MISHAL A - DOSTI मिसाल ए- दोस्ती HISTORICAL STORY
वीरों की इस पावन धरती पर ऐसे ऐसे वीर पैदा हुए हैं जिन्होंने अपनी कृत्य और पराक्रम से इस धरती का नाम रोशन किया है । ऐसे दो वीरों की ऐतिहासिक गाथा का वर्णन हम करने जा रहे हैं । जो माता मैहर के शिष्य के रूप में प्रसिद्ध है ।जिन्हे इस धरती पर आल्हा-ऊदल के नाम से जाना जाता है ।
पूर्वकाल में यक्ष राज और बक्ष राज नाम के दो सगे भाई थे । दोनों भाई यक्षराज और बक्ष राज राजा परिमल के सेना पति थे । राजा परिमल महोबा गढ़ के राजा थे । यक्षराज एक बहुत ही नेक और ईश्वर पर विश्वास रखने वाले ,सबको समझा बुझाकर चलने वाले,एक दुसरे की समस्या को हल करने वाले, बहुत ही अलग सुझबुझ के इंसान थे । वहां लोग एक दूसरे से परस्पर प्रेम किया करते थे । कृषि, व्यवसाय ,धन दौलत से भरपूर उनका राज्य बहुत ही खुशहाल था ।उनका छोटा भाई बक्षराज वह बहुत ही बहादूर था राजा परिमल के यहां माडो गढ का राजा कडगा राय नाम का दुष्ट राजा था । वह रात दिन यही सोचा करता था कि कौन सा चक्कर चलाऊं ताकी महोबा का पुरा राज्य मुझे मिल जाए । कुछ दिन बाद वह अपने इस घृणित कार्य में सफल हो गया । उसने इन्सानियत की सारी हदें पार कर दी ।उसने युद्ध मे दोनों भाइयो को परास्त करके उन्हे जिन्दा ही गन्ना से रस निकालने वाली मशिन कोल्हू में पिरवा दिया । और उसके मृतक शरीर को नगर के मुख्य द्वार पर टंगवा दिया । उस वक्त आल्हा पांच वर्ष का था । और यक्षराज कि पत्नी यानि आल्हा की मां रानी देवला गर्भवती थी ।अपने दो सेवक और एक सेविका को लेकर रात के अंधेरे में अपने बच्चों की जान बचाने के लिए रानी देवला बिहड़ के जंगलों में छुप गई । एक माह के बाद वह किसी तरह बचते बचाते दिल्ली के एक सुबे में पहुंच गई । उस वक्त वहां के सुबेदार मुस्लिम सैयद पठान थे । जब पहरेदारों द्वारा उन्हें यह सुचना मिली कि एक मजबुर औरत हमारे सुबे में आई है और मदद की गुहार लगा रही है । तो वे तुरंत पहरेदारों को आदेश दिये कि यथा शीघ्र उसको मदद दी जाए और दरबार में पेश किया जाए । शाही पालकी द्वारा जब पहरेदार रानी देवला को सैयद पठान के दरबार में ले कर जाते हैं तो रानी देवला की दशा देखकर कर उसकी सारी व्यथा को सुनते हैं । और कहते हैं " बहन आप जरा सी चिन्ता मत करो । यहां आपको किसी तरह की तकलीफ़ नहीं होने दुंगा, आप निश्चित हो कर जब तक रहना चाहो, रहो यह एक पठान की जुबान है । मेरे जीते जी आपको किसी से डरने की जरूरत नहीं है । " और सैयद पठान ने पांच बिगहा जमीन में एक हाता तैयार करवाया । हाते के अंदर मंदिर ,बाग बगीचे,और पोखरा बनवा कर वहीं सेवक सेविका देकर रानी देवला को रहने का प्रबंध करवा दिया । कुछ दिन बाद रानी देवला ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया । जिन्हें दुनिया वीर ऊदल के नाम से जानती है । वीर ऊदल के जन्म के समय आकाश में एक अजीब तरह का नजारा दिखा चारों तरफ शुुभ ही शुभ लक्षण दिखाई देने लगे । पुुुरे सुबे में इस शुभ समाचार से खुशी की लहर दौड़ गई । सैयद पठान ने खुशी के इस माहौल को और पुरे सुुुबे मेें गरम जोशी से मनाया । कुछ दिन बीता बच्चे बड़े होने लगे तो उनका हाते के बाहर आना जाना शुरू हो गया ।आल्हा तो बहुत शांत स्वभाव का था ,पर ऊदल तो बहुत ही शरारती किस्म का बालक था । वह सैैैयद पठान को चाचा सैयद कह कर पुकारता था । एक दिन खेल खेल में चाचा सैयद के लड़के के का प्रिय मुर्गा ऊदल के हाथ से मर जाता है । चाचा सैयद के पास इस बात कि शिकायत जाती है , तो चाचा सैयद बहुत खुश होते हैं । और कहते हैं कि " ऊदल यदि पुरे सुबे के मुर्गों को मार डालेगा तो भी मैं उसे कुछ नहीं बोल सकता हूं । और उसको इनाम दुंगा मैं चाहता हूं कि वह एक वीर बालक बन कर अपने बाप के गति का बदला लेवे । ताकी मेरी प्यारी बहन को इंसाफ मिल सके । " कुछ दिन बाद चाचा सैयद ने दोनों राज कुमारो को शस्त्र और शास्त्र शिक्षा के लिए गुरुकुल भेज देते हैं । कुछ वर्ष बाद जब दोनों राज कुमार गुरूकुल से वापस घर आते हैं तो उनको देखकर चाचा सैयद को खुशी का ठिकाना नहीं रहता है । वे अपने दरबार में उन्हें विशेष दर्जा देते हैं । और सम्मान देते हैं । दोनों राज कुमार चाचा सैयद के राज भार में भरपूर हिस्सा लेते हैं ।एक दिन चाचा सैयद की पुत्री जन्नत कुछ सैनिकों के साथ मेला देखने के लिए जाती है । तो साथ में उदल भी जाने का जीद करता है । मेला घुमते घुमाते दोपहर का समय हो जाता है । वहीं से लौटते वक्त चाचा सैयद का दुश्मन उनकी पुत्री जन्नत को अगवा कराने के इरादे से आक्रमण कर देता है । सैनिकों में घमासान युद्ध होने लगता है । ऊदल के जिंदगी की यह पहली लड़ाई है । उधर चाचा सैयद को देर होने के बाद कुछ बुरा आभास होने पर सैनिकों को पता लगाने का आदेश देते हैं और स्वयं भी सैनिकों के साथ चल देते हैं । इधर उदल दुश्मन के सैनिकों पर भुखे शेर के जैसा टुट पड़ता है । कच कच कच कच तेगा बोले, कीच कीच बोल रही तलवार । हीन हीन हीन हीन घोडा बोले, हाथी रहे करै फुफकार । देखी के उदल रद्ररुप , कितनों की धोती हुई खराब । जेके मुका हनी के मारे ,ससुरे के सांस पताले जाए । एक को खीचै दो को मारे ,मारी मारी किहसी खलिहान । लड़ते-लड़ते संध्या भई गई, बचे न एकहू गबरू जवान । कुछ देर के बाद चाचा सैयद अपने सैनिकों के साथ वहां आते हैं तो जन्नत वहां का सब समाचार सुनाती है । तो चाचा सैयद उदल को गले लगा लेते हैं । और भाव बिभोर होकर कहते हैं । "बेटा तू वाकई राजपूत की औलाद है । मैं तुम्हारे बहादुरी से खुश हो कर सतरह गांव इनाम देता हूं । और एक बचन देता हूं की आज के बाद जहां तुम्हारा पसीना गिरेगा, वहां मैं अपना खुन बहा दूंगा । ........"। दोस्तों कहानी कैसी लगी दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें और अपने दोस्तों को शेयर करें बहुत बहुत धन्यवाद हर-हर महादेव लेखक ---भरत गोस्वामी
Comments
Post a Comment