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NIRAKAR AUR SAKAR PERBRAMBH निराकार और साकार परब्रह्म A RELIGIOUS STORY

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  गुरूर्ब्रह्मा , गुरूर्विष्णु ,गुरूर्देवो  महेश्वर  ।                          गुरू साक्षात्, परब्रह्म  तस्मै  श्री गुरूवे नमः।।                  ब्रह्मा जी, विष्णु जी, महेश्वर  जी इन तीनो गुरूवो को  नमस्कार  है, पर इन सब के साक्षात् गुरू परब्रह्म को भी  नमस्कार  है। परब्रह्म यानी  निराकार स्वरूप  ब्रह्म जो इन तीनो गुरुवो के भी गुरु है। उनके बारे  मे पुर्ण  ज्ञान  रखना  इन तीनो गुरुवो हरि ,हर,  ब्रह्म के  वश  की बात  नही तो एक सधारण मनुष्य पुर्ण  रूप से कैसे जान  सकता  है। मनुष्य तो मात्र  एक  फुटबाल  के खिलाडी की तरह है। जो खेल के मैदान मे जहाँ से बाल  मिल गया वही  से आगे बढाने  की कोशिश करता है। ठीक उसी तरह मनुष्य  परब्रह्म के  स्वरूपो को  जहाँ से पाता है वही  से उनके  गुणो  का गुणगान  करता है  । गोस्वामी  श्री तुलसी दास जी ने  भी इस कथन का समर्थन किया  है  ।"हरि अन्नत हरि कथा अन्नता। कहहू सुनावहू बहु  विधि  संता"।। सृष्टि  की उत्पति मत कई तरह से वर्णित  है। लोक कथा से वर्णित  एक मत हमने  शीर्षक  "श्री  गणेशा " मे कुछ समय पहले किया है। अब हम एक सृष्टि उत्पति  मत