MAA AUR BAP मां और बाप A SOCIAL MOTIVATIONAL STORY'

मां और बाप से बढ़कर इस दुनिया में कोई भी नहीं है ।  भगवान ने भी मां और बाप को अपने से ऊंचा दर्जा दिया है । मनुष्य के जीवन में आने वाले कुछ अनमोल पल जो इस कहानी में दर्शाये गये  हैं । ये वो पल है जिसे मनुष्य चाह कर भी नहीं भूल पाता । जो इन पलों का सही मूल्यांकन कर पाते वो आनंदित होते हैं । और जो सही मूल्यांकन नहीं कर पाते उन्हें जीवन भर पछताना पड़ता है ।
                               देखो जी आज तरूण अठारह महीने का हो गया । आज मैंने  एक ऐसा दृश्य  देखा  तो लगा कि काश्  थोडा और देर तक देख पाती ।" आरती बोली ।                                    "अच्छा कौन सा दृश्य देखा भाई हम भी तो सुने  " शुभम बोला                                                    "   आप सुनोगे तो आप भी खुशी से उछल  पडोगे " आरती बोली                                  "  अरे हां भाई, बताओ तो सही "शुभम बोला              आज अपना तरूण अपने पैरों पर खड़ा हो गया था  ।मैन  जब देखा तो मुझे खुशी का ठिकाना ना रहा । आरती बोली ।                                                        वाकई यह बड़ी खुशी की बात है । देखो बादमाश को  कैसे मुस्करा रहा है । इसको मालूम है हम दोनों इसी के बारे में बात कर रहे हैं । बड़ा स्याना है मेरा बेटा "  यह  कहकर शुभम उसे गोद में उठा लेता है।और जी भर के प्यार करता है ।                                आरती कुछ दिन के बाद  तरूण को फिरअपने पैरों   पर खड़ा देखती है । और जितनी बार देखती है ।उसका ह्रदय हर्ष और उल्लास से भर जाता है । वह तरूण को बार बार गले लगाती है । तरूण  के  छोटे छोटे हाथों को पकड़ कर  आगे बढ़ाने के लिए इशारों से समझाती है ।  तरूण भी खुश होकर आरती के इशारों को समझ कर अपने  नन्हे नन्हेेे कदमो  को आगे बढ़ाता है । यही  कदम  धिरे धिरे चलते चलते एक  दिन किसोरो की दुनिया में घुुुस जाते हैं ।                    फिर नई जगह नये लोग   इस तरह तरूण के कदम  स्कूल  तक पहुंच गए । एक दिन मां और बेटे स्कूल से  घर आते वक्त भींग गये । आरती ने पहले तरूण को कपड़ा बदलने के लिए कहा और खुद भी कपड़ा बदलने चली गई ।    शाम होते होते तरूण को सर्दी  ने पकड़ लिया ।तरूण रात भर सो ना     सका । उसको   परेशान देख  आरती और शुभम भी    नहीं सो पाये  ।  सुबह  उठकर शुभम  ने आरती से तुलसी  का काढ़ा बनाने को बोला  ।  कहने को तो वह काम पर चला गया था पर उसका  दिमाग तो घर पर तरूण के पास ही रह गया था । वह तरूण से इतना प्यार  करता था कि  तरूण जरा सा छींक दे तो उसकी नींद हराम हो जाती थी ।                                           दिन बीतते गए तरूण ने पढ़ाई भी पुुुरी  करली  । उसने नौकरी के लिए रोजगार दफ्तर में अर्जी दे रखी थी ।  कुछ दिन बाद उसे रोजगार दफ्तर का एक  पत्र मिला ।उसमे   उसकी नौकरी का आमंत्रण पत्र था पर दूर होने के कारण  तरूण वहां जाने में   आना कानी  कर रहा था   । लेकिन शुभम ने उसे समझा बुझाकर वहां जाने के लिए राजी कर लिया ।  कुछ दिन बाद एक दिन शुभम की शादी हो गई और अपने पत्नी को साथ लेकर वह काम पर चला गया । समय बीतता गया                                                                   एक दिन अचानक उनकी जिंदगी में एक तुफान सा आ गया । उसके पिता  शुभम की ह्रदय आघात से मृत्यु हो गई । तरूण और उसकी मां के जिन्दगी में  घोर अंधेरा छा गया । किसी तरह से स्थिति सामान्य हो ने पर मां के मना करने पर पत्नी के साथ ही तरूण काम पर चला गया  कारण वह मां से जबरदस्ती नहीं कर सकता था और आरती अपने पति के यादों के साथ ही अपना जीवन यापन कर ना चाहती थी ।      कुछ और   दिनो के बाद आरती को बुढ़ापे की झलक महसूस हो ने लगी । बीच बीच में तरूण छुुुटी लेकर मां के पास आ जाता  उसे देख कर आरती की ममता जाग  जाती और आज भी खाना बनाने से पहले वह तरूण से जरुर पुुुुछती "  खाने में क्या बनाऊ ।  "  और उन कापते हाथो से उसके मन पसंद का खाना बनाती  तीत  दिन बाद अपने पति के शोक से दुखी  आरती भी इस दुनिया से अलविदा हो गयी । मां के अंतिम संस्कार के बाद  तरूण टूट सा गया  था । उसके कदम उस गली के मोड़ पर जाकर रूक जाते थे जिस गली से उसकी मां अक्सर आया करती उसे आभास होता की मां अब इधर से आ जायेगी ।                         बहुत समय बीत जाने के बाद भी तरूण अफसोस की आग   में झुलसता रहा  ।एक दिन अपना दर्द कम  के लिए वह अपने   बच्चों को कह रहा था ।  "मां बाप के बीना  जिंदगी  में कुछ भी  नहीं है मां और बाप  बच्चों के लिए ईश्वर का एक वरदान है उनको ऐसा प्यार देना    चाहिए की उनके जाने के बाद  दिल मे किसी तरह का मलाल न हो ।   नाही उनके जाने के बाद पित्र पक्ष में  कौवा ढूूंढना पडे  । क्योोंकि कौवे अब चालाक हो गये है ।  वे उस वक्त लुप्त हो जाते हैं । क्योंकि वह जानते हैं कि इस सज्जन के हाथ का खाना ठीक नहीं है क्योंकि जीते जी इन्होंने  प्यार से अपनेेे मां बाप को एक गिलास पानी नहीं पिलाया और उनके मरने के बाद रसगुल्ले लेकर हमको  खिलाने के लिए बेताब है कि हमारे खा   लेने पर मां बाप को मिल जायेगा ।                                                      दोस्तों कहानी कैसी लगी दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी

Comments

  1. बहुत सुंदर कथा है।

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर कहानी ।हृदयस्पर्शी और प्रेरक

    ReplyDelete
  3. गजब की कहानी ही नहीं हर किसी के जीवन की शुरुआती हकीकत
    हम सबको माँ व बाप के रहते हुए ही उनका मान ~ सम्मान ख्याल रखना चाहिए ।। बाद मे तो केवल ~~~~?.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

JO BHI HOTA HAI AACHE KE LEA HE HOTA HAI जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है A MOTIVATIONAL STORY

KALIYUG KA ANAT कलियुग का अन्त

DEVADHIDEV MAHADEV देवाधिदेव महादेव A RELEGIOUS STORY