ये मात्र संयोग नहीं हो सकता है (एक प्रेरणादायक सत्य कथा )
इस कहानी में हनुमानजी के द्वारा किए गए एक ऐसे कृत्य का वर्णन है।जो आपको भाव विभोर कर देगा।तो आइए इस सत्य घटना का आनंद लेते हैं-----------मुम्बई के अंधेरी तालुका मे उपाध्याय नगर मे हनुमान जी का मंदिर बन रहा था ।नगर के कुछ अच्छे लोग श्रमदान कर रहे थे।उसमे से एक उत्साहित सेवक ने मुख्य प्रबंधन सेवक से कहा ," प्रधान जी इतना उत्साह से मंदिर बनवा रहे हो , उद्घाटन किससे करवावोगे "इस पर प्रधान जी ने कहा "आप लोग ही तय करें , उससे उद्घाटन करवायेंगे ।" इस पर सेवक ने हंस कर कहा "प्रधान जी आजकल भरत शर्मा व्यास जी नम्बर वन पर है,उन्हीं से उद्घाटन करवायेंगे।"
प्रधान जी ने कहा "ठीक है ,कोशिश की जायेगी कि उन्ही के हाथों से उद्घाटन हो,पर वह तो बहुत बड़े स्टार गायक हैं हम उन्हें मैनेज कर पायेंगे ।चलो ठीक है ,कोशिश करने में क्या जाता है।"एक सुंदर मंदिर का निर्माण पुरा हुआ । वहां हनुमानजी चबुतरे पर पहले से ही विराजमान थे ।उनका मंदिर बन जाने से वहां की शोभा और बढ गई। अब प्रधान जी को उद्घाटन की चिंता सताने लगी । उन्होंने कई तरह से प्रयास किया कि भरत शर्मा व्यास जी को लाया जाय ,पर कुछ कोशिश के वावजूद भरत शर्मा जी की व्यवस्था ना हो सकी ,कारण कुछ लोगों ने उनके प्रति इतना तामझाम फैला दिया कि प्रधान जी ने मन मारकर स्थानीय नगरसेवक श्री भगवंत राव पाटिल साहेब से उद्घाटन करवा लिया । जैसे तैसे समय बिताता गया
तकरीबन पांच साल बाद एक घटना घटी ।भरत जी व्यास का विदेश में कहीं प्रोग्राम था ।और मुम्बई से ही उनकी फ्लाइट थी। प्रीन्स पलास्टिक के यहां भरत शर्मा जी आये हुए थे ।गपशप के दौरान किसी ने हनुमानजी के मंदिर कि बात उठा दिया। तब भरत शर्मा जी बोले "यह तो बहुत बड़ा गलत काम होगया। चलो आप लोग मुझे मंदिर ले चलो"। उनकी इच्छा हुई कि हमारे प्रति इतना स्नेह रखने वाले लोग जब यहां है,तो हमें उनकी इच्छा जरूर पूरी करनी चाहिए । संयोग से उस दिन शनिवार का दिन था। भजन कीर्तन चल रहा था। मंदिर खचाखच भरा था ।सब भजन का आनंद ले रहे थे। इतने मे भरत जी चन्द लोगों के साथ वहां पहुंचे। पहले तो किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था । लेकिन भरतजी को कौन नहीं पहचानता, सब एकाएक उठ खड़े हो गए। सेवक लोगों को खुशी का ठिकाना नहीं रहा ,मन ही मन वो हनुमान जी को धन्यवाद दे रहे थे । माली का घर खुलवा कर स्पेशल हार बनवाया गया। भरतजी के द्वारा हनुमानजी को मालार्पण करवाया गया। कुछ देर बाद भरतजी ने गायक से हारमोनियम लिया ।और बोले "भाई लोग आप लोग ने मुझे एक अनजाने कर्ज़ से बचा लिया। सुबह मेरी फ्लाइट है , मै प्रोग्राम के लिए विदेश जा रहा हूं, मैं आप लोगों को पांच गाना सुना सकता हूं।ज़ोंभी आप लोग को पसंद हो बताइए,मैं बिना माइक के नहीं गाता लेकिन हनुमानजी के दरबार में जरूर गाउंगा। फिर क्या था महफ़िल जम गई।सब भाव विभोर हो गये । सबसे ज्यादा खुशी सेवक लोगों को थी। हनुमानजी उनकी इच्छा पूरी की थी। सबने भरत जी के गायन का आनंद लिया । फिर आई विदाई की वह घड़ी।स्वर सम्राट भरतजी व्यास ने सबको तृप्त कर दिया। और सबने मिलकर भरत जी को बिदा किया। सबकी आंखें सजल थी पर उनमें खुशी के आंसू थे। लेखक-भरत गोस्वामी
प्रधान जी ने कहा "ठीक है ,कोशिश की जायेगी कि उन्ही के हाथों से उद्घाटन हो,पर वह तो बहुत बड़े स्टार गायक हैं हम उन्हें मैनेज कर पायेंगे ।चलो ठीक है ,कोशिश करने में क्या जाता है।"एक सुंदर मंदिर का निर्माण पुरा हुआ । वहां हनुमानजी चबुतरे पर पहले से ही विराजमान थे ।उनका मंदिर बन जाने से वहां की शोभा और बढ गई। अब प्रधान जी को उद्घाटन की चिंता सताने लगी । उन्होंने कई तरह से प्रयास किया कि भरत शर्मा व्यास जी को लाया जाय ,पर कुछ कोशिश के वावजूद भरत शर्मा जी की व्यवस्था ना हो सकी ,कारण कुछ लोगों ने उनके प्रति इतना तामझाम फैला दिया कि प्रधान जी ने मन मारकर स्थानीय नगरसेवक श्री भगवंत राव पाटिल साहेब से उद्घाटन करवा लिया । जैसे तैसे समय बिताता गया
तकरीबन पांच साल बाद एक घटना घटी ।भरत जी व्यास का विदेश में कहीं प्रोग्राम था ।और मुम्बई से ही उनकी फ्लाइट थी। प्रीन्स पलास्टिक के यहां भरत शर्मा जी आये हुए थे ।गपशप के दौरान किसी ने हनुमानजी के मंदिर कि बात उठा दिया। तब भरत शर्मा जी बोले "यह तो बहुत बड़ा गलत काम होगया। चलो आप लोग मुझे मंदिर ले चलो"। उनकी इच्छा हुई कि हमारे प्रति इतना स्नेह रखने वाले लोग जब यहां है,तो हमें उनकी इच्छा जरूर पूरी करनी चाहिए । संयोग से उस दिन शनिवार का दिन था। भजन कीर्तन चल रहा था। मंदिर खचाखच भरा था ।सब भजन का आनंद ले रहे थे। इतने मे भरत जी चन्द लोगों के साथ वहां पहुंचे। पहले तो किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था । लेकिन भरतजी को कौन नहीं पहचानता, सब एकाएक उठ खड़े हो गए। सेवक लोगों को खुशी का ठिकाना नहीं रहा ,मन ही मन वो हनुमान जी को धन्यवाद दे रहे थे । माली का घर खुलवा कर स्पेशल हार बनवाया गया। भरतजी के द्वारा हनुमानजी को मालार्पण करवाया गया। कुछ देर बाद भरतजी ने गायक से हारमोनियम लिया ।और बोले "भाई लोग आप लोग ने मुझे एक अनजाने कर्ज़ से बचा लिया। सुबह मेरी फ्लाइट है , मै प्रोग्राम के लिए विदेश जा रहा हूं, मैं आप लोगों को पांच गाना सुना सकता हूं।ज़ोंभी आप लोग को पसंद हो बताइए,मैं बिना माइक के नहीं गाता लेकिन हनुमानजी के दरबार में जरूर गाउंगा। फिर क्या था महफ़िल जम गई।सब भाव विभोर हो गये । सबसे ज्यादा खुशी सेवक लोगों को थी। हनुमानजी उनकी इच्छा पूरी की थी। सबने भरत जी के गायन का आनंद लिया । फिर आई विदाई की वह घड़ी।स्वर सम्राट भरतजी व्यास ने सबको तृप्त कर दिया। और सबने मिलकर भरत जी को बिदा किया। सबकी आंखें सजल थी पर उनमें खुशी के आंसू थे। लेखक-भरत गोस्वामी
बहुत-बहुत सुन्दर कथा आपने बताई ।धन्यवाद
ReplyDeleteBahot Sunder Sir
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