SHREE GANESHA-2 श्री गणेशा -२ A RILIGIOUS STORY


 भगवान  श्री गणेश  प्रथम  पूज्य  ,बल और बुद्धि  मे अग्रणी तो है ही,माता पिता की  सन्तान  की गिनती मे भी अग्रणी  माने जाते है। सर्व  संसार मे प्रथम पूजित  श्री गणेश जी के जीवन से जुड़ी एक पुरातन प्रसंग हम इस  कहानी मे प्रस्तुत  करने जा रहे है।                                             भगवान   गणेश और भगवान   कार्तिकेय   दोनों ही  मातृ भक्त ,पितृ भक्त   है।   अपने  कुशल  कौश्लय  से  उन्होने नर और नारायण दोनों का दिल   जीत  का लिया  ।  भगवान कार्तिकेय  तो स्वभाव सेे थोड़ा  सरल है। पर गणेश, तो स्वभाव से  जरा चंचल  हैं  ।दोनो  भाई समवयस्क होने के कारण  आपस मे लडतेे झगडते  किशोरा  अवस्था सेे युवा अवस्था मे प्रवेश करने लगे।   मां देवी  गिरजा  और पिता  श्री भगवान  भोलेनाथ दोनों को खुश देख कर ही खुश हो लेेेेते  ।और दोनो को  समान  रूप से प्यार देनेे की  कोशिश  करते,पर चंचल स्वभाव होने के कारण  भगवान  गणेश  माता पिता को ज्यादा   पसंद है।             देखते देखते  दोनों कब युवा  हो गये  मां  देेेवी गिरजा को अहसास  ही नही हुआ   ।                                               माता को पुुुत्रो के  विवाह की चिंता सताने लगी ।उन्होने  समय निकाल कर एक दिन अपनेे मन की बात  भगवान  भोलेनाथ  केे समक्ष  रख दिया  ।भगवान भोलेनाथ  बहुुुत खुश  हुए  । उन्होने देवी गिरजा सेे मधुर शब्दो मेे कहा   "आपने  हमारे दिल की बात  कह डाली मै भी  कई  दिनो से आपसे इसी बिषय पर बात करनेे वाला  था।  मैैैै एक  असमंजस  की स्थिति  सेे गुजर  रहा हूँ  । दोनो समव्यस्क है इसलिए  मै निर्णय  लेने मेे  संकोच कर रहा हूं  कि पहले   किसका विवाह किया जाए   ।आप  कोई  सुयोग्य  मार्ग  निकालिए  ।"  बहुत विचार  मंथन के बाद  उन्हे कोई युुुुुुक्ति  मील गई । दूसरे  दिन मां देवी  गिरजा ने प्यार से दोनों को बुुुुुलाकर  सारी बाते  बताई  । तय यह हुआ  कि जो कोई सबसे  पहले इस पृथ्वी का   सात चक्कर  लगायेगा   ।वही विजेता  होवेगा और सबसे पहलेे उसका विवाह  सम्पन्न  होगा।               दोनों भाई  इस परिक्षा देेेेने की तैयारी करने लगे।   तब भगवान गणेश  ने माता पिता केे पैैैर छूए बिजयी भव   का आशीर्वाद  ले लिया । उन्होनेे   आगे बढकर  अपनेे भाई कार्तिकेय के  पैर   छूूए  और बिजयी भव का आशीर्वाद ले लिया  । भगवान कार्तिकेय आशीर्वाद  देेेने  केे बाद  मुस्कुुुुुुराये  ।उन्होने अपने वाहन  मयूर  को पृृृृृृथ्वी के सात  चक्कर  लगाने का आदेेश  दिया।                                                 भगवान  गणेश बुद्धि  और बल मे भगवान कार्तिकेय  से अग्रणी  है।  वे सोचे कि मेरा  वाहन चुहा तो  इतना तेज चल नही सकता अतएव मेरी हार निश्चित  है।  इस लिए  उन्होने  अपने विवेक  का प्रयोग  किया। और अपने  माता पिता को आदर से एक स्थान पर बैठने को कहा  उस के  बाद  उन्होने मां देवी गिरजा और पिता श्री भगवान भोलेनाथ दोनों  के सात बार परिक्रमा  कर के उनका पूजन किया ।                        तब मां देवी गिरजा  ने पूछा "गणेश  आप ये सब क्या कर रहे हो आप यही सब करोगे तो परिक्षा के लिए कब निकलोगे  ?"भगवान गणेश  ने  आदर पूर्वक  कहा" मां मै परीक्षा ही तो दे रहा हूं  और आप दोनों की कृपा से मै यह परीक्षा  जीत चुका हूँ  । " भगवान श्री भोलेनाथ और माता  देवी गिरजा  दोनों आश्चर्य चकित हो गये।                     गणेश  कही गये भी नही और कहते है कि मै परीक्षा जीत चुका हूँ  । तब उन्होने भगवान  गणेश  से पूछा "गणेश आप कैसे परीक्षा जीत चुके है   ? तब  भगवान गणेश ने कहा"  भगवान श्री हरि विष्णु के परम  शिष्य  श्री नारद  जी ने मुझसे एक बार  कहा था  कि त्रिभुवन मे माता पिता  से कोई  बडा नही होता माता और पिता पृथ्वी  के  समान है। इस लिए मैने  आप लोगों की परिक्रमा करके यह परीक्षा जीत  लिया  है। " भगवान श्री  भोलेनाथ और माता देवी गिरजा के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान  फैल गई  ।                                           दोस्तों यह कहानी आपको कैसी लगी दो शब्द कमेंट बाक्स  मे जरूर लिखे धन्यवाद - भरत गोस्वामी 

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