EK ANOKHI SHIKSHA एक अनोखी शिक्षा A SOCIALSTORY
लोक कथाओ से संग्रहित यह प्रसंग इंसानियत के एक नये रूप का दर्शन कराता है। क्योकि इंसानियत से बढ़ कर कोई धर्म नही है वही धर्म सर्व श्रेष्ठ है इंसानियत के एक रुप की झलक दिखलाती यह कथा इंसानियत का एक अनमोल उदाहरण प्रस्तुत कर रही है। सांय का प्रहर है एक बाबा के आश्रम मे लोगो का ताता लगा हुआ है ।कुछ लोग कुछ एक लालसा लिए बाबा के आश्रम मे आ रहे हैं। कुछ की लालसा पुरी होने जा रही है कुछ की पुरी नही हो पा रही है। बाबा के यहां अमीर हो या गरीब सबको समान इज्जत दिया जाता है। ऐसा करते कराते बहुत दिन बीत जाता है। पर बाबा के आश्रम की रौनक ज्यो की त्यो बनी हुई हैं। कुछ दिन बाद बाबा के आश्रम मे एक ऐसे व्यक्ति का प्रवेश होता है उसके हाव भाव से ऐसा प्रतित होता है की वह व्यक्ति बाबा से मिलने कम बाबा के बारे मे जानने की ज्यादा इच्छा रखता है । उसका ध्यान बाबा पर कम उनके धन पर ज्यादा है। बाबा के पास एक सफेद बहुत ही सुन्दर घोड़ा था। जो बहुत ही तेज तरार था । उस दिन तो वह व्यक्ति चला गया पर थोड़े ही दिनो मे वह वापस आश्रम आ गया। इस बार भी औचित्य पुरा करके चला गया । पुनः कुछ दिन बाद उसका आगमन हुआ पर वह बाबा से खुल कर बात नही कर पा रहा था । बाबा इस बात को परख लिए थे। कि जरुर यह व्य क्ति मुझसे कुछ कहना चाहता है पर कह नही पा रहा है । बाबा से नही रहा गया और उन्होने खुद उस व्यक्ति से पुछ लिया " क्या बात है बेटा ! कोई कष्ट तो नही है। " बहुत कहने पर वह व्यक्ति ने अपनी बात बाबा से बताई और कहा " बाबा आपके इस सुन्दर घोड़े पर मेरा दिल आ गया है ।आप इसकी मनमानी किमत लेलो पर यह घोड़ा मुझे दे दो ।इस घोडे़ को हासिल करने की तीव्र इच्छा जागृत हो रही है।" बाबा के पैरो तले जमीन खिसक गई । बाबा बोले " ये आपने क्या सोच लिया। आप घोड़ा कह कर इसका अपमान कर रहे हैं ।यह घोडा़ नही मेरी औलाद से भी ज्यादा प्रिय है। मै इसके बिना एक पल भी नही रह सकता। आप ऐसी इच्छा का त्याग कर दिजिए ।वह व्यक्ति बहुत गिड़गिडा़या पर बाबा ने एक बात ना सुनी। वे अपनी मजबूरी से मजबूर थे। अंततः उन्होने घोडा़ देने से साफ इन्कार कर दिया बहुत दिन बीत गये, बाबा के दिमाग से यह बात निकल चुकी थी , कि वह व्यक्ति किसी भी परिस्थिति मे वह घोड़ा हासिल करना चाहता था। एक दिन बाबा रात्रि के अन्तिम प्रहर मे उस घोड़े पर सवार होकर कही जा रहे थे। काफी अंधेरी रात थी। बाबा के कानो मे किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी । बाबा से नही रहा गया। उन्होने तुरन्त घोडा़ रोक दिया और जिधर से कराहने की आवाज आ रही थी, उस और चल दिये । जब बाबा उस कराहते हुए उस व्यक्ति के पास पहुंचे, तो उन्होने इधर उधर देखा , दूर दूर तक किसी के होने का आभास नही मिल रहा था। बाबा ने सोचा ऐसी हालात मे इसको छोड़ कर जाना उचित नही है ।उनका जमीर बिना उसकी मदद किये , वहां से जाने की इजाजत नही दे रहा था। उन्होने उस व्यक्ति को सहारा देकर कर घोड़े पर बैठा दिया ।घोड़े पर बैठते ही उस व्यक्ति ने गजब की फुर्ती दिखलाई और घोड़े को ऐड़ मारी और आगे निकल गया ।बाबा समझ गये कि यह उसी व्यक्ति की साजिश है जो आश्रम आया जाया करता था । बाबा का पुरा शरीर कांप रहा था उनके दिल मे यह बात उतर गयी कि आज मेरा घोड़ा मेरे हाथ से निकल गया। कुछ ही दूर जाने के बाद उसने रोबदार आवाज मे बोला " बाबा मुझे माफ कर देना मै ऐसा करने के लिए बिबस था । मैने तो आपसे इस घोड़े को पाने के लिए लाख विनन्ति की पर आपने एक बार भी नही सुनी। मैने आपको कहा था मै यह घोड़ा किसी भी हाल मे हासिल करूंगा सो मैने कर लिया। आज मेरी इच्छा पुरी हो गयी । बाबा को समझते देर नही लगी आज उनकी सबसे प्रिय चीज आज उनसे जुदा हो जायेगी। यह सोच कर उनकी रुह कांप उठी। बलशाली शरीर जैसे असहाय सा हो गया हो। कुछ बोलने के लिए उनके पास शब्द नहीं रहे। कांपती आवाज से उन्होने उस व्यक्ति से कहा "बेटा मै इस घोड़े के बिना ज़िंदा नही रह सकता मरने से पहले एक विनंति करना चाहता हुं आखिर तुने अपनी जीद्द पुरी कर ही ली, पर मेरी एक बात का ध्यान रखना जितना मुझे घोड़ा खोने का दुख नही है उससे कही ज्यादा इस बात का दुख है कि यह बात कोई जान गया तो कोई किसी मजबूर की मदद नही करेगा।कोई किसी पर विश्वास नही करेगा ,कोई किसी मजबुर की मदद के लिए आगे नही आयेगा। इसलिए जो हुआ सो हुआ बेटे , मेरी एक बात जरुर मान लेना किसी भी किमत पर यह बात किसी से मत कहना " इतना कह कर बाबा की आवाज धीमी होती चली गई शरीर से जान निकल जायेगी ऐसा प्रतीत हुआ। जब उस व्यक्ति को कोई आहट नही मिली तो वह घबरा गया । उसके अन्दर का जमीर उसको झकझोरने लगा एक बाबा है कि अपनी सबसे प्रिय चीज खोकर भी इंसानियत का मार्ग नही छोड़ा, एक मै हुं कि अपनी प्रिय चीज पाने के लिए अपनी इंसानियत छोड़ बैठा उसके अन्दर का जमीर जग गया ।
उसने घोड़े का रूख बाबा की तरफ मोड़ लिया ।वहां पहुंचा, तो पाया कि बाबा बहुत दुखी मन से बैठे हुए थे। वह बाबा के चरणो पर गीर कर क्षमा याचना करने लगा। वह बोल रहा था बाबा मै इंसानियत की सारी हदे पार कर चुका था पर मेरे जमीर ने मुझे अन्दर से झकझोर दिया बाबा मेरा अपराध तो क्षमा के योग्य नही है पर भी मै आपसे क्षमा के लिए विनति कर रहा हूं। मै आपसे वादा करता हूं आज से सभी बुरे कर्मो का त्याग कर दुंगा। दोस्तो कहानी कैसी लगी कमेंट बाक्स मे दो शब्द जरुर लिखना --लेखक भरत गोस्वामी
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