MAHIMA BABA BAIJNATH DHAM KI महिमा बाबा बैजनाथ धाम की A RELIGIOUS STORY

भगवान भोले नाथ की बहुत ही सुन्दर कहानी जो लोक कथाओं में चर्चित है ।भगवान भोले नाथ की इस पवित्र और मनोहारी कथा में कई तरह की भ्रांति होते हुए भी बहुत लोकप्रिय है।                                लंकापति दसानन रावण भगवान भोले नाथ के बहुत ही प्रिय  भक्त थे । लोगों का कहना है कि उनसे बड़ा  विद्वान ना कोई हुआ है ना होगा । तप के दौरान  उनको जब भक्ति का उन्माद चढ़ता था तो अपने  हाथों से भगवान भोले नाथ सहित कैलाश  को उठा लेते थे ।जब भी भगवान भोले नाथ की आवश्यकता होती तभी भगवान भोले नाथ को कोई भी यतन करके प्र कट  हो ने के लिए मजबूर कर  देेेते थे ।   दसानन रावण के पास इच्छा  से चलने वाला  रथ था ।जब भी दसानन रावण  भक्ति सागर में गोते लगाने का मन होता वे अपना रथ लेकर  किसी निर्जन स्थान पर चले जाते । जहां उनकी पूजा अर्चना में कोई बिघ्न न डाल सके ।  भगवान और भक्त का यह  परस्पर  संबंध सदियों से चर्चित  रहा है ।                                   एक बार  दसानन रावण अपने आदत के अनुसार  भगवान  भोले नाथ की  भक्ति इतनी तन्मयता से की कि भगवान भोलेनाथ प्रकट  हो गए और  उन्होंने दसानन रावण से इच्छित वर मांगने को कहा ।दसानन रावण की हार्दिक इच्छा थी कि भगवान सदा के लिए लंका में निवास करें ताकि लंका नगरी एक अमोघ नगरी बन  जाय  जो हमेशा के लिए  अक्षय  हो जायेगी । भगवान भोले नाथ तो अंतर्यामी है।  रावण के मन: स्थिति को समझते  देर नहीं लगी ।वे भी मन ही मन  सोचने लगे कि ऐसा हो गया तो बहुत अनर्थ हो  जायेगा । यदि  मैं हमेशा के लिए   लंका चला गया तो   यह  मेरी उपस्थिति का दुरपयोग करेगा । आखिरकार  वहीं हुुआ  जिस बात का डर था ।दसानन रावण ने वही मांग की  जो भगवान  भोलेनाथ  सोच रहे थे ।बडे ही लुभावने  शब्दों में भगवान भोलेनाथ ने कहा "दसानन रावण आप तो जानते ही हैं कि  मैं हमेशा के लिए लंका नहीं जा सकता हूं । पर मैं तुम्हें एक ऐसा तेेेजस्वी  लिंग  दे सकता हूं जिसमें सदा मेेेरा वास रहता है । पर उस लिंग को हाथों द्वारा  बिना जमीन पर रखें  तुम्हें पैदल लंका   ले जाना होगा । यदि तुमने उसे कही रख दिया तो वह लिंग सदा के लिए वही रह जायेगा । "         दसानन रावण को अपने बल  पर बहुत विश्वास था। वे खुशी खुशी भगवान भोलेनाथ की  बात को मान लिये । जब उस तेजस्वी लिग को हाथों  में उठा कर  दसानन रावण चलने लगे तो  तीनों लोकों में हाहाकार मच  गया । सुर्य देव की रोशनी  धुमिल हो गई ।नदी, नाले ,सागर  सबका  रूख अनियंत्रित  होने लगा ।देवताओं में  खलबली मच गई ।सब देवता  मिल कर भगवान भोलेनाथ के  यहां पहुंचे । भगवान भोले नाथ खुुद ही  चिंतित थे । उन्हें भी मालूम था कि यदि  यह तेजस्वी  लिंग लंका पहुंच गया तो दसानन रावण अजेय हो जायेगा ।  उन्होने वरूणदेव को बुला कर  सारी योजना  समझा दिया । वरूण देव ने अपना कार्य शुरू कर दिया  । दसानन रावण को बहुत   जोर से लघु शंका (पेशाब) आयी ।अन्दर ही अन्दर वह लघुशंका करने के लिए तड़प  उठा । उसकी इस दयनीय दशा  का फायदा उठाने वरूण देव मनुष्य का रूप धारण कर वहां पहुंचे ।दसानन रावण की तडप इतनी बढ़ गई थी कि वह क्या करे , क्या ना करें उनका  ज्ञान काम  नहीं कर रहा था । उन्होने मनुष्य रूपी वरूण देव से सहायता मांगी ।और थोड़ी देर के लिए उस तेजस्वी लिंग को हाथों में पकड़े रहने का आग्रह किया । बहुत देर हो ने के बाद  वरूण देव ने उस तेजस्वी लिंग को जमीन पर रख दिया । थोड़ी देर के बाद दसानन रावण  पहुंचे । अब  जो नहीं हो ना था , वह   हो चुका था । अब   सभी देवता खुश हो गये ।दसानन रावण अपनी भूल मानकर  वापस लंका चलें गये ।                                                                         वह  तेजस्वी लिंग वहीं  मिट्टी से ढक गया । सदियां बीती , युुग बीते ।  बहुत दिनों के बाद एक चरवाहा जो उसी स्थान पर गाय चराया करता था । उसने देखा कि एक गाय  एक स्थान पर अपना  दुुध गीरा रही  है । उसने इतना ध्यान नहीं दिया। जब उसने  दुसरे दिन उसी स्थान पर उसी गाय को   दुु ध  गीराते  हुए देखा तो उसे  बहुत आश्चर्य हुआ ।  फिर नि यमत: उसने कई  दिनो तक  गाय के इसी प्रक्रिया  को  दे खा तो उसकी शंका विश्वास मेें बदल गयी  उसने सोचा  होना हो यहां कोई विशेष बात जरूर है। उसने उस  जगह की  खुदाई किया तो उसे वहीं तेजस्वी लिंग मिला जो भगवान भोलेनाथ ने दसानन रावण को दिया था  । वह चरवाहा जो बैजू के  नाम से जाना जाता था । नियमित रूप से उस दिव्य लिंग की पूजा अर्चना करने लगा । एक दिन भूू लवश वह पूजा अर्चना करना भूल कर खाना खाने बैठ गया । अभी आधा खाना ही खा पाया था कि उसे याद आया कि मैंने आज  पूजा अर्चना नहीं किया है तो  खाना छोड़ कर उस स्थान की तरफ भागा  उसके  नि: श्छल प्रेम को देख कर करूणा के सागर भगवान भोलेनाथ प्रकट हो गए । अपने भक्तों का कल्याण करने वाले भगवान भोलेनाथ को साक्षात देेखकर  बैजू  उन के चरणों में गीर पडा । तब भगवान भोलेनाथ ने कहा " मै तुम्हारे  निश्चल  भक्ति से प्रसन्न हूं ।यह मेरा तेजस्वी लिंग कोई  साधारण लिंग नही है ।इसमे  सदा मेरा वास रहता है । भविष्य में यह स्थान बैज नाथ धाम से  प्रसिद्ध होगा ।                                                   दोस्तों कहानी आपको कैसी लगी दो शब्द जरूर लिखें और अपने स्वजनो को शेयर जरुर

  करे । धन्यवाद  लेखक----भरत गोस्वामी

Comments

  1. Very nice story..never heard this story before. Please keep writing such stories

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  2. Nice Story। Keep it up to writing such stories. We are waiting for next one.

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