RAM AVTAR राम अवतार A RELIGIOUS STORY


   भगवान श्री हरि विष्णु के  गुणों का और  अवतारो का वर्णन  करना  सम्भव  तो  नही है,  क्योकि हरि  अनन्त हरि कथा अनन्ता ।  कहहु सुनावहू  बहु  विधि  सन्ता।        ।।   इस  प्रसंग  कथा  मे  भगवान श्री हरि विष्णु के एक  बहुत ही  प्रिय  अवतार  "राम  अवतार" का  वर्णन  करने  जा रहे है  ।शास्त्रो  मे भगवान  राम के  अवतार के  कई  कारण  बताये  गये हैं  उनमे  एक  कारण   इस कथा प्रसंग  वर्णित है।                                                               ब्रह्मा जी के चार पुत्र  भगवान  भोलेनाथ के चार परम  भक्त  हुए जिनमे सनकादिक मुख्य  भक्त  थे।  इनका  काम  पुरे  ब्रह्मांड  मे  घूम घूम  कर  भगवान  भोलेनाथ के  गुणों का  वर्णन  करना  यानी गुणगान करना, पठन,  पाठन और  मनन  यानी  घ्यान  का  प्रचार करना  था । चारो  अपने आप  मे इतने गुणी  थे   कि पुरे  ब्रह्मांड  मे  इनके  जैसा  कोई  शिव भक्त  नही  था।   ब्रह्मांड  भ्रमण करते  करते  एक  दिन ये चारो  महर्षि   भगवान श्री हरि विष्णु के परम धाम  विष्णु  लोक पहुँच गये  ।वहां  का  मधुर  वातावरण और  सुन्दरता  देख कर  चारो महर्षि  के  मन  मे  भगवान श्री हरि विष्णु के  दर्शन  की इच्छा प्रबल  हो  गई  । और वे  चारो  महर्षि  भगवान श्री हरि विष्णु के भवन के मुख्य  द्वार  की  तरफ  चल  दिये  ।                                                                                  मुख्य  द्वार  से  पहले  ही  दो  प्रहरी  जिनका  नाम  जय, बिजय  था।  उन्होने  इन  महाऋषियो  का  अभिवादन  नही  किया और स्पष्ट  शब्दो  मे  कहा  कि  "आप  भगवान श्री हरि विष्णु के बिना  अनुमति के  भवन  प्रवेश  नही कर सकते  ।"   इस पर  महर्षि  सनकादिक  ने  कहा "अरे  मुर्खो  एक  तो  तुम  लोगो  ने  हमारा  अभिवादन  नही  किया  और  दूसरा अपराध  यह  कर  रहे  हो कि  हम को  भगवान श्री हरि विष्णु के  दर्शन के लिए  जाने  से रोक  रहे  हो । इस  अपराध के लिए हम       तुम्हें   श्राप दे  सकते हैं। " तब  जय और बिजय  ने  कहा  क्षमा करे  महर्षि   हम आदेशानुसार  मजबूर  है  हम  बिना  प्रभु के  आज्ञा के  हम  भवन  प्रवेश  कि  अनुमति  नही  दे  सकते  ।"                                                                      काफी   वार्तालाप करने के  बाद  भी वे  दोनो  प्रहरी  ने  भवन मे जाने की  अनुमति नहीं दी तो  महर्षि  सनकादिक  ने  क्रोधावस्था मे  उन्हे श्राप दे दिया  ।" तुम  लोगो ने  हर  तरह से  हमारा  निरादर करने  की  कोशिश की , इसलिए  हम महर्षि  सनकादिक  तुम  लोगों को  श्राप देते  है कि  तुम  लोग  तीन जन्मो  तक  राक्षस  योनि  मे  पैदा  होंगे।" ऐसा  श्राप  देते  ही  महर्षि  सनकादिक अपने  समान्य  अवस्था  मे  आ गये ।                                                                    ऐसा  सुन कर जय और बिजय  नाम के   प्रहरी   दोनो  थर  थर  काँपने  लगे। और दोनो  महा  ऋषि  के चरणों मे  गीर  पडे  । और  गिर कर  क्षमा  माँगने  लगे  ।  "हे महर्षि  हमे क्षमा  करदे,  हम  विवश  है  हम  बिना प्रभु के  आज्ञा  के किसी को  अन्दर  नही  छोड  सकते , ऐसा  आदेश  हमे  भगवान श्री हरि विष्णु ने स्वयं   ही  दिया है। हम अपने  प्रभु  की  आज्ञा का उल्लंघन  नही कर  सकते।"  काफी अनुनय विनय करने के  बाद  महर्षि  सनकादिक ने उनकी  विवशता  पर नम्र  होकर  बोले"हमारा दिया बचन मिथ्या  तो  नही हो सकता,  पर  मै  तुम्हारी विवशता   को  समझ गया हुं।,   इस लिए  मै  तुम्हे  कुछ  देना  चाहता हूं । तुम  पहले  जन्म  मे महाशक्ति शाली राछस  हिरण कश्यप के  नाम  से  जाने  जाओगे ।और  स्वंय  भगवान श्री हरि विष्णु के हाथो  तुम्हारा   अन्त  होगा। उस वक्त  भगवान श्री हरि विष्णु  नरसिंघा  अवतार  लेकर  तुम्हारा   उद्धार  करेंगे  । तुम्हारा  दुसरा  जन्म  महाशक्ति शाली  राक्षस  कनकाक्ष के रूप मे  होगा  और स्वंय भगवान श्री हरि विष्णु  बराह  अवतार  लेकर  तुम्हारा उद्धार  करेंगे  ।और तीसरा जन्म  महा  शक्ति  शाली , परम  ज्ञानी , राजा  रावण  के रुप  मे होगा  और फिर भगवान श्री हरि विष्णु  भगवान श्री  राम  के  रूप मे  अवतार  लेकर तुम्हारा  उद्धार  करेंगे  ।"                                      ऐसा  कह कर  महा ऋषि  सनकादिक  ने  ह्रदय  से भगवान श्री  हरि विष्णु  से उनके   दर्शन  की इच्छा प्रगट  की और जय बिजय ने अपने  प्रभु  से  आज्ञा लेकर   आदर के साथ भवन  प्रवेश  की  अनुमति  दी ।और  उन्हें भगवान श्री विष्णु के  समक्ष  पहुंचा  दिया  ।   सनकादिक  चारो महर्षि ने   भगवान श्री हरि  विष्णु  का दर्शन किया जो  सैकडों   सुर्यो से ज्यादा  तेजवान और सैकड़ों  कामदेव  से  भी  सुन्दर  था।                                            दोस्तों  यह धार्मिक कथा  प्रसंग  आपको  कैसा लगा  कमेट  बाक्स  मे जरूर लिखे धन्यवाद। लेखक- भरत गोस्वामी                                           

Comments

  1. अति सुंदर लेखनी जारी रहे मानव ज्ञान और कल्याण हेतु!!

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