SAI KRIPA साईं कृपा A RELIGIOUS STORY

यदि दिल में सच्ची श्रद्धा  हो तो   पत्थर भी भगवान हो जाते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि जहां श्रद्धा है ,वहां भगवान अवश्य है । साईं बाबा एक महान संत थे । जिन्होंने अपने कृत्य से लोगों के दिलों में वह स्थान  बनाया जो अपने आप में किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं ।  लोखो श्रद्धालू  रोज शिर्डी दर्शन के लिए आते हैं ।बाबा साई ने कई चमत्कार किए हैं ।यह कहानी उन्हीं के द्वारा किए गये एक चमत्कार का   विवरण है ।                                         अपने सामर्थ्य  के बल पर  लक्ष्मण जी  राव  हाल ही में नगर सेवक  चुने गए  थे । उनके चाहने वालों की भीड़ उनसे  मिलने और उनको बधाई देने के लिए उमड़ पड़ी थी ।  भीड़भाड़ के बीच एक शरीर से  अपंग व्यक्ति  कागज के टुकड़े में लपेटे हुए एक गिफ्ट यानी उपहार को लेकर आगे की ओर बढ़ रहा था ।  भीड़ कुछ कम हुई  तो वह भी लक्ष्मण जी राव को बधाई और गिफ्ट देने आगे आया ।और गिफ्ट और बधाई दिया। लक्ष्मण जी राव ने उसे सहर्ष स्वीकार किया ।और उस अपंग व्यक्ति को धन्यवाद दिया ।  थोड़ी देर बाद जब भीड़ कम हो गई ।तो लक्ष्मण जी राव ने बड़े प्रेम से अपने सबसे ज्यादा मेहनती और इमानदारी से काम करने वाले सेवक को बुलाया और कहा "आलोक यह साईं बाबा की मुर्ति है । तुम्हारी सेवा से प्रसन्नन होकर यह मूर्ति मैं तुम्हें प्रदान कर रहा हुं । इनका कभी भी अनादर मत होने देना ।             ‌‌‌‌‌‌                                                             आलोक  बहुत खुश हुआ । साहब नेेेे हमारे ऊपर बहुत अच्छा भरोसा किया और और इतनी प्यारी मूर्ति भेंट के रूप में मुझे प्रदान की । आलोक ने देखा यह वही मूर्ति थी । जिसे लक्ष्मण जी राव को उस  अपंग व्यक्ति ने लाकर दी थी । वह खुशी-खुशी उस मूर्ति को अपने घर लेे गया और विधि-विधान सेे उसका पूजा पाठ करने लगा । कुछ   साल बाद आलोक  की जिंदगी में इतनी व्यस्तता आ गई  कि उसने साईं बाबा के मुर्ति  के तरफ ध्यान देना कम कर दिया ।  उसके परिवार में उसके अलावा उसकी  बीबी संगीता और उसका छोटा  भाई  कमलेश  था ।   वे लोग भी  बाबा के ऊपर थोड़ा कम ध्यान देते  थे ।                                                                   एक दिन रात को  अचानक आलोक की नींद टुटी  ।उसे  साईं बाबा की बहुत याद आई  । वह तुरंत साईं बाबा केेे यहां पहुंचा । वहां जाकर जो देखा उसकी कल्पना करके आज भी आलोक के शरीर के सारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं । वह देखता है ।कि बाबा के शरीर से  एक अद्भुत तरीके का तेज पुंज निकल रहा हैै । जिसका वर्णन वह शब्दों में नहीं कर सकता । वह उस दिन पूरी रात सो न सका । सुबह उठते ही उसने बीबी संगीता से पुछा "कल तुमने बाबा की मूर्ति साफ किया था क्या ।"  संगीता बोली "नहीं तो मैंने नहीं किया ।"आलोक ने वही बात अपने छोटे भाई कमलेश से  पुछा वह भी वही जबाब   दिया जो उस की बीबी संगीता ने दिया था । अब आलोक और आश्चर्य में पड़ गया ।                                                             बाबा के शरीर से निकलता वह तेेेेज पुंज अभी भी उसके मनोदशा के पटल पर वैसे ही घुम रहा था । किसी तरह दिन बीता शाम होतेे ही वह शिर्डी के लिए घर से निकल पड़ा । रात में ही वह शिर्डी पहुंच गया । बिना समय गंवाए स्नानादि के पश्चात वह  मुख्य मंदिर के गेट पर पहुंच कर लाईन में लग गया । वहां कुछ लोग पहले से ही  मौजूद थे । कुछ देर बाद मंदिर का पट खुला सब लोग अन्दर जाने लगे ।            आलोक की हृदय की गति बढ़ गई । बाबा से प्रथम मिलन का अनुभव ना जाने कैसा होगा । कुछ ही क्षणों के बाद वह बाबा के सामने था । बाबा का वह सौम्य रूप  ,चेेेहरे पर गजब की शांति , मंद मंद मुस्कुराते हुए बाबा ऐसे लग रहे थे कि  जैसे  कोई इच्छुक व्यक्ति के मिल जाने पर
मुस्कुराता है । भक्त और भगवान का यह मिलन  एक यादगार सुन्दर घटना बन के रह गई । थोड़ी देर बाद शुरू हुई काकण आरती  उसके बाद बाबा का दिव्य पंचामृत स्नान, श्रृंगार आदि के बाद भक्तों के लिए फिर मंदिर का पट खुल गया ।यह सब दृश्य इतना निकट से देखने के बाद आलोक की आत्मा एकदम से तृप्त हो गई थी । फिर उसने  बा बा के अनन्य भक्त के चित्रों के दर्शन किए । बाबा का वह गुुरु स्थान जहां बाबा के कहने पर गांव वालों  ने खुुुदाई की थी  । जहां प्रज्वलित दीप मिले थे । फिर  आलोक बाबा के द्वारा जलाई  हुई वह  धुनी जो आज भी उसी अवस्था में है । जैसे बाबा नेेे शुरू किया था ।  वह नीम का पेड़ जिसके पत्ते मीठे थे ।। आज भी मौजूद है । बाबा  सेेेे जुड़े कई स्थान , संग्रहालय, और बहुत कुछ के दर्शन के बाद  बाबा के  शुरू किए गए  आहार गृह  में उसने खाना खाया । काकण आरती से लेकर बाबा केेे शयन आरती तक उसने सभी आरती में भाग लिया । बाबा के धर्मशाला मेंं एक रात बितानेेे के बाद कुछ मीठी यादों के साथ आलोक अपने घर के लिए चल पड़ा । भले ही उसका शरीर अपने घर जा रहा हो ।पर उसकी आत्मा  बाबा के चरणों के  आसपास घूम रही थी ।

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