NA MITE TAQDIR KA LIKHA ना मिटे तकदीर का लिखा A RELIGIOUS STORY

मनुष्य अपने जीवन में कई बार सोचता है कि मेरी जिंदगी और बेहतर हो जाए या मेरे बच्चों की जिंदगी और बेहतर हो जाए पर ऐसा हो नहीं पाता। जो उसके तकदीर में होता है वो सबकुछ होकर रहता है ऐसे ही एक पुर्व काल में धटित धटना का वर्णन इस कहानी में किया गया है।                     
 पूर्वकाल में एक ऋषि अपने उत्तम आचार एवं बिचार से सभी आश्रमवासियों के प्रिय हो गये थे । भगवत् सेेेवा ,ज्ञान ध्यान में महारत  हासिल करने के बाद भी उनका स्वभाव अति सौम्य और उदारता से ओत प्रोत था ।उनके आश्रम के परिजन ,शिष्य गण नित्य एक नई  उपासना का योग ढूंढ कर सिद्ध करने में माहिर थे । अनायास ही उनके यहां एक दिन एक धटना धटित हुईं ,ऋषि  महराज के लिए दूध गर्म किया  जा रहा था कि  एक सांप  आकर उसमें गीर कर मर गया । एक चुहिया यह सबकुछ देख रही थी  उसने सोचा कि जब ऋषि महराज इस दूध को पियेेगे तो उनकी मृत्यु निश्चित है। यदि ऐसा हो गया तो बहुत अनर्थ  हो जायेगा । परोपकार की भावना से प्रेरित होकर उसने ऋषि महराज की जांंन बचाने के लिए उस पात्र में छलांग लगा दी ।और अपना जीवन  ऋषि सेवा में  समर्पित कर दिया ।जब शिष्य के द्वारा दुु ध दिया जाने लगा तो उसमें मरा  सांप और चुुुहिया  मीला ।यह देखकर सब  हैरान रह गए।तब ऋषि महराज ने अपने ध्यान से   सारी धटना की जांच कर ली । उन्हें चुहिया और उसके समर्पण पर बहुत दया आई ।जब उन्होंने सारी जानकारी कर लिया तो उनके मन और मस्तिष्क में उदारता का श्रोत फूट पड़ा।                           उन्होने अपने   तपोबल से चुहिया को जिवित कर दिया और  मानव का रूप प्रदान किया  जब चुहिया स्त्री रूप में बदल गयी तो  ऋ षि  ने उसे अपनी पुत्री  धोषित  किया ।और उन्होंने प्यार से उसका नाम रूपवती रखा  ।सारे शिष्य गण अपने गुरु के इस परोपकार भरे  कृत्य का स्वागत किया ।और उसका लालन पालन  सही ढंग से  किया जाने लगा।उसकी  बाल  लीला से  सभी आश्रमवासी  बहुत खुश थे ।और उसेअपना प्यार दे रहे थे । ऐसा करते करते बहुत दिन बीत गए ।अब रूपवती कन्या विवाह के योग्य हो गई । ऋषि महराज को उसके विवाह की चिंता सताने लगी । उन्होने मन ही मन यह   सोच लिया कि मैं अपनी पुत्री का विवाह  दुनिया के सबसे शक्तिशाली  पुुुरूष  से करूंगा ।उस समय देवताओं के राजा इन्द्र   सबसेे शक्तिशाली और वैभवशाली थे ।                         ऋषि महराज  राजा इन्द्र के यहां पहुंचे और अपना आने का उद्देश्य उनके  समक्ष रखा। उन्होने कहा "मेरी पुत्री दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री है।आप कृपा करके उसे वरण करें । राजा इन्द्र ने विनय पुर्वक  कहा " ऋषिवर आपकी आज्ञा  पालन  अवश्य होगा । लेकिन , आज्ञा हो तो एक बात कहूं मेरे से ज्यादा शक्तिशाली और वैभवशाली भगवान सुर्य है। आप के कथनानुसार आप को उनके पास जाना  चाहिए ऋषि महराज को राजा इन्द्र की बात उचित लगी ।तब  ऋषि महराज और राजा  इन्द्र दोनों  भगवान सुर्य के यहां पहुंचे और अपना आने का उद्देश्य उनके सामने रखा । भगवान  सुर्य ने विनय     पुर्वक कहा "  आपकी आज्ञा का पालन जरूर होगा ऋषिवर लेकिन आपसे एक बात कहने की आज्ञा चाहता हूं,मेेेरे से ज्यादा शक्तिशाली  तो मेघराज है वो जब चाहते है मुझे ढक लेते हैं ।" ऋषि महराज को  भगवान सुर्य की बात उचित लगी ।अब वे दोनों  मेघराज के यहां पहुंचे । वहां भी बात नहीं बनीं ।  मेघराज ने यह कहकर की मेंरे से ज्यादा शक्तिशाली तो वरूण देव है  मै उनका दास हूंं  वो जब चाहे जहां चाहे  वही  मुझे सेवा देनी पड़ती हैं । राजा इन्द्र और ऋषि महराज  दोनों वरूण देव के यहां पहुंचे । और अपना आने का अभिप्राय वरूण देव के  सामने रखा।वरूण देव ने यह कहकर टाल दिया कि मेरे से ज्यादा शक्तिशाली तो  पवन देव है जो मुझे जहां चाहे वहां उडा ले जाते हैं। पवन देव ने कहा कि "  मुझे तो पर्वतराज  रोक लेते हैं  अतः मुझसे ज्यादा शक्तिशाली तो पर्वत राज हुए । तब  दोनों  महाशय   पर्वतराज के यहां पहुंचे । और अपनी इच्छा प्रकट की। पर्वतराज  ने नम्र होकर  कहा "    ऋषि महराज  मैैं शक्तिशाली नहीं हूं  मुझे तो एक चुहा खोद  देता है ।  "                             ऋषि महराज को समझने में देर नहीं लगी। उन्होने सोचा मैं  बिधि के बिधान को बदलने चला था  ।    तकदीर  के लिखें को कोई मिटा नहीं सकता है । अपने गुरु देव भगवान भोलेनाथ को याद कर ऋषि महराज ने क्षमा  मांगी ।और अपने तपोबल से उस कन्या को  चुहिया बना कर उसका विवाह एक चुहा से कर दिया।                                                                    दोस्तों कहानी आपको कैसी लगी दो शब्द जरूर लिखें और अपने स्वजनो को शेयर जरुर करे ।धन्यवाद  लेखक ----भरत गोस्वामी 

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