुं मेरी बच्ची कही खो गयी है मै उसे ढुढ रही हुं ।उसके मिलते ही बच्ची को उसके पिता के हवाले करके मै स्वतः आप के पास आ जाउगी। फिर आप मुझे मार देना शिकारी को उस हिरणी पर दया आ जाती है और वह उसे नही मारता है। हिरणी चुप चाप चली जाती है। देर समय बाद जब हिरणी नही आती है तो शिकारी अपने आप पर क्रोधित होता है और कहता है कि मेरे बच्चे देर हो जाने से भुख से ब्याकुल होंगे ।यह मैने क्या कर दिया ।अपने ही हाथ से अपने ही पैर पर कुल्हाडी मार लिया । वह अपने आप पर क्रोधित होकर जिस बेल के पेड़ पर बैठा रहता है उस पेड़ के पत्ते (बेल पत्र) तोड़ तोड़ कर जमीन पर फेकता है। कुछ समय बाद उसे एक और हिरणी दिखाई देती है वह सर्तक होकर बैठ जाता है जब हिरणी कि नजर उस शिकारी पर पड़ती है तो हिरणी शिकारी की बहुत करीब ज़ाकर कहती है। " मुझे मत मारना मै बहुत दुखी हुं । मेरा परिवार मुझसे बिछड़ गया है। मेरे माता पिता दोनो चिन्तित होगे मै उनको ढुढने निकली हुं ,उनके मिलते ही मै आप के यहां चली आउगी। फिर आप मुझे मार देना। इतनी कृपा यदि आप हम पर कर सको तो आप की बहुत बडी कृपा होगी। हिरणी के दयनीय बचन को सुन कर शिकारी का मन करूणा से भर गया। उसने हिरणी को जाने को कहा । हिरणी चली गई । पुरी रात बीतने को आई ।जब दोनो हिरणी मे से एक भी नही आई तो शिकारी समझ गया कि दोनो ने मुझे बेवकूफ बनाया। और फिर क्रोद्ध मे वह अपने आप को कोसने लगा। और बेलपत्रो को जमीन पर फेकने लगा। थोड़ी देर बाद उसे एक हिरण दिखाई दिया। और शिकारी ने उसके उपर बाण तान दिया। जब हिरण की नजर शिकारी पर पडी़ तो, हिरण बड़े ही दयनीय भाव से बोला " मेरी पत्नी और बच्ची कही खो गयी है । मैं उनको ढुढ रहा हूँ। मै बहुत दुखी हुं आप मेरा विश्वास किजीए वे लोग जो से ही मिल जाते है तो उनसे मील कर मै आपके समक्ष उपस्थित होता हूं । शिकारी क्रोद्ध मे लाल पिला हो जाता है ।और कहताहै " नहि मै तुम्हारे उपर भरोसा नही कर सकता " "मै तुमसे पहले दो हिरणी को बक्स चुका हूं ।वे लोग ने भी मिथ्या बादा करके मुझे वेवकूफ बनाया ।मै अब तुम पर विश्वास नही कर सकता हूँ। " पर ना जाने उसके दिल मे हिरण के प्रति दया उमड पडी़ और वह हिरण से बोला " जाओ पर अपनी जबान से मत फिरना" तब हिरण वहां से चला जाता है ।जब बहुत समय बीत जाता है , और कोई नही आता है तो शिकारी अपने आप को कोसता हुआ पेड़ से नीचे उतरता नीचे उतरता है। और मन ही मन कहता है कि हे प्रभु मेरे बच्चे भुख से विलख रहे होगे । मै खाली हाथ उनके समक्ष कैसे जाऊंगा। वह अपने आप को कोस ही रहा था कि उसकी नजर एक दिव्य प्रकाश की तरफ जाती है। वह तेजी से उस दिव्य पूंज की तरफ पहुंचता है। और देखता है कि यहां तो एक दिव्य शिवलिंग है। वह शिव लिंग को आलिंगन मे ले लेता है और कहता है कि प्रभु मै क्या करू मेरा दिमाग काम नही कर रहा है। प्रभु आप मेरा उचित मार्ग दर्शन करे। इतने मे देखता है कि वायदे के अनुसार वे तीनो हिरण सामने खडे़ है। और शिकारी से कहते है "वायदे के अनुसार हम लोग आ गये अब आप अपना वायदा पूरा कर सकते हैं ।" भक्त वत्सल भगवान भोलेनाथ के प्रतिक शिव लिंग को आलिंगन करके शिकारी का मन इतना स्वच्छ हो गया है कि वह कहता है कि मेरा परिवार भले भूख से मर जाय, पर मै आप लोगो का वध नही कर सकता। वह उन्हें शीध्रात शीध्र वहां से चले जाने के लिए कहता है। इतने मे भक्त वत्सल भगवान भोलेनाथ प्रकट होते हैं और शिकारी से कहते हैं कि मै तुम्हारे इस निश्चल प्रेम से बहुत प्रसन्न हूं मेरा आलिंगन करके जो प्रेम तुमने दर्शाया है। तुम्से मै बहुत प्रसन्न हूं ।अब तुम्हारी जिंदगी मे किसी तरह का कोई कष्ट नही आयेगा। आज महा शिव रात्री का दिन है। आज के दिन तुमने क्रोध मे ही सही पूरी रात बेल पत्र जो मुझ पर चढाये है।वह बहुत ही उत्तम फल को देने वाला है। मै तुम्हे बचन देता हूं कि आज के बाद तुम्हारे ज़िन्दगी कोई कष्ट नही आयेगा। यह तुम्हारी हमारी पवित्र कथा का पठन पाठन और श्रवण करेगा, उसके सारे कष्ट दूर हो जायेगे । दोस्तो यह लोक कथा आप लोगो को कैसा लगा कमेंट बाक्स मे जरूर लिखियेगा लेखक भरत गोस्वामी मुम्बई , भारत
एक शिकारी एक दिन शिकार खेलते खेलते घने जंगल मे पहुंच जाता है। बहुत समय बीत गया पर कोई भी शिकार नही मिला। कुछ समय बाद एक हिरणी दिखाई दी जो अपने खोई हुई बच्ची को ढुढ रही थी। शिकारी सर्तक होकर अपने धनुष पर वाण को चढाता है। तब तक हिरणी की नजर उस पर पढ जाती है ।और वह कहती है "मुझे आप मत मारो मै बहुत दुखी हुं मेरी बच्ची कही खो गयी है मै उसे ढुढ रही हुं ।उसके मिलते ही बच्ची को उसके पिता के हवाले करके मै स्वतः आप के पास आ जाउगी। फिर आप मुझे मार देना शिकारी को उस हिरणी पर दया आ जाती है और वह उसे नही मारता है। हिरणी चुप चाप चली जाती है। देर समय बाद जब हिरणी नही आती है तो शिकारी अपने आप पर क्रोधित होता है और कहता है कि मेरे बच्चे देर हो जाने से भुख से ब्याकुल होंगे ।यह मैने क्या कर दिया ।अपने ही हाथ से अपने ही पैर पर कुल्हाडी मार लिया । वह अपने आप पर क्रोधित होकर जिस बेल के पेड़ पर बैठा रहता है उस पेड़ के पत्ते (बेल पत्र) तोड़ तोड़ कर जमीन पर फेकता है। कुछ समय बाद उसे एक और हिरणी दिखाई देती है वह सर्तक होकर बैठ जाता है जब हिरणी कि नजर उस शिकारी पर पड़ती है तो हिरणी शिकारी की बहुत करीब ज़ाकर कहती है। " मुझे मत मारना मै बहुत दुखी हुं । मेरा परिवार मुझसे बिछड़ गया है। मेरे माता पिता दोनो चिन्तित होगे मै उनको ढुढने निकली हुं ,उनके मिलते ही मै आप के यहां चली आउगी। फिर आप मुझे मार देना। इतनी कृपा यदि आप हम पर कर सको तो आप की बहुत बडी कृपा होगी। हिरणी के दयनीय बचन को सुन कर शिकारी का मन करूणा से भर गया। उसने हिरणी को जाने को कहा । हिरणी चली गई । पुरी रात बीतने को आई ।जब दोनो हिरणी मे से एक भी नही आई तो शिकारी समझ गया कि दोनो ने मुझे बेवकूफ बनाया। और फिर क्रोद्ध मे वह अपने आप को कोसने लगा। और बेलपत्रो को जमीन पर फेकने लगा। थोड़ी देर बाद उसे एक हिरण दिखाई दिया। और शिकारी ने उसके उपर बाण तान दिया। जब हिरण की नजर शिकारी पर पडी़ तो, हिरण बड़े ही दयनीय भाव से बोला " मेरी पत्नी और बच्ची कही खो गयी है । मैं उनको ढुढ रहा हूँ। मै बहुत दुखी हुं आप मेरा विश्वास किजीए वे लोग जो से ही मिल जाते है तो उनसे मील कर मै आपके समक्ष उपस्थित होता हूं । शिकारी क्रोद्ध मे लाल पिला हो जाता है ।और कहताहै " नहि मै तुम्हारे उपर भरोसा नही कर सकता " "मै तुमसे पहले दो हिरणी को बक्स चुका हूं ।वे लोग ने भी मिथ्या बादा करके मुझे वेवकूफ बनाया ।मै अब तुम पर विश्वास नही कर सकता हूँ। " पर ना जाने उसके दिल मे हिरण के प्रति दया उमड पडी़ और वह हिरण से बोला " जाओ पर अपनी जबान से मत फिरना" तब हिरण वहां से चला जाता है ।जब बहुत समय बीत जाता है , और कोई नही आता है तो शिकारी अपने आप को कोसता हुआ पेड़ से नीचे उतरता नीचे उतरता है। और मन ही मन कहता है कि हे प्रभु मेरे बच्चे भुख से विलख रहे होगे । मै खाली हाथ उनके समक्ष कैसे जाऊंगा। वह अपने आप को कोस ही रहा था कि उसकी नजर एक दिव्य प्रकाश की तरफ जाती है। वह तेजी से उस दिव्य पूंज की तरफ पहुंचता है। और देखता है कि यहां तो एक दिव्य शिवलिंग है। वह शिव लिंग को आलिंगन मे ले लेता है और कहता है कि प्रभु मै क्या करू मेरा दिमाग काम नही कर रहा है। प्रभु आप मेरा उचित मार्ग दर्शन करे। इतने मे देखता है कि वायदे के अनुसार वे तीनो हिरण सामने खडे़ है। और शिकारी से कहते है "वायदे के अनुसार हम लोग आ गये अब आप अपना वायदा पूरा कर सकते हैं ।" भक्त वत्सल भगवान भोलेनाथ के प्रतिक शिव लिंग को आलिंगन करके शिकारी का मन इतना स्वच्छ हो गया है कि वह कहता है कि मेरा परिवार भले भूख से मर जाय, पर मै आप लोगो का वध नही कर सकता। वह उन्हें शीध्रात शीध्र वहां से चले जाने के लिए कहता है। इतने मे भक्त वत्सल भगवान भोलेनाथ प्रकट होते हैं और शिकारी से कहते हैं कि मै तुम्हारे इस निश्चल प्रेम से बहुत प्रसन्न हूं मेरा आलिंगन करके जो प्रेम तुमने दर्शाया है। तुम्से मै बहुत प्रसन्न हूं ।अब तुम्हारी जिंदगी मे किसी तरह का कोई कष्ट नही आयेगा। आज महा शिव रात्री का दिन है। आज के दिन तुमने क्रोध मे ही सही पूरी रात बेल पत्र जो मुझ पर चढाये है।वह बहुत ही उत्तम फल को देने वाला है। मै तुम्हे बचन देता हूं कि आज के बाद तुम्हारे ज़िन्दगी कोई कष्ट नही आयेगा। यह तुम्हारी हमारी पवित्र कथा का पठन पाठन और श्रवण करेगा, उसके सारे कष्ट दूर हो जायेगे । दोस्तो यह लोक कथा आप लोगो को कैसा लगा कमेंट बाक्स मे जरूर लिखियेगा लेखक भरत गोस्वामी मुम्बई , भारत
Comments
Post a Comment