RAM BAN GAMAN
होइहे सोई जो राम रची राखा । को करि तरक बढावहु शाखा ।। जो नियति ने लिख दिया है। उसे कोई मिटा भी नहीं पायेगा । कभी कभी ऐसा लगता है कि मनुष्य अपने सामर्थ्य से भाग्य को बदल सकता है। लेकिन श्री रामायण की यह पत्तियाँ यह सत्य साबित करती है कि नही जो विधि ने लिख दिया है ,उसे बदलना किसी और के बस की बात नही है। पवित्र अयोध्या नगरी मे हर्ष उल्लास का माहौल बना हुआ है। प्रजा हर तरह के सुख का आनंद उठा रही है राजा दशरथ जी की ख्याति चारो दिशाओ मे गुंज रही थी एक दिन राजा अपने रंग महल मे विश्राम कर रहे थे। उनके मस्तिष्क मे राम के प्रति कुछ विचार चल रहे धै ।वे सोच रहे थे कि राम अब एक युवा हो गये हैं ।हर तरफ से निपुण और योग्य हो गये हैं ।क्यो न उनको राज्य पाठ देकर थोड़ा विश्राम किया जाय। बहुत तरह से सोच विचार करने के उपरान्त उन्होने यह निर्णय लिया कि इस विषय को गुरूजनो एंव आत्म जन सभासदो के बीच प्रस्ताव स्वरूप रखा जायेगा ।दुसरे दिन जब राजा दशरथ का दरबार लगा तो इस विषय की घोषणा की गई । प्रिय गुरूजन ने एक स्यर मे इस प्रस्ताव को स्वीकृति दैने का निर्णय लिया। चुकी राम सबके प्रिय थे इस लिए किसी सभासद ने भी इस प्रस्ताव का विरोध नही किया ।उसी दिन यह बात आम जनता के बीच जंगल मे आग की तरह फैल गई ।सब ओर जनता राम की जयजयकार करने लगी । सबकी आंखो मे राजा राम के प्रति आदरऔर प्रेम के आंसू छलक आये ।अयोध्या नगरी को दुलहन की तरह जनता द्वारा सजाया जाने लगा । तरह तरह के ढोल नागाडो़ से अयोध्या नगरी झूम उठी । जिथर देखो उधर मंगल स्वर की ध्वनि गुजने लगी । सुगंधित फुलो की वर्षा की जाने लगी । प्रजा झुम झुम कर इस अवसर का आनंद ले रह ही थी । उधर रनिवास मे जब ये बात पहुंची तो तो तीनो माताये झुम उठी ।सबने भावी राजा राम की अनुभूति किया। उनके हर्ष का कोई ठिकाना नही रहा । सभी माता ये राम को ज्यादा स्नेह करती थी। क्योकि राम सबसे उदार, प्रतिभा शाली, होनहार, विनम्र थे। उनके कमल जैसे नेत्रो और खुले आकाश की तरह श्याम वर्ण शरीर और सैकडो़ सूर्यो के समान चमकता मुख मंडल और उनकी मन्द मन्द मुस्कान देख कर माताये अपना सुथ बुदद्व खो बैठती थी। उधर देवता गण जो रावण के अत्याचार से दुखी थे। उसके पाप से धरती काप रही थी। सब देवता गण मिल कर भगवान विष्णु के दरबार पहुँचे ।और आदरांजलि द्वारा भगवान विष्णु की जयजयकार करने लगे और कहने लगे। प्रभु आप के बारह कला अवतार भगवान श्री राम जब राजा बन जायेगे तो राज काज मे उलझ कर रह जायेगे तो उनके अवतार का उद्देश्य कैसे पूरा होगा । फिर वो पापी रावण का बध कैसे कर पायेगे जिसके अत्याचार से हम सभी देवता परेशान है उसने कितनो देवता को बन्दी बना रखा है । तब श्री हरि विष्णु ने कहा चिन्ता मत करो। मेरे अंश देवाधिदेव श्री महादेव के मनः पटल मे सदैव निवास करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अवतरित हुए है। वो कार्य अवश्य पूरा होगा। और उन्होने अपनी योग माया द्वारा मां सरस्वती देवी को सब कुछ समझा दिया। मां सरस्वती मुस्कुराते हुए अपने कार्य के लिए प्रस्थान कर गई ।उन्होंने माता केकयी की चपल दासी मंथरा के मस्तिष्क मे प्रवेश कर ग ई सभी प्रसन्न थे। पर मु़ंह बनाये दासी एक तरफ ताक मे थी।कि कैसे हम अपने राजकुमार भरत को राम से नीचे देखेगे। हमारा राजकुमार भरत राम से भी प्यारा है। मोका देखते ही मंथरा ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया । उसकी चिकनी चुपड़ी बाते सुनकर पहले तो माता कैकयी भड़क ग ई। और बोलने लगी "अरे कलमुही कभी तो अकल की बात किया कर राजकुमार राम और राजकुमार भरत मे कबसे तु भेदभाव रखने लगी है। देखती नही है राजकुमार राम अपनी मां से ज्यादा मुझसे प्यार करते हैं ।तूझे
इन दोनो भाइयो मे कितना प्यार है तुझे दिखाई नही देता। सब छोटे भाइयो को राजकुमार राम कितना प्यार प्यार करते हैं खेल खेल मे अपनी जीती हुई बाजी भी जानकर हार जाते है जिसके वजह से छोटे भाइयों को खुशी मिले ।राजकुमार राम और राजकुमार भरत दोनो तो मेरे आंखो के तारे है। मै उनके खिलाफ एक शब्द नही सुन सकती तु अपना काला मु़ह कही और मार जा चल हट जा ।" आखिर कार मंथरा का जादू चल ही गया और उसने माता कैकयी का मति भ्रष्ट कर ही दिया और माता कैकयी ने दो बर मांग कर भगवान श्री राम को बन गमन के लिए मजबूर कर दिया । ।
दोस्तों यह लोक कथा आपको कैसी लगी कमेंट बाक्स मे अवश्य लिखे। भगवान श्री राम के बारे कुछ और जानना चाहते है तो सबसे नीचे जाकर more posts को टच करते रहिए और पढिए यात्रा पंचवटी धाम की / राम अवतार / राम राज्य ।धन्य वाद लेखक -भरत गोस्वामी मुम्बई ,भारत
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