AAYU KA BATWARA आयु का बटवारा A SOCIAL STORY
जब उपर वाला यानी ईश्वर जीवों कि आयु सीमा निर्धारित करने लगा । तो कुछ ऐसा हुआ ।लोक कथाओ में चर्चित यह कहानी आपको जरुर पसंद आएगी ।ऐसी आशा रखते हैं । भले हम अपनेआपको कितना भी विकसीत समझ लें पर शास्त्रों को खंगाला जाय तो हम अभी बहुत पीछे है ।आप सब ने सुना होगा पहले ऋषि मुनि मंत्र की शक्ति से पल भर में कहीं भी आने-जाने में समर्थ थे ।क्या आज हम ऐसा कर सकते हैं ? सत्य जरा कड़वा होता है । पर ये भी सुना गया है ,कि कड़वी चीज़ फायदेमंद साबित होती है । युग के आरंभ में ईश्वर और उनके शासन प्रणाली द्वारा जब जीवों की आयु सीमा निर्धारित होने लगी । तो ईश्वर और उनके शासन प्रणाली ने सभी जीवों की आयु सीमा 40साल निर्धारित किया । उन सभी जीवों में मनुष्य सबसे श्रेेेेष्ठ था ।अपनी आयु को लेकर वह संतुष्ट नहीं था । उसने ईश्वर सेे आग्रह किया कि हो सके तो हमारी आयु सीमा कुछ बढ़ा दीजिए । ईश्वर ने कहा "देखता हूं ।" इतने में रोते-रोते गधा आया । और ईश्वर से आग्रह किया कि "हे प्रभु मैं 40 साल का आयु लेकर क्या करूंगा ।मुझ दीन पर दया करो,मेरी आधी उम्र किसी जरूरतमंद को दे दीजिए। "तब ईश्वर ने मनुष्य से पूछा "भाई गधे की 20 साल की उम्र तुम्हें मील सकती है । तुम्हें स्वीकार है ।" उम्र की लालच में आकर मनुष्य ने हां कर दिया । अब मनुष्य की उम्र 60 साल हो गई । फिर भी फिर भी मनुष्य संतुष्ट नहीं हुआ। फिर कुत्ता आया।उसने भी ईश्वर से प्रार्थना करके अपनी उम्र आधी करवा ली । कुत्ते की आधी उम्र भी मनुष्य को दे दी गई ।तब भी मनुष्य को संतोष नहीं हुआ और उसने उल्लू की आधी उम्र भी ले ली ।अब जब मनुष्य 100साल का हो गया तो अपने आप गौरवान्वित महसूस करने लगा ।पर वह भूल गया की दुसरो की जिंदगी जीना इतना आसान नहीं है ।सच में देेेखा जाय तो 40साल तक की जिंदगी ही सही मायने में जिन्दगी होती है । उसके बाद तो केवल जिन्दगी जी नहीं जाती ,काटी जाती है ।तब शुरू होती है गधेेेे की दी हुई जिंदगी । यानी मनुष्य के जीवन में दुसरे की जिंदगी जीने का समय आता है ।मनुष्य के 40साल होते होते बड़े भी बेकार हो जाते हैं ।उनका बोझ और अपनी पत्नी , बच्चों का बोझ मनुुष्य को अकेला उठाना पड़ता है ।अब शुरू होती है उधार की जिंदगी , बुजुर्गों की दवा,बच्चो की पढाई-लिखाई, शादी ब्याह ,और भी कई तरह की जिम्मेदारियां बढ़ जाती है । जैसे तैसे 20साल गुजर जाते हैं । अब मनुष्य स्वयं बेकार हो जाता है ।और उसे दूसरों के ऊपर आश्रित रहना पड़ता है। अब शुरू होती है , कुत्ते की उधार जिन्दगी किसी को कुछ समझाओ तो कुछ और समझ बैठता है ।उस वक्त मनुष्य की सही राय भी सबको गलत लगती है । कुछ भी बोलो कोई सुनने वाला नहीं । जैसे तैसे खत्म हुई वो जिंदगी भी, तो शुरू हो गई उल्लू महाराज की उधार जिंदगी ।अब मनुष्य 80साल में प्रवेश करता है । इंद्रियां शिथिल हो जाती है ।कब क्या कर बैठती है पता नहीं चलता । कानों से कम सुनाई देेेताहै, आंखों से कम दिखाई देता है। कोई बोलता है कुछ सुुुुनाई देेेता है कुछ ।एक अजीब सी जिंदगी हो जातीहै । मनुष्य को अपने हिसाब से नहीं परिवार के मन के हिसाब से चलना पड़ता है। जिंदगी के इस यथार्थ कहानी में कितना सत्य है, कितना गलत इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है । पर यह सत्य है कि जिंदगी में समस्या है तो समाधान भी है। अपने कर्म अच्छे रखें अपने संस्कार अच्छे रखें ताकि आपको देखकर आपके बच्चे भी संस्कारी हो । आपकी देख भाल सही ढंग से कर सकें । दोस्तों कहानी कैसी लगी कमेंट बॉक्स में दो शब्द जरूर लिखें और अपने दोस्तों को पढ़ाइए । बहुत बहुत धन्यवाद । लेखक-भरत गोस्वामी
👍👍
ReplyDeleteभाई जी,आप द्वारा प्रस्तुत की गयी कहानी का आधार बड़ा ही मजबूत है।
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