BHOLENATH KI BHASM MAHIMA भोलेनाथ की भस्म महिमा A RILIGIOUS STORY
भगवान भोलेनाथ के भस्म की महिमा अत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी है ।जो मनुष्य अपने आप को भोलेनाथ का भक्त समझते हैं । वे भस्म की महिमा को अच्छी तरह से समझते हैं ।एक बार भस्म की महिमा की कथा स्वंय भगवान ब्रह्मा जी ने अपने प्रिय पुत्र नारद जी को सुनाई थी । हम उसी कथा को आपके समक्ष रखने जा रहे हैं । पूर्व काल में एक बामदेव नाम के शिवभक्त हुए । जो शिवजी के भक्ति में इतने लीन हो गए कि उनकी प्रसिद्धि तीनो लोकों में छा गई । वे एक दिन सुबह भ्रमण करते करते ऐसे वन में चले गए । जहां केवल भूत प्रेत रहते थे । कोई भी मनुष्य वहां आना जाना पसंद नहीं करता था । वह निर्जन स्थान भूतों का गढ़ के नाम से बदनाम था । वहीं पर एक ब्रह्म राक्षस रहा करता था जो स्वभाव से बहुत ही क्रूर था । जब उसने बामदेव को देखा तो बहुत प्रसन्न हुआ ।और सोचा कि आज बहुत दिनों के बाद इतना हृस्ट पुष्ट मनुष्य मिला है ।इसको खाने मेें बहुत मज़ा आयेगा । यह सोचकर वह मन ही मन बहुत भाव विभोर हो गया । वह शिव भक्त बामदेव की तरफ दौड़ा । पहले तो वह सोचा कि बामदेव मुझे देखकर डर जाएगा ।और बेहोश हो जायेगा । मैं आसानी से उसे भक्षण कर पााऊंगा। पर बामदेव के चेहरे पर किसी तरह का कोई परिवर्तन न देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । वह पहली बार ऐसा मनुष्य देेख रहा था। जो उसे देख कर इतने सहज भाव से उसकी तरफ देख रहा था ।वह गुस्से से लाल पीला होते दीख रहा था । क्रोध के वशीभूत होकर वह अपने दोनो हाथों सेे बामदेव को उठाने के ज्यो तैयार हुआ । त्यो एक अद्भुत चमत्कार हो गया ।बामदेव के शरीर के स्पर्श होते ही उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया । वह एक टक बामदेव को देखने लगा ।शिव भक्त बामदेव मे उसे भगवान भोलेनाथ का दर्शन हुआ ।
वह आश्चर्यचकित होकर बामदेव के चरणों पर गीर पड़ा ।और कहने लगा "प्रभु मुझे क्षमा कर दिजीए मैं बहुत बड़ी भूल करने जा रहा था ।भुख और प्यास बुझाने के प्रयास में मैं बहुत विवेक हीन हो गया था । प्रभु आप मेरे अपराध को क्षमा करें । बामदेव बहुत तरह से समझाने की कोशिश कर रहा था । कि भाई मैं प्रभु नहीं हूं ।मैं एक साधारण मनुष्य हूं ।पर आप है कि मानने को तैयार नहीं है । यह मेरा नहीं यह सब इस भस्म का चमत्कार हैं जो मै अपने शरीर पर लगाया हूं । यह भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय भस्म है जिसके लगाने मात्र से हर तरह के दुख संताप दूर हो जाते हैं । और दुर्बल से दुर्बल मनुष्य भी भय से मुक्त हो जाता है । शिव भक्त बामदेव के बहुत समझाने के बाद भी वह ब्रह्मराक्षस कुछ सुनने को तैयार नहीं था । वह कह रहा था कि "हे महां पुरुष आपके स्पर्श मात्र से मेरा ह्रदय परिवर्तन हो सकता है तो आप अवश्य कोई देव है जो मेरी इस दशा से मुझे मुक्ति दिला सकते है । आप मेरे इस पापमय जीवन से मुक्ति का कोई मार्ग बताने कि कृपा करे ।" इस तरह दीन भाव से विनती करने पर अनायास ही उनके मुख से यह शब्द निकल पड़े । "ठीक है मैं तुम्हें मुक्ति का मार्ग बताउंगा पर तुम्हें पहले अपना पूर्ण परिचय देना होगा ।" तब उस ब्रह्म राक्षस ने अपना परिचय देना शुरू किया ।वह कह रहा था । "पूर्व जन्म में मैं एक दुष्ट राजा था , मैं पराई स्त्रियों के साथ भोग विलास मे लिप्त रहता था । और अपनी स्त्री को कभी देखा ही नहीं । मेरी इस दुष्टता का बहुत दूर दूर तक कुप्रचार हो गया था । फिर पड़ोसी राजा ने एकाएक मेरे राज्य पर आक्रमण करके मेरा बध कर दिया ।तब भगवान यमराज के दूत मुझे ले गये और ले जाकर मुझे एक रक्त से भरे कुएं में डाल दिया । । मैं लाख गिड़गिड़ाता रहा पर किसी ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया । कुछ दिन बाद उन्होंने मुझे कुएं से बाहर निकाला और भगवान यमराज के सामने पेश किया । उन्होंने कहा इस दुष्ट को ऐसी जगह छोड़ आओ । जंहा इसको न पानी मिले ना भोजन यह तड़प तड़प के मरता रहे । उनके दूतों ने वैसा ही किया जैसा भगवान् यमराज ने कहा था । फिर भुख प्यास से तड़प तड़प कर एक दिन मेरी मृत्यु हो गई ।तबसे मैं कई योनियों में जन्म लिया ।यह मेरा पच्चीसवां जन्म है । पर आपके स्पर्श मात्र से जो सुख मुझे मिला है वह सुख मुझे कभी प्राप्त नहीं हुआं । तब शिव भक्त बामदेव ने उस राक्षस से कहा " मैं तुम्हें इस योनि से मुक्ति दिला सकता हूं पर पहले भोलेनाथ के इस भस्म और भस्म के महत्व के बारे में एक कथा सुनना होगा । जिसके श्रवण मात्र से तुम्हें मुक्ति मार्ग अवश्य मिल जायेगा । प्राचीन काल मे एक ब्राह्मण रहता था वह महां पापी,महा अधर्मी ,चोर ,और सदा झूठ बोलने वाला था । और इसके अलावा पर स्त्री गामी था ।एक दिन किसी स्त्री के साथ दुराचार करते पकड़ा गया और लोगों ने उसे पीट पीट कर मार डाला ।उस स्त्री के पति ने उसे नगर से बाहर फिंकवा दिया । जहां उसे फेंका गया था ।पास में ही भगवान भोलेनाथ का एक मंदिर था । भगवान भोलेनाथ के लिग से भस्म उड़ कर उस ब्राह्मण के ललाट पर आकर लग गई । भस्म के लगते ही वह सारे पाप से मुक्त हो गया ।जब तक यमराज के दूत आते उसके पहले ही शिवदूत आकर उसे शिव लोक ले जाने का उद्यम करने लगे ।तब तक यमदूत भी वहां आ पहुंचे । और बोले " यह तो महां पापी है, यह कैसे शिव लोक का अधिकारी हो गया । तब शिव दूतों ने भस्म वाली बात बताई और कहा कि " भगवान भोलेनाथ की प्रिय भस्म के लग जाने से यह सारे पापों से मुक्त हो चुका है । इस तरह वह ब्राह्मण शिवलोक में जाकर रहने लगा ।और भगवान भोलेनाथ की सेवा करने लगा । इतना कहते कहते शिवभक्त बामदेव ने अपने थैले में रखी कुछ भस्म को उस राक्षस के ललाट ,दोनो कान,कंठ , ह्रदय , दोनो भुजा ,और नाभि पर लगा दिया । भगवान भोलेनाथ की इस प्रिय भस्म के लगते ही उस राक्षस का वर्ण एक सुंदर और स्वस्थ शरीर में बदल गया । भगवान भोलेनाथ की भस्म की इस महिमा को देखकर राक्षस शिवभक्त बामदेव के चरणों में गीर पडा ।और विधि पूर्वक इस भस्म धारण करने की विधि समझ कर अच्छा आचरण करते हुए सुख पूर्वक बहुत दिनों तक जीता रहा और अन्त में भगवान भोलेनाथ के प्रिय नगर शिवलोक को चला गया । दोस्तों यह उत्तम कथा के कहने और सुनने मात्र से सारे पाप समूल नष्ट हो जाते हैं।यह कथा आपको कैसी लगी कमेंट बॉक्स मे दो शब्द जरूर लिखें । बहुत-बहुत धन्यवाद ।लेखक-भरत गोस्वामी
वह आश्चर्यचकित होकर बामदेव के चरणों पर गीर पड़ा ।और कहने लगा "प्रभु मुझे क्षमा कर दिजीए मैं बहुत बड़ी भूल करने जा रहा था ।भुख और प्यास बुझाने के प्रयास में मैं बहुत विवेक हीन हो गया था । प्रभु आप मेरे अपराध को क्षमा करें । बामदेव बहुत तरह से समझाने की कोशिश कर रहा था । कि भाई मैं प्रभु नहीं हूं ।मैं एक साधारण मनुष्य हूं ।पर आप है कि मानने को तैयार नहीं है । यह मेरा नहीं यह सब इस भस्म का चमत्कार हैं जो मै अपने शरीर पर लगाया हूं । यह भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय भस्म है जिसके लगाने मात्र से हर तरह के दुख संताप दूर हो जाते हैं । और दुर्बल से दुर्बल मनुष्य भी भय से मुक्त हो जाता है । शिव भक्त बामदेव के बहुत समझाने के बाद भी वह ब्रह्मराक्षस कुछ सुनने को तैयार नहीं था । वह कह रहा था कि "हे महां पुरुष आपके स्पर्श मात्र से मेरा ह्रदय परिवर्तन हो सकता है तो आप अवश्य कोई देव है जो मेरी इस दशा से मुझे मुक्ति दिला सकते है । आप मेरे इस पापमय जीवन से मुक्ति का कोई मार्ग बताने कि कृपा करे ।" इस तरह दीन भाव से विनती करने पर अनायास ही उनके मुख से यह शब्द निकल पड़े । "ठीक है मैं तुम्हें मुक्ति का मार्ग बताउंगा पर तुम्हें पहले अपना पूर्ण परिचय देना होगा ।" तब उस ब्रह्म राक्षस ने अपना परिचय देना शुरू किया ।वह कह रहा था । "पूर्व जन्म में मैं एक दुष्ट राजा था , मैं पराई स्त्रियों के साथ भोग विलास मे लिप्त रहता था । और अपनी स्त्री को कभी देखा ही नहीं । मेरी इस दुष्टता का बहुत दूर दूर तक कुप्रचार हो गया था । फिर पड़ोसी राजा ने एकाएक मेरे राज्य पर आक्रमण करके मेरा बध कर दिया ।तब भगवान यमराज के दूत मुझे ले गये और ले जाकर मुझे एक रक्त से भरे कुएं में डाल दिया । । मैं लाख गिड़गिड़ाता रहा पर किसी ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया । कुछ दिन बाद उन्होंने मुझे कुएं से बाहर निकाला और भगवान यमराज के सामने पेश किया । उन्होंने कहा इस दुष्ट को ऐसी जगह छोड़ आओ । जंहा इसको न पानी मिले ना भोजन यह तड़प तड़प के मरता रहे । उनके दूतों ने वैसा ही किया जैसा भगवान् यमराज ने कहा था । फिर भुख प्यास से तड़प तड़प कर एक दिन मेरी मृत्यु हो गई ।तबसे मैं कई योनियों में जन्म लिया ।यह मेरा पच्चीसवां जन्म है । पर आपके स्पर्श मात्र से जो सुख मुझे मिला है वह सुख मुझे कभी प्राप्त नहीं हुआं । तब शिव भक्त बामदेव ने उस राक्षस से कहा " मैं तुम्हें इस योनि से मुक्ति दिला सकता हूं पर पहले भोलेनाथ के इस भस्म और भस्म के महत्व के बारे में एक कथा सुनना होगा । जिसके श्रवण मात्र से तुम्हें मुक्ति मार्ग अवश्य मिल जायेगा । प्राचीन काल मे एक ब्राह्मण रहता था वह महां पापी,महा अधर्मी ,चोर ,और सदा झूठ बोलने वाला था । और इसके अलावा पर स्त्री गामी था ।एक दिन किसी स्त्री के साथ दुराचार करते पकड़ा गया और लोगों ने उसे पीट पीट कर मार डाला ।उस स्त्री के पति ने उसे नगर से बाहर फिंकवा दिया । जहां उसे फेंका गया था ।पास में ही भगवान भोलेनाथ का एक मंदिर था । भगवान भोलेनाथ के लिग से भस्म उड़ कर उस ब्राह्मण के ललाट पर आकर लग गई । भस्म के लगते ही वह सारे पाप से मुक्त हो गया ।जब तक यमराज के दूत आते उसके पहले ही शिवदूत आकर उसे शिव लोक ले जाने का उद्यम करने लगे ।तब तक यमदूत भी वहां आ पहुंचे । और बोले " यह तो महां पापी है, यह कैसे शिव लोक का अधिकारी हो गया । तब शिव दूतों ने भस्म वाली बात बताई और कहा कि " भगवान भोलेनाथ की प्रिय भस्म के लग जाने से यह सारे पापों से मुक्त हो चुका है । इस तरह वह ब्राह्मण शिवलोक में जाकर रहने लगा ।और भगवान भोलेनाथ की सेवा करने लगा । इतना कहते कहते शिवभक्त बामदेव ने अपने थैले में रखी कुछ भस्म को उस राक्षस के ललाट ,दोनो कान,कंठ , ह्रदय , दोनो भुजा ,और नाभि पर लगा दिया । भगवान भोलेनाथ की इस प्रिय भस्म के लगते ही उस राक्षस का वर्ण एक सुंदर और स्वस्थ शरीर में बदल गया । भगवान भोलेनाथ की भस्म की इस महिमा को देखकर राक्षस शिवभक्त बामदेव के चरणों में गीर पडा ।और विधि पूर्वक इस भस्म धारण करने की विधि समझ कर अच्छा आचरण करते हुए सुख पूर्वक बहुत दिनों तक जीता रहा और अन्त में भगवान भोलेनाथ के प्रिय नगर शिवलोक को चला गया । दोस्तों यह उत्तम कथा के कहने और सुनने मात्र से सारे पाप समूल नष्ट हो जाते हैं।यह कथा आपको कैसी लगी कमेंट बॉक्स मे दो शब्द जरूर लिखें । बहुत-बहुत धन्यवाद ।लेखक-भरत गोस्वामी
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