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Showing posts from February, 2020

VIJYA AKADSHI बिजया एकादशी (एक महात्म्य कथा )

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मनुष्य की जिंदगी में अपने पुर्वजों के प्रति प्रेम  की एक अपार श्रद्धा है । हमारे जिन्दगी में आज जो कुछ भी प्रकृति ने प्रदान किया है । उनमें हमारे पुर्वजों का बहुत बड़ा योगदान रहा है । उनके प्रति हमारी भी कुछ जिम्मेदारियां  होती है जिनका सही ढंग से उपयोग करने पर हमारा जीवन सुखमय होता है और अपने पूर्वजों से  हमें दुआ मिलती रहती है ।किस तरह से उनका भी कल्याण हो इस महात्म्य में इसका वर्णन किया गया है ।                    जिन मां बाप ने  हमें बड़े ही परिश्रम से,बड़े ही कष्ट से हमारे जीवन को संवारा है । हमारी एक छोटी सी मुस्कान के लिए जिन्होंने अपनी  मुस्कान को कोई महत्व नहीं दिया ।हमें पग पग पर कोई ना कोई शिक्षा देकर ,प्यार देकर हमें बड़ा किया । देश दुनिया दारी का ज्ञान कराया । हमारी एक छोटी सी छोटी खुशियों का बखुबी से ध्यान रखा । अपने उपर किसी तरह का कोई कष्ट नहीं आने दिया । वो हमारे मां, बाप,दादा दादी या कोई प्रिय जन हमारे पूर्वज जो किसी न किसी कारण से हमें छोड़ कर इस दुनिया से प्रस्थान कर गए । प्राणों से भी प्रिय वे लोग हमेशा  याद आते हैं । और हम पागलों की तरह बेचैन रहते है कि काश उनकी

YUDHISTHIR KA PASCHATAP युधिष्ठिर का पाश्चाताप A RILIGIOUS STORY

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लोक कथाओं में चर्चित यह कहानी महाभारत काल से संबंध रखती है । जिस क्षेत्र में युद्ध हुआ था, उस क्षेत्र की धरती रक्तपात से लाल हो चुकी थी । पांडवों को जीत तो मिली लेकिन उनको जीत  की खुशी रास नहीं आई  । उनका मानना था कि हम युद्ध जीत कर भी हार गये है । अपने हाथों किए गये  इस जघन्य पाप से मुक्ति मार्ग चाहते थे ।                                                                                एक  दिन युधिष्ठिर अपने कक्ष में बैठे गहन सोच   में डूबे हुए थे ।   उन्होंने सोचा हम लोग सब कुछ जीत कर भी सब कुछ  हार   गए ।आखिर हमारे जीने का  उद्देश्य क्या शेेष   रहा ।   इस नश्वर शरीर और कृत्रिम धन के लिए हमने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया ।   आत्मग्लानि से सराबोर होकर उन्होंने अपने आप को सोच केेे गहरे समुद्र डाल लिया था। उन्हें दुर्योधन के साथ बिताए हुए पल की याद आ रही थी । हम सभी भाईयों में कितना परस्पर प्रेम था । हर कोई एक दूसरे को खुश रखने का प्रयास करता था ।                              मैं अपने भाइयों से ज्यादा दुर्योधन से प्यार करता था । उसकी हर जिद को मैं  सहज भाव से पूरा कर देता था । मुझे आज

ADHAYATAM DARSHAN अध्यात्म दर्शन एक सुविचार

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अध्यात्म की महिमा का बखान करना मनुष्य के वश में नही है । मनुष्य के जीवन में अध्यात्म का बहुत बड़ा योगदान है । मान लीजिए हमसे कोई पुछता है "कैसे हो भाई  "तो हम जबाब देते हैं "सबकुछ ठीक ठाक है भाई ईश्वर की कृपा है ।" ऐसा हमारे मुख से निकलना  एक साधारण बात नहीं है ।कहीं न कहीं अध्यात्म से जुड़ा व्यक्ति ही ऐसा कह सकता है । इस अध्यात्म के द्वारा ही ईश्वर मनुष्य की जिंदगी में प्रवेश करताहै ।और मनुष्य का जीवन सुन्दर और सार्थक बनाता है ।                               कोई भी फैक्ट्री में मालिक खुद कोई काम नहीं करता है। उसने काम करने के लिए मैनेजर, सुपरवाइजर  रखा है । उसी तरह यह संसार ईश्वर  लिए एक फैक्ट्री के समान है । और ईश्वर  इसका मालिक है । वह स्वयं कुछ नहीं करता ‌‌‌‌ वह हमारे बीच अपना एक प्रतिनिधि भेजता है, जो उसकेेे सामान सर्व संपन्नन रहता है ।   किसी ना किसी तरह मनुष्य को यह  लगता है कि हो ना हो यह ईश्वर ही है ।वह ईश्वर द्वारा प्राप्त शक्ति का सदुपयोग करके  मनुष्य के जीवन को सुखमय  बनाता हैं । इनके कुछ  उदाहरण हमारे समक्ष है ।