EK AUR PARIKSHA एक और परीक्षा A RELIGIOUS STORY

परेशानियां चाहे जितनी भी हो पर सच्चाई को उजागर होते देर नहीं लगती ।थोडी देर सबेर ही सही जीत हमेशा सच्चाई की ही होती है ।सच्चाई पर चलने वाले लोग बिरले ही होते हैं । इतिहास के पन्नों से लिपटी यह कहानी  लोक कथाओं में चर्चित है । ‌‌‌
       पूर्व काल में एक बहुत ही धर्मात्मा राजा राज्य करते थे । प्रजा उनके राज्य मे बहुत ही खुशी से अपना जीवन यापन कर रही थी । परोपकार और करूणा से भरे वह राजा प्रजा को अपनी औलाद की तरह प्यार करते थे ।  उनकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ गई थी कि देश देशान्तर में उनकी चर्चा होने लगी । बात फैलते फैलते देवताओं तक पहुंच गई । और देवताओं ने मिल कर उस राजा की परीक्षा लेने का उद्यम बनाने लगे ।बात भगवान विष्णु तक पहुंच गई । उन्होंने देवताओं को आश्वासन दिया कि उस राजा की परी क्षा मैं स्वयं लूंगा ।                                                     एक दिन भगवान सत्यदेव  स्वयं उनकी परिक्षा लेने के उद्देश्य से  एक पात्र में कुछ टूटे फुटे वर्तन और कुछ बेकार की बस्तुये लेकर उनके मंडी में जा पहुंचे ।   राजा ने यह घोषणा कर रखा था कि यदि किसी का सामान नहीं बिका तो हमारे सिपाही उस समान को खरीद लेगे । अब टूटे फुटे  वर्तन तो कोई खरीदेगा नहीं ।इस लिए समान लेकर भेषधारी  भगवान सत्यदेव वहीं बैठे ही रह गये । अन्त में राजा के सिपाही आये और समान देख कर बोले "बाबा ये वर्तन तो टूटे फ़ूटे है ।इनको कोई कैसे खरीदेगा । " फिर राजा के सिपाहियों ने कुछ  सिक्के देकर समान खरीदने की बात की  ।तब बाबा  ने जिद पकड़ ली नहीं मैं पांच सिक्के लिए बीना यह समान नहीं बेच सकता  ।राजा के सिपाही परेशान हो गए । और शिकायत लेकर राजा के सम्मुख उपस्थित  हों कर सारा वृत्तांत कह सुनाया । राजा ने कहा "कुछ भी हो जाय उसका सामान तो खरीदना ही पड़ेगा । और स्वयं सिपाहियों के साथ चल पड़े । वहां पहुंच कर मुंह मांगा सिक्का देकर उन्होंने सब समान खरीदने लिया ।                                  राजा की आदत थी वह रोज रात को भेष बदल कर प्रजा का हाल जानने के लिए स्वयं  निकल पड़ते थे ।  जाते वक्त उन्होंने एक साया देखा   माजरा क्या है जानने के उत्सुक राजा उस साये का पीक्षा करने लगे । कुछ दूर जाने के बाद उनको एक वृद्ध स्त्री मिली । राजा ने पूछा इतनी रात गए कहां जा रही हो । और राज महल में क्या करने गई थी ।तब उस वृद्ध स्त्री ने कहा मैं यहां के राजा की राज लक्ष्मी हूं । राजा ने टुटे फुटे वर्तन खरीद कर     दारिद्र्य को अपने यहां खुदी आमंत्रित किया है अब मैं राजा को छोड़ कर जा रही हुं । जहां दरिद्रता का वास होता है वहां मैं कैसे रह सकती हुं । राजा तो बहुत ही समझदार और धर्म परायण और पुण्य आत्मा है । पर मैं मजबूर हूं जहां दरिद्रता रहेगी वहां मैं नहीं रह सकती हुं । ये सब बातें सुनकर राजा को बहुत तकलीफ हो गई ।                                                     अपनी विवशता पर उन्हें बहुत अफसोस हुआ । पर वह धर्म का मार्ग नहीं छोड़ सकते थे । कुछ ही समय बाद राजा के राज्य मे अकाल ने अपना रूप दिखाना शुरू किया   चारों तरफ हाहाकार मच गया । राजा को सब मालूम था ।पर वह विवश था कुछ कर भी नहीं सकता था ।  एक दिन सायंकाल के समय भेष बदल कर राजा प्रजा के बीच गया  ।ताकी प्रजा का हाल चाल जान सके । वहां राजा को अपनी ही बुराई सुनने को मिली ।राजा परेशान हो कर अपना राज पाट छोड़ कर  एक दिन बीना किसी को कुछ कहे ही घर से दूर जाने का फैसला किया ।                                                          चलते चलते राजा को बहुत जोर से प्यास लगी  । प्यास की तड़प उनसे बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी । तब उन्होंने थोड़ी दूरी पर एक कुआं देखा  ।झांक कर देखा तो बहुत गहरा होने पर भी कुएं में पानी कम था वहां बाजू में डोर और बाल्टी  रखी हुई थी । राजा ने किसी तरह कुएं से पानी निकाल लिया ।‌‌‌‌वे ज्योही पानी पीने को उधत हुए तब एक घटना घटी दो प्यासे सन्यासी वहां आ गये और पानी पिलाने का आग्रह करने लगे । तब अपनी प्यास की प्रवाह  न करके राजा ने उन्हें पानी पिलाया ।दोनों सन्यासी ढेर सारा  आशीर्वाद देकर चले गये  । प्यास से राजा का बुरा हाल था ।  शरीर एकदम जबाव दे चुका था  । फिर भी किसी तरह पानी निकालने के लिए राजा ने भरपुर कोशिश की । और अपने इरादे में कामयाब हो गये ।बाल्टी के निचले हिस्से में थोड़ा सा पानी था जो शायद प्यास बुझाने के लिए पर्याप्त नहीं था। राजा ने पानी पीने के लिए बाल्टी उठाई ही थी कि उनकी निगाह पास ही खड़े एक कुत्ते पर गयी जो बड़े ही दीन भाव से उनकी तरफ  देख रहा था राजा  ने सोचा शायद इसको प्यास लगी है ।पर राजा के पास एक ही विकल्प था । या तो अपनी प्यास बुझा सकता था या कुत्ते की प्यास  बुझा सकता था । थोड़ी देर सोचने के बाद करूणा की जीत हुई और राजा ने पानी की बाल्टी कुत्ते के सामने रख दिया । राजा के चेहरे पर मुस्कराहट थी ।  धिरे धिरे वह वेहोशी के आगोश में जा रहा था । सामने खड़े भगवान सत्यदेव और राजा की राज लक्ष्मी  उसी वृद्ध स्त्री के रूप में खड़ी मुस्कुरा रही थी ।                             दोस्तों कहानी आप सब को कैसी लगी दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी ।                                 
          

Comments

  1. बहुत-बहुत सुन्दर
    बहुत-बहुत धन्यवाद

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