SWARUP MAHATMAYA. स्वरुप महात्म्य एक सुविचार

जगत जननी, मां जगदम्बा,  आदि भवानी, आदि माता, आदिशक्ति,कई रुपों में पूजी जाती है । मां के हर परिस्थिति में एक नया रुप  देखने को मिलता है । मां का हर रुप मन को मुग्ध करने वाला होता है  हम आज  मां के मुख्य नौ स्वरुपों की महिमा के बारे में बात करेंगे ।
                                    मां का पहला स्वरुप  मां शैलपुत्री हैं ,जो भगवान शिव जी को हमेशा के लिए अति प्रिय रही हैैं । इस स्वरुप में  मां हिमालय की पुत्री के रूप मे जन्म लेेेकर  भगवान शिव की अर्धांगिनी बनी थी । जिनकी प्रिय सवारी बैल था ।                                         मां का दूसरा स्वरुप ब्रह्मचारिणी का है । कहा जाता है कि नारद जी के कहने से मां  ने भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या की थी ।उनकी तपस्या इतनी कठोर थी की  सारा ब्रह्मांड डोलने लगा । तब ब्रह्मा जी ने प्रगट होकर मां को आश्वस्त करने के लिए मां से कहा " हे ब्रह्म का आचरण करने वाली ब्रह्मचारिणी देवी आप अपने घर जाइए  । मैं आपको बचन देता  हूं कि आप के अराध्य  भगवान शिव  आपको पत्नी के रुप में वरण करेंगे । आप की   मनोकामना अवश्य पूरी होगी । " ‌‌‌‌‌‌                 मां का तीसरा स्वरूप चन्द्र घंण्टा  देवी का है । मां का यह स्वरुप  हर स्वरूपों से थोड़ा  अलग है ।  अपने भक्तों के दुख को दुर करने के लिए  हमेशा उद्यत रहने वाली, अर्धचंद्र, शस्त्र और घंटा को घारण करने वाली पंंच भुजी माता , अपने भक्तों के लिए हमेशा  युद्ध करने को तैयार रहती है । मां का यह   रुप अत्यंत गंभीर होते  हुए भी बहुत ही सौम्य स्वभाव    लगता है ।  इस स्वरुप    मे   मां की सवारी  सिंह है ।                                                                    मां का चौथा स्वरुप कुष्माण्डा देवी का है  ।  कुछ लोगों का कहना है कि मां  कुष्मांडा देवी पहले सूर्य मंडल मे निवास करती थी । जब पृथ्वी टुट कर  सूर्य से अलग हुई तो वातावरण में  गुरुत्वाकर्षण के अनुपातिय मिलन के प्रभाव से कुछ जीव पैदा हुए  ।उनमे  एक जीव मां   भी थी  ।   जिन्हें मां आदिशक्ति भी कहा जाता है । बाद में इन्होंने अपने शक्ति से  संसार की रचना की थी । मां को  कुम्हण (कोहणा ) बहुत पसंद हैं ।इस लिए भक्त लोग कोहणा(तरबुुज) भेेंट करते हैं । मां का यह स्वरुप चार भुजाएं धारण की हुई है ।और मां की प्रिय सवाारी  सिंह है ।               मां का पांचवा स्वरुप  स्कन्द माता देवी के नाम से प्रसिद्ध है ।     मां के प्रथम पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी था बालक को गोद में लिए मां का यह स्वरुप  सिंह की सवारी  किए हुए हैं ।                           मां  का छठा स्वरुप कात्यायनी देवी के रूप में प्रसिद्ध है । पूर्व काल में कात्यायन नाम के एक ऋषि ने घोर तपस्या करके मां को प्रसन्न किया था। उनकी हार्दिक इच्छा थी कि मां मेरे यहां पुत्री के रूप में जन्म लेेे । मां ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया ।उस समय महिषासुर नाम का एक दैत्य अत्याचार कर रहा था ।जब  देव  गणों को मां के बारे में मालूम पड़ा तो देव गणों ने मां से सहायता मांगी ।मां  ने   महिषासुर का वध करके देव गणों को भय मुक्त किया ।                इस तरह मां के  सातवें स्वरुप में माता कालरात्रि, आठवें में माता महागौरी तथा नौवें स्वरूप में मां सिद्धिदात्री के रुप मे प्रसिद्ध हैं ।         दोस्तों यह सुविचार आप लोगों को कैैैसा लगा दो शब्द जरूर लिखें धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी 

Comments

  1. Bahut badhiya information sir ji... Jai mata di... Ese hi likhte rahiye... Meri shubhkamnaayein.

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