EK ADBHUT VART KATHA एक अद्भुत व्रत कथा A RELIGIOUS STORY

मातृत्व शक्ति के सामने  दुनिया में ऐसी  कोई शक्ति नहीं जो मातृत्व की बराबरी कर सके । मातृ दिवस की इस पावन त्योहार पर समर्पित यह  व्रत कथा जिसका  जन्म माता गिरजा  के कारण हुआ और विश्व में प्रसिद्ध हुआ । श्रृष्टि के बाद दो ही धर्म स्थल थे । एक शिवालय और दुसरा गिरजाघर भगवान शंकर जी ने अपनी पत्नी को बराबरी का दर्जा दिया ।और अर्धनारीश्वर कहलाएं । उन्होंने  पुरूवोत्तर दिशा मे स्वंय , पश्चिमोत्तर में मां गिरजा  को प्रधानता दी ।इस लिए पुरूवोत्तर में शिवालय और पश्चिमोत्तर में  गिरजाघर प्रसिद्ध हुए ।(जिन्हें आज चर्च के नाम से जाना जाता है )   यह व्रत सब तरह से मंगल कारी और सभी के हर तरह की समस्या को दूर करने वाला है ।
                             बहुत समय पहले एक धर्मी राजा ने एक बहुत ही रमणीय  शिवालय का निर्माण करवाया । उस शिवालय की यह विशेषता थी कि उसके आकर्षण से प्रभावित होकर नर ,नारायण, देेव, दानव कोई भी मोहित हुए बिना नहीं रह सका । वह शिवालय इतना प्रसिद्ध हो गया  मां गिरजा ने स्वंंय भगवान शंकर से   कहा कि" मुझे उस शिवालय के दर्शन करने की हार्दिक इच्छा हो रही है ।" । भगवान शंकर जी ने माता   की इच्छा पुर्ति करने के उद्देश्य से वहां के लिए प्रस्थान किया ।                   वहां पहुंचकर माता  ने जब वहां की शोभा देेेखी तो  देखी तो बहुत खुश हुई । और वहां कुछ दिन रहने की इच्छा जाहिर की । शंकर जी ने उनकी  इच्छा पूरी करने की स्वीकृति देे दी। एक दिन  माता को  चौसर खेलने की इच्छा हुई । फिर क्या  चौसर की बिसात बिछ गई । एक तरफ भगवान शंकर जी और दुसरी तरफ माता गिरजा दोनो ने मिलकर खेल शुरू किया । कुछ देर बाद शिवालय का पुजारी  आया और  दोनों का खेल देखने लगा । इस तरह माता ने पुजारी से पुछा तुम तो खेल देख रहे हो । बताओ खेल कौन जितेगा । चापलूसी के चक्कर मे पुजारी ने शंकर जी की तरफ इशारा किया । माता को बहुत बुरा लगा पर वे चुपचाप खेलती रही और अन्त मे माता की जीत हुई ।                                                             तब  तो पुजारी को देख कर   माता आग बबूला हो गई । शंकर जी समझ गए कुछ ना कुछ अनर्थ होने वाला है । उन्होंने माता गिरजा को समझाने-बुझाने की बहुत कोशिश की पर माता ने उनकी एक नहीं सुनी और पुजारी को श्राप दे डाला  "जाओ तुमने मुझे निचा दिखाने की कोशिश की तुम आज से अभी से कोढ़ी हो जाओगे । "             पुजारी  तुरंत  कोढी हो गया उसे क्या मालूम कि ये दोनों मानव नहीं  भगवान शंकर और माता गिरजा है । मचा हड़कंप और यह बात आग की तरफ चारों तरफ फैैैैल गई । बहुत दिन यातना सहने के बाद एक दिन पुजारी का भाग्य  जाग गई । स्वर्ग से कुछ अप्सराएं 
भगवान शंकर की पूजा करने आई । उन्होंने अपना भेष बदलकर उस शिवालय में प्रवेश किया । पुजा अर्चना के बाद उनकी दृष्टि पुजारी पर पड़ी ।उसमे से एक अप्सरा बहुत भावुक होकर पुजारी से पुछा "बाबा आपका यह रोग जन्म जात है या बाद मे किसी कारण बस हुआ ।" पुजारी से नहीं रहा गया ,उसका दिल का दर्द  छलक कर आसूओ के रुप मे बह निकला ।और उसने अपना सारा वृत्तांत सच सच उस अप्सरा को सुना दिया ।                                                अप्सरा और भावुक हो उठी  उसने पुजारी से कहा "  बाबा अब आपके बुरे दिन गए  आप के अच्छे दिन आने वाले है । आप भगवान शंकर जी का सोलह सोमवार का व्रत करो ।  उसकी सारी विधि मै आपको बता देती हुं ।आपका अवश्य कल्याण होगा ।" जैसा उस देबी ने कहा था वैसा ही  पुजारी ने किया । और सोलह सोमवार व्रत  किया वह सुबह ही नहा धोकर भगवान शंकर की पूजा अर्चना करता केवल जल ग्रहण करके  वह पुरे दिन पुष्प भांग धतूरा आदि वस्तुएं भगवान को अर्पण करके शाम को आधा किलो आटे का प्रसाद बनाता सबको बांटने के बाद स्वंय प्रसाद ग्रहण करता । इस तरह उसका व्रत पूर्ण हुआ सतरवे सोम वार को उसने अपने सभी बन्धुवान्धव के साथ आधा किलो आटे का चुरमा बना कर सबको बाटकर स्वंय  प्रसाद ग्रहण किया । उस रात्रि को भगवान शंकर का ध्यान करके वह  सो गया ।सुबह जब उसने अपने बदन को देखा तो दंग रह गया ।उसकी काया पुरी तरह से रोग मुक्त हो चुकी थी ।                                        दोस्तों यह व्रत कथा आपको कैसी लगी आप दो शब्द जरूर लिखें धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी

Comments

  1. बहुत-बहुत सुन्दर कथा भाई जी।बहुत-बहुत धन्यवाद

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