MATRI PREM KI TDAP मातृ प्रेम की तड़प A SOCIAL STORY


 यह मातृ प्रेम  की ऐसी  कहानी  है जो मां और बच्चे के बीच एक  अनोखा एहसास  दिलाती  है। इस  सामाजिक  कहानी  मे  मां बेटे  के  मधुर  सम्बंध को दर्शया गया है। जिससे बच्चे को मातृ प्रेम  की  तड़प  मे  राहत  मिलती  है।                                सुरेश नाम  का एक  युवक अभी  अभी  जवानी  के  देहलीज  पर कदम  रखता है ।अभी तक  बड़ा  होने के  बावजूद  उसका  बचपना  ज्यो  का त्यो  बना  हुआ है  अभी भी  वह  कही  बाहर  से आता  तो  मां के  गोद  मे  सिर  टिका कर   मां का  परम स्नेह  का  आनंद  लेता  ।और मां स्नेह  से उसके  बालो  मे  अंगुली  घुमाती ।यह इन  दोनो का रोजमर्रा  का  खेल  था ।पिता को  गुजरे  कई साल  बीत  गये  पर  मां  बेटे  के  इस  मधुर  सम्बंध  ने  घर मे  कभी  पिता  के  कमी  का  एहसास  नही  होने  दिया।                                    जवान, सुन्दर और  सुशिच्छित होने के  कारण  उसके  यहां  शादी करने वालो की  भीड़  सी  लगी होती। कुछ  समय बाद शादी का  रिस्ता  तय  हो  जाता है। और ख़ुशी  खुशी  शादी  सम्पन्न  हो  जाती है। बहुत समय के  बाद उसकी  विधवा  मां को  खुशी नसीब हुई है।इसलिए वह खुशी से  पागल  सी  हो जाती, जब  बहु के  खिलखिलाते  चेहरे को  देखती उसकी  अपनी  जवानी  के दिन  याद  आ जाते और फिर वो घंटो  अपने आप मे  खोयी  रहती, उसकी  तन्द्रा  तब टूटती  जब उसे कोई  जान्हवी  कह कर पुकारता,घर पड़ोस मे ही एक बुढी दादी  रहती थी,  जो जान्हवी को  बहुत  प्यार  करती,वह  जान्हवी के जीवन के कई उतार चढाव को  देख  चुकी  होती है।                                                    फिर  दोनो मील कर बहुत देर तक  बाते  करती  रहती।  बहु आती और बूढी दादी के पैर  छुती,उसके बाद अपने  सास जान्हवी के  पैर  छुती । फिर बहु कुछ  खाने  पीने की  वस्तुएं  लाती और दोनो मील कर बात करते करते  खाने पीने मे  लग जाती। और बहु को अपने दिल से  आशीर्वाद  देती।                                                              श्रावण मास का दिन  था संध्या  समय के चार बज  रहे थे घर पर बहु के अलावा  कोई  नही  था। बहु कुछ ही  दूरी  पर  काम  मे व्यस्त थी।  अचानक  जान्हवी को अपना  बदन  भारी हो ने  का एहसास  होता है ।वह मदद के  लिए  बहु को जोर जोर  से  बुला रही है  पर, उसकी  आवाज  बहु  तक नहीं  पहुँच  पा रही  है। उसे पुरी  धरती  घुमते  हुए नजर आ  रही है। तरह तरह के  ख्यालात  मन मे उठ  रहे  है। कई    अच्छे  बुरे  कर्मो  के  चित्रण  उसके  आंखों  के  आगे  घुम  रहे है।                                                    वह बहुत चाहती है कि आवाज  देकर  किसी  को  बुला  लुं या उठ कर किसी के पास चले जाऊ  पर,  सच तो  यह  था कि वह मात्र कल्पना  कर  सकती  थी।   वह कुछ  भी करने की  स्थिति  मे नही  थी  ।वह चाह कर भी कुछ  नही कर पा रही थी  ।अपने अन्दर  उसे मजबूरी की  झलक  साफ  दिखाई  दे रही  थी। आखिर  उसके  तड़प  का अन्त  हुआ और उसका शरीर  एक  तरफ  लुढक  गया ।और वह इस  दुनिया  से चली  गई।                                                  कुछ देर बाद बहु  किसी  काम  से उधर  आई  तो  जान्हवी को इस हालत  मे  देख कर  घबरा   गई। उसने झट  से  जान्हवी का सर अपनी  गोद  मे लिया  और बहुत  हिलाया  डुलाया पर  उसके अन्दर कोई  हरकत  न  देख कर  बहु  समझ गई कि  मां जी  अब इस दुनिया मे  नही  रही। अब इन्होने  किसी  शुन्यता  की  दुनिया मे कदम रख दिया है  ।वह जोर जोर से रोने  लगी  ।आस पास के पडोसी  जमा  हो गये। उसकी  सहेली बुढी  दादी भी  वहां  आ  गई और जोर जोर से  छाती  पीट कर  रोने  लगी  और कहने लगी  "हे भगवान उम्र  तो  मेरी  हो गई है। मुझे  उठा  लेता  लेकिन  मेरी बच्ची  को क्यु  उठा  लिया।  "                                                                           सुरेश ने जब अपने  मां के बारे  मे  सुना  तो  वह बहुत  हताश  हो  गया।,उसका लगा कि  उसकी  तो   दुनिया  ही  उजड़  गई  ।     उसके आंखो   के आगे  अंधेरा  सा  छाने  लगा। मां के   द्वारा किए  गये असीम  प्रेम के  एक एक  पल की  याद  उसके  जेहन  मे  आती  चली गई   और वह उसमे  डुबता  चला  गया  । मां के  कोमल  हाथो का वह एहसास,जब मां उसके सिर पर  हाथ फेरती  । हर  रात  सोने  से  पहले  अपने  हाथो  से  तेल रखती  और कहती कि आंखो  को स्वस्थ रखने के  लिए  सोने  से पहले सिर मे तेल लगाना  जरुरी है इससे  आंखो को  बल मिलता है और उनकी  उमर भी  लम्बी होती  है। और  साथ मे  नींद  भी अच्छी  आती है।                             जान्हवी के किए गये  एक एक  कृत्य  का एक  एक  पल   सुरेश के  मानस  पटल  को झकझोर कर  रख  देता। उसका  दिल एक अजीब  तरह की तड़प  का एहसास करता  और उस तड़प  की  तड़प  से  घंटो  बाहर  नही  निकल  पाता  मां कि यादो से  उसे  यह एहसास  होता कि  मां कहीं गई  है। अब आ जायेगी पर, वह पल  उसकी  जिन्दगी    मे  कभी  नही  आया  ।                                                                                बहुत समय बीत गये एक दिन सुरेश अपनी  मां की  यादो मे खोया  हुआ  था, उस दिन एक ऐसी  घटना  घटी सुरेश की  आत्मा  को  झकझोर कर  रख दिया। जिससे उसकी  अन्तर आत्मा तड़प उठी ।सुरेश के ही  पड़ोसी का एक लड़का उसके  पास ही बैठ कर  ड्राइंग बुक  पर पेन्सिल  से  कुछ  आकृति  बना  रहा था। कुछ समय बाद वह लड़का कुछ कार्य  बस अपनी बुक  वही  छोड़  कर  चला  गया ।                सुरेश उसके  बनाये  हुए  आकृति  को बड़े गौर  से देख  रहा था  ।आकृति  तो पूरी हो चुकी थी, पर उसमे  रंग भरना  बाकी  था।  एका एक  सुरेश  को ऐसा  लगा कि उस आकृति  मे कोई  रंग  भर  रहा है। देखते देखते  वह  सादी  आकृति  रंग  से  भर गई । सुरेश को आश्चर्य का  ठीकाना  ना रहा। उसे  अपने इर्द गिर्द  किसी  का  होने  का एहसास  हुआ।। उसने  यह बात किसी  को  नही  बताई,और उसने उस  बुक  को  कही  छूपा  कर रख दिया    अब जब भी वह फुर्सत  मे  होता उस  आकृति  को गौर से देखता, वह अपने मन  मे जैसी  आकृति  सोचता , वैसी  आकृति  बन जाती ।और उसमे अपने आप रंग  भर जाता, सबसे बड़ा आश्चर्य  तो  तब  होता जब वह आकृति बन रही होती और उसमे रंग  भरने  का एहसास  होता। सुरेश को अपनी मां जान्हवी  को  अपने आस पास होने का एहसास  होता। सुरेश की आत्मा मातृप्रेम  से गदगद  हो जाती,और उसे  मां के प्रेम की अनुभूति  मिलती। जिससे उसकी  मां के याद की असहनीय  तड़प से  राहत  मिलती जो  स्थाई  होती, सुखदाई  होती।                           दोस्तों  यंह कहानी कैसी लगी कमेंट सैक्सन मे अपने शुभ नाम के साथ साथ आपके दो शब्द अवश्य लिखे धन्यवाद भरत गोस्वामी मुम्बई, भारत                 

Comments

Popular posts from this blog

MAA YASHODA KA VATASHALAYA PREM मां यशोदा का वात्सल्य प्रेम A RELIGIOUS STORY

JO BHI HOTA HAI AACHE KE LEA HE HOTA HAI जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है A MOTIVATIONAL STORY

PRABHU YESHU EK AADERSH प्रभु यीशु एक आदर्श एक सुविचार A GOOD THOUGHT