JAI BABA BHOLENATH जय बाबा भोलेनाथ A RELIGIOUS STORY

बाबा भोलेनाथ  तीनों लोकों के मालिक है ।ये मैं नहीं कहता ये सारे वेद , शास्त्र कहते हैं । बाबा भोलेनाथ की एक ऐसी  कहानी जिसने  लोगों के दिलों में बाबा भोलेनाथ के प्रति अपार श्रद्धा भर दिया । ऐसे तो भगवान भोलेनाथ की सैकड़ों  लीलाएं है । पर यह लीला कथा अपने आप में अद्भुत है ।
                  ऋषि कश्यप  की पत्नी दिति ने हिरण्य कशिपु और  हिरण्याक्ष  नाम के  दो पुत्रों को जन्म दिया । जो बहुत बलवान और शक्तिशाली थे । अपने जीवन काल  मेें उन्होंने  अत्याचार की सारी सीमाएं पार कर दी । और  अंत में भगवान श्री हरि विष्णु के हाथों मारेे गये । उनके मारे  जाने के बाद सभी दिशाएं सुशोभित  हो उठी नदियां अविरल बहने लगी ।  चारों तरफ भगवान श्री हरि विष्णु की जय जयकार होने लगी । उनके मृत्यु का समाचार उनकि माता दिति  को मिला  तो  वह आग बबूला हो उठी ।                                                            अत्यंत दुखी होकर उनकी माता दिति ने  जाकर  घोर तपस्या करके अपने पति को खुुुश कर  दिया और बदले में एक ऐसे पुत्र कि मांग कि जो उनकी सेवा कर सके ।   तब ऋषि कश्यप ने कहा  " आपकी मनोकामना पूरी होगी । लेकिन इस बचन पूर्ति के लिए  आपको भगवान भोलेनाथ की पूजा करनी पड़ेंगी । " तब दिति ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की  ।  किसी तरह यह बात देवराज इंद्र को मालूम पड़ी  तो उनकी नींद हराम हो गयी ।  और वे चुपचाप आकर माता दिति की सेवा करने लगे । सेवा करते करते जब बहुत दिन बीत गया तो  माता दिति ने देवराज इंद्र से पुछा  " क्या बात हैै वत्स तुम्हारी कोई अभिलाषा है तुम मुझसे कहो मैं अवश्य पूरा करूंगी "  तब देवराज इन्द्र ने कहा " हे माते  मेरी इतनी इच्छा है कि जो आपका पुत्र हो उसके अंदर भातृवत प्रेम हो । "   "मैैं तुम्हें वचन देती हूं ऐसा ही होगा ।"   दिति  ने कहा ।                          कुछ समय बाद जब दिति गर्भवती  हुई तो देवराज इन्द्र ने उसके गर्भ को धोखे से नष्ट करना चाहा फिर भी भगवान भोलेनाथ की असीम कृपा से  कई खंड होने  के बाद भी गर्भ नष्ट नहीं हुआ ।  जब बालक का जन्म हुआ तो  वह भातृवत प्रेम का प्रतीक माना गया । देवराज इन्द्र ने खुुश होकर उसे  अपने यहां  बुला लिया ।                                                            फिर माता दिति अकेली पड़ गयी और उन्होंने ऋषि कश्यप को खूश करने के लिए घोर तपस्या किया । जब ऋषि कश्यप खुश हो गये तो माता दिति ने गर्भधारण करने की इच्छा जाहिर किया और ऐसे पुत्र कि मांग कि की मुझे ऐसा पुत्र चाहिए जिसके उपर किसी अस्त्र शस्त्र का प्रभाव ना हो ।  तब ऋषि कश्यप ने कहा" ऐसा ही होगा " कुछ दिन बाद उनको पुत्र कि  प्राप्ति  हुई । उसका नाम  वज्रांग हुुआ । वह जब बड़ा हुआ तो माता दिति ने  देवराज इन्द्र के द्वारा किया गया  धोखा  वाली बात बताई । तो वह  क्रोध बस देवराज इंद्र पर चढ़ाई कर दिया । और उनको परास्त कर के मां के  समक्ष लाया ।                       यह बात जब  ब्रह्मा जी को मालूम पड़ी तो उन्हें बहुत दुख हुआ ।  घर का कल्ह बढ़े नहीं इस लिए उन्होंने वज्रांग को समझा बुझाकर देवराज इन्द्र को मुक्त कराया । तब बहुत वज्रांग ने कहा  "पितामह आपके कहने से मैं इन्हें छोड़ रहा हूं । इन्होंने मेरे मां के साथ धोखा किया है ।  तब प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी  ने उसे वरदान  मेें भगवान भोलेनाथ की भक्ति के मार्ग बताए ।   तब वज्रांग ने समुद्र के अंदर घुस कर एकांत मेें बैठकर घोर तपस्या करने लगा । उसकी पत्नी वारांगी उसका  लौटने का इंतजार करते करते किनारे पर ही तपस्या करने बैठ गई ।   दोनों ने ऐसी तपस्या की    त्रीभुवन में उनके नाम  की चर्चा होने लगी । तब देवराज इन्द्र ने उसकी तपस्या भंग करने के लिए अपने सैनिकों को भेजा ।  मुश्किल से वारांगी ने अपनी तपस्या पुुुरी किया ।                                    जब उसका पति तपस्या के बाद  लौट कर घर आया तो वारांगी ने देवराज इन्द्र की ओझी हरकतों के बारे में बतलाया । और  कहा कि मुझे ऐसा पुत्र चाहिए जो देवराज इन्द्र से मेरे अपमान का बदला ले सके । वज्रांग तो भक्ति का व्रत ले लिया था  फिर उसने सोचा कि यदि पत्नी कि इच्छा कि  पूर्ति नहीं करता हूं तो इसे बहुत कष्ट होगा । तब उसने मजबूर हो कर कहा " तुम्हारी इच्छा  अवश्य पूरी होगी ।   कुछ दिन बाद वारांगी को  पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ।  जो इतना तेजवान था ,कि देव और दानव   उसके  अट्टहास से कांप उठते थे ।   जब वह बड़ा होकर मां से आज्ञा लेकर  पर्वत पर तपस्या करने चला गया ।  उसने भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए अपने शरीर का अंग काट काट कर अग्नि को देना शुरू कर दिया  । वह किसोर  कोई और नहीं था ,प्रख्यात राक्षस तारकासुर था ।  भगवान भोलेनाथ को खुश करके अमरत्व   का वरदान मांगना चाहता था, पर  भगवान ने कहा " इस संसार में केवल अमरता मुझे  प्राप्त है और किसी को नहीं ।" तो उसने केवल आपके हाथ से मेरी मृत्यु हो ऐसा वरदान मांग लिया । भगवान भोलेनाथ   ने छितिज की ओर देखा और मुस्कुराए  उनके मुंह से अनायास ही निकल गया । " तथास्तु  "               दोस्तों यह कहानी कैसी लगी   आप कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी  

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