MAA HARSIDDHI DARSHAN मां हरसिद्धि दर्शन एक यात्रा वृतान्त

                                                     

  उज्जैन नगरी अपनी विविधतायो के लिए  प्रसिद्ध है  । खास करके  कालो के काल महाकाल की सबसे  प्रिय नगरी तो  हैै ही  वही पर  मां आदि शक्ति कि शक्ति  स्वरुपा मां  हरसिद्धि  का भव्य मंदिर  हैै , जहाँ  मां  अपने  तीन  रूपो मे बिराजमान  है  मां महालक्ष्मी, मां महा सरस्वती और मां महा अन्नपुर्णा   के रूप मे  आज भी बिराजमान  है  ।वेदो  और पुराणो  मे वर्णित यह  देवी उज्जैन नगर के महाराजा विक्रमादित्य की  आराध्य देवी  के रूप मे प्रसिद्ध है  ।कहा जाता है कि  मां के बावन शक्ति पीठो मे से  एक  प्रसिद्ध  शक्ति पीठ  भी है।                                                              माता रानी हरसिद्धि का दरबार  मध्य प्रदेश  के उज्जैन जिले के प्रसिद्ध  महाकालेश्वर   मंदिर के समीप ही  स्थित है । यह मंदिर  उज्जैन  जिले के  रेलवे  स्टेशन के तीन किलोमीटर की  दूरी पर  स्थित  है। आने  जाने के लिए  सामान्य वाहन के  प्रयाप्त  साधन  है।  अति  सौम्य  वातारवण मेे  संध्या के समय यहांं  का दृश्य और  मनोहारी  होजाता  है । जब  मां के  मंदिर केे समक्ष दो दीप स्तम्भ अपने  सैकड़ों  दीपो के साथ प्रज्जवलित  हो  उठते  हैं  शंंखनाद ,नगाडा,झाल और घंटो से 
जब मंदिर   गुंज उठता  है। उस समय की  शोभा  अजब  निराली  हो जाती  है।  कहा जाता है  कि मां  हरसिद्धि  के दर्शन मात्र से ही  मनुष्य की हर  तरह की  मनोकामना,हर तरह की  सिद्धि  सिद्ध हो  जाती  है।                                                   माता रानी के  बारे मे दो कहानियां  बहुत  प्रसिद्ध है  । पहली कहानी कुछ  ऐसी है।   प्राचीन  समय मे  राजा दक्ष प्रजापति के  यहां यज्ञ  समारोह  मे    भगवान  भोलेनाथ को  आंमत्रित  नही  किया गया तो माता  सति  को बहुत  क्रोद्ध  आया। माता सति को  पिता श्री का यह  व्यवहार  उचित  नही  लगा  ।भगवान भोलेनाथ के लाख  मना करने के  वावजूद जब मां  सति अपने मायके  राजा  दक्ष प्रजापति के यहां पहुंची  तो वहां किसी ने  उनका  आदर  सत्कार  नही  किया  ।   इस अपमान को   माता सति सहन    न कर  सकी।    और उन्ही के  यज्ञ  कुण्ड  मे कूद कर अपनी  जीवन लीला  समाप्त  कर  लिया  ।                                            जब भगवान भोलेनाथ को यह बात  मालूम पड़ी  तो भयंकर  तुफान  सा खड़ा  हो गया।  भगवान भोलेनाथ के क्रोद्धाग्नि  से जो पुरूष की  उत्पत्ति  हुई , तो उन्होने राजा दक्ष प्रजापति  का यज्ञ  का विध्वंस  कर  दिया  ।और  कुछ  अच्छा न होता देख,  सभी अतिथि  देवता वहां से पलायन कर  गये  ।भगवान भोलेनाथ तो  जैसे  पागल से  हो गए थे  ।उन्होने  माता सति के पार्थिव  शरीर को अपने  गोद मे  लेकर पूरे  ब्रह्मांड  मे भ्रमण  करने  लगे  । कभी इस घटना को याद कर आग बबुले हो  जाते  तो  धरती  और  गगन दोनों  अपनी दैनिक गति  से  विचलित  हो विध्वंस का तांडव करने लगते  ।समुन्द्र और नदियों  का जल  अपना  मार्ग  बदल  लेते  । चारो  और  हाहाकार  मच  जाता।  कभी  वो  मुस्कुराने लगते , मां के साथ  बिताए वो सुखद  पलो को  याद करके वो ये इस  दुखद पल को  भुल  कर उस सुखद  पलो की याद  मे खो  जाते  । पुनः जब  उन्हे वर्तमान स्थिति  का भान  होते  ही  उनकी  आँखों  से  अश्रु धारा बह निकलती  तो  उन्हे  अपार पीड़ा  का अहसास  होता कभी तो उनको यह अहसास  होता कि बिना शक्ति के शिव का क्या महत्व है ?                                                        भगवान  भोलेनाथ के मुख मंडल पर कई तरह  के भाव आते  जाते  ।पुरे  ब्रह्मांड  मे हाहाकार  मचा हुआ  था।  देवता गण के  समझ  मे  नही  आ रहा था कि क्या करे क्या ना करे इस  लिए   सभी  देवता  मील कर  भगवान  विष्णु के यहाँ  गये  ।और उन्होने भगवान  विष्णु से यह  आग्रह  किया " भगवन  हम लोगो को भगवान भोलेनाथ की यह  तकलीफ देखी  नही  जा रही है आप  हमारे  प्रभु  के  कष्ट को हर सकते  है।  आप  हमारे  प्रभु के  लिए  कुछ  किजिए  ।" पहले  तो उन्होने  पल्ला झाडने की  कोशिश  की , पर  देवताओ  के  विशेष  आग्रह  पर  उन्होने  कुछ करने का बचन दिया। उन्होने सुदर्शन चक्र को  यह आदेश दिया कि माता सति  के पार्थिव  शरीर को  किसी  तरह  से भगवान  भोलेनाथ के  गोद  से  अलग  करना है। उनके  शरीर का अलग अलग अंश करके भगवान भोलेनाथ के  गोद  से  अलग  करना है  तब सुदर्शन चक्र ने  माता  सति के पार्थिव  शरीर को वावन भागो मे विभाजित  किया । जो  शक्ति पीठ के नाम से  प्रसिद्ध हुए। उन्हीं वावन  शक्ति पीठ मे से मां हरसिद्धि  भी  एक  शक्ति पीठ  है।  कहते है माता सति  की  कोहनी यहां  गीरी  थी  ।तब  से माता सति अपने तीन  प्रिय रुपो मे महा लक्ष्मी, महा सरस्वती,और मां अन्नपुर्रणा क रुप  मे यहां  विराजमान है।                                                         दूसरी  कहानी  इस  प्रकार है   एक बार चंण्ड  मुंण्ड नामक दैत्यो ने  पृथ्वी  पर  अत्याचार  फैला रखा था।  उनके अत्याचार  से देवतागण  भी वंचित  नही  थे । तब  सब देवता मील कर  जगत जननी माँ  महा गौरी के शरण मे गये और मां से  इन दोनों  दैत्यो  से मुक्ति  दिलाने  कि प्रार्थना  किया । तब  मां ने भगवान भोलेनाथ  से सिद्बि  प्राप्त करके उनका  बध किया  ।भगवान भोलेनाथ का एक नाम हर भी है जिससे  सिद्बि  ग्रहण करके मां ने सबको  दुख  से मुक्त  किया   ।तब  से मां हरसिद्धि  के नाम  से प्रसिद्ध  हुई  ।                                            लाखो श्रधालू  मां के  पावन  दर्शन करके अपनी मनोकामना को पुरा  करते हैं  ।                                         दोस्तों  यह  यात्रा वृतान्त आपको  कैसा लगा।  दो शब्द  कमेंट बाक्स मे जरूर लिखे। धन्यवाद - भरत गोस्वामी 

Comments

  1. उत्तम वृतांत

    ReplyDelete
  2. उत्तम।
    हर हर महादेव। 🙏

    ReplyDelete
  3. अति सुन्दर ज्ञानार्जन लेख धन्यवाद

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

MAA YASHODA KA VATASHALAYA PREM मां यशोदा का वात्सल्य प्रेम A RELIGIOUS STORY

JO BHI HOTA HAI AACHE KE LEA HE HOTA HAI जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है A MOTIVATIONAL STORY

PRABHU YESHU EK AADERSH प्रभु यीशु एक आदर्श एक सुविचार A GOOD THOUGHT