SHIV NAGARI KASHI शिव नगरी काशी A RELIGIOUS STORY

काशी बाबा विश्वनाथ जी की प्रिय नगरी है । कैलाश के अलावा भगवान शिव की कोई  प्रिय जगह है तो वह है उनकी काशी नगरी । काशी नगरी भगवान शिव को इतनी प्रिय है कि प्रलय के समय भगवान शिव इसे उठा कर अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं ।इस लिए पृथ्वी पर होते हुए भी इसकी गिनती पृथ्वी पर नहीं होती । वैसे तो भगवान शिव के ली लाओ का न कोई शुरुआत है न कोई अन्त है ।                                                  हरि अनन्त हरि कथा अनंता । कहहू सुनावहू बहू विधि सन्ता  । ।                                                 आज हम काशी नगरी की बहुत ही सुन्दर कथा का वर्णन करने जा रहे हैं ‌।

 शिव नगरी काशी  गंगा नदी के तट पर बसी यह नगरी बहुत ही  पवित्र और पावन है । कहा  जाता है कि जब मां  आदिशक्ति ने परब्रम्ह शिव जी को वरण किया था । तो माता ने अपनेे  त्रिनेेत्र के साथ-साथ उन्हें बहुत सी शक्ति प्रदान की थी ।उस वक्त शिव जी ने भी अपनी महत्ता को कम नहीं होने दिया ।और माता आदिशक्ति को  अर्धांगिनी होने का दर्जा दिया।और गंगा नदी के किनारे पांच कोस के क्षेत्र में मां के लिए  भव्य नगर का निर्माण करवाया ।   यही सुन्दर नगर काशी के नाम से प्रसिद्ध हुई ।  उस वक्त श्रावण मास का महिना था और वहां का रम्य वातावरण  में दोनों ने पुर्ण मास का आनंद लिया । शावन कि रिम झिम  फुहार में माता  गिरजा और शिव जी का यह अलौकिक प्रेम ने श्रावण मास को बहुत ही पावन बना दिया ।                                                              एक दिन अर्ध नारीश्वर भगवान शिव ने अपनी बाईं भुजा के स्पर्श से एक बहुत ही तेजस्वी पुरुष को प्रगट किया  ।जिसकी चार भुजाएं थीं ।  भगवान शिव ने उनका नाम श्री हरि विष्णु रखा । और उनको त्रिलोकी का स्वामी बना दिया । और कहा कि आप तीनों लोकों के मालिक हैं ।इन  तीनों लोकों का रक्षा भार और भरण पोषण का  कार्य मैं आपको सौपता हूं ।  कुछ दिन बाद जब भगवान विष्णु अपनी शेष सय्या पर लेटे हुए थे, तो उनके नाभी क्षेत्र से एक कमल पुष्प निकला ।जो बहुत ही तेज वान था ।तब परब्रह्म शिव जी ने अपनी दाईं भुजा का स्पर्श करके एक और दिव्य  पुरूष को प्रगट  करके उस कमल पुष्प पर बैठा दिया ।और कहा कि "आप का नाम ब्रह्मा  जी है और आपको मैं जीवों और प्राणियों की रचना का कार्य भार सौंपता हूं ।" ऐसा कह कर परब्रह्म स्वरूप शिवजी अन्तर्ध्यान हो गये ।                              कुछ समय के बाद एक दिन उन्होंने भगवान विष्णु को बुलाया और कहा " आप अपने तेज को ओजस्वी बनाने के लिए तपस्या करो  ।तब भगवान विष्णु ने घोर तपस्या किया ।  उनके शरीर के तेज से इतना पानी निकला कि पुरी पृथ्वी जल मग्न हो गई ।   ऐसा प्रतीत होता था कि प्रलय आ गया है ।तब भगवान शिव ने अपनी काशी नगरी को उठा कर अपने त्रिशुल पर रख दिया ।तबसे  काशी नगरी पृथ्वी पर होते हुए भी  पृथ्वी से अलग मानी जाने लगी ।            कुछ समय बीता तब भगवान शिव, भगवान विष्णु के तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्होंने त्रिलोकी का  भार भगवान विष्णु को देकर  विश्व नाथ लिंग की स्थापना करवाई । "इसमें मेरा सदा वास रहेगा " ऐसा कहकर माता गिरजा के साथ कैलाश चले गये ।                                                   अति प्राचीन और अति पुण्य शील होने के कारण  बहुत से लोग आकर काशी में बस गये । भगवान श्री हरि विष्णु भी परब्रह्म  भगवान शिव की इच्छा जान कर  गौ लोक चले गये । और वहां जाकर उन्होंने वैकुंठ नामक अपने  धाम की रचना करवाई । और तीनों लोकों का रक्षण और भरण पोषण का कार्य भार सम्भाल लिया ।                        जब  से आज तक मां गंगा के तटों पर सुबह चार बजे से भक्तों का तांता लगा रहता है ।" हर हर बम बम " के नारों से ,शंख ,डमरू, और धन्टो के ध्वनी से सारा वातावरण शिवमय हो जाता है । जो भी भक्त एक बार यहां आता है वह बार बार काशी आने की कामना रखता है ।                                                      दोस्तों यह कहानी आप को कैसी लगी दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी ।

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