SHISKIYA ... सिसकियां .. A SOCIAL STORY


 यह एक  सामाजिक कहानी है  आज की भाग दौड़  भरी ज़िन्दगी में किसी  भी  व्यक्ति के पास  किसी भी  व्यक्ति के  लिए  समय नही है। कुछ लोग अपने आप को   सम्भाल  पाते हैं  कुछ  लोग  अपने आप को  सम्भाल नही पाते। कई  घर  इस  गल्त फहमी  के शिकार  हो जाते है । इस सामाजिक  कहानी मे एक ऐसा  शख्स  है  जिसके  पास सब कुछ  है  पर सब कुछ  होते हुए भी  वह अपने आप को अकेला  पाता है  ईश्वर उसे किसी  नेक राह  पर चल कर  किसी के लिएआश्रय तो किसी के लिए वो सब कुछ  दे देता है  जिसकी  तलाश  उसको रहती  है।         
 एक ऐसे  पुरूष की  कहानी है जो  सब कुछ  होते हुए भी  हर  खुशी  से  दूर  है । कभी  तो उसे लगता  है कि जिन्दगी  बोझ  सी  हो गयी है। बस ढोते  जाओ,  ढोते जाओ।  जवानी मां, बाप , औरत, बच्चों की  सेवा  करते  बीत गयी । सबकी  जरूरत  पूरा  करते करते अपनी  जरूरत  क्या है यह  भूल गया ।उनकी  जरूरतो  को  पूरा  करने के लिए  कई अच्छे  कर्म  किए, कई बुरे कर्म  किए और उनकी  हर जरूरत  पूरा  करने  मे  कोई  कसर  नही  उठा  रखी  उन्हे  यह  महसूस  नही  होने  दिया  कि उनके  सर पर किसी का हाथ  नही है  ।अपनी  खुशियो  को नजर अंदाज  करके उसने सबको हर तरह से संतुष्ट  रखने  की  पुरजोर  कोशिश  की और वह उसमे  सफल  भी  रहा।                                                                             समय  बीतते  चला गया उसके इस  अकेलेपन ने उसे  अन्दर  ही अन्दर झकझोर कर  रख दिया था। उस शख्स  के लिए  किसी  के पास  पांच मिनट  का समय नही था । जो उसके यह एहसास  दिला  सके कि  यहां  हमारा  भी कुछ  वजूद  है।  बच्चे औरत सब लोगो  के रहते  हुए  भी  वह अपने आप को  अकेला  महसूस कर  रहा था। सभी अपने आप मे व्यस्त  थे और तो और  उसकी  जीवन  साथी  मोबाइल  मे ही मस्त थी।उनको   उस शख्स से  ज्यादा  अपने  फेन्स का ख्याल   रहता  था।  कही  कोई फेन्स  बुरा  ना मान  जाय  ।घर मे बस उसकी  जरूरत  एक  ए टी एम कार्ड  से ज्यादा  नही थी,  जब जरूरत  हो  काम मे  लिया और जब जरूरत  पूरी  हो  गयी    तो  सामान  की  तरह कही  रख दिया ।                                                                     उस शख्स की  ज़िन्दगी एकदम  नीरस सी  हो गयी थी  ।सबकुछ होते  हुए भी  उसके पास कुछ नहीं  था। यह वह अकेलापन  उसे  रात  भर  सोने  नही  देता। वह हर समय  वही  सोचता  जो उसे चाहिए  था।  सबकी    जरूरते पुरा  करते करते वह इस  दशा  मे  पहुंच चुका था कि उसकी हालत  पिजडे  मे   बन्द  उस  पंछी के   जैसा हो गया न उड सकता है ।नही  बंदिश  से  निकल  सकता  है। उसे अपनी ही ज़िन्दगी एक  बोझ  सी  लगने  लगी  ।                                                        फिर  उसकी  जिन्दगी  मे  एक  मोड  आया ।एक  दिन  उसके  कदम रास्ते  पर  चले  जा  रहे  थे ।  हल्की  सी  बारिष हो  रही थी  । एक  भिखारन अपने  दो  बच्चो को  गोद मे        लिए   आधी  भींगी आधी  सुखी  रोड के  किनारे बडे  दयनीय  दृष्टि  से  उसे  घुर रही  थी। शायद कुछ मील  जाय और आज का  काम  निपट  जाय  । उसे  उस  हालत  मे  देख कर  उस शख्स  के अन्दर के आदमी ने उसको बुरी  तरह  झकझोर दिया। उसने  पाकेट  से  पच्चास  रूपये  का नोट  निकाला और उस  भिखारन  को  दे दिया ।  अब  पच्चास  रूपया  की नोट  देख कर उस भिखारिन  के  चेहरे   पर ऐसी  खुशी आई जैसे  कुबेर का  खजाना  उसके  हाथ लग  गया  है ।  वह उस शख्स को  कुछ  दूर  तक  जाते  देखती  रही  ।                                            कुछ  दिन बाद जब उस शख्स को उस ओर जाना  पडा़ ,तो उसकी  निगाहे  उस  भिखारिन  को ही  ढुढती  रही  ।   उस  भिखारिन को  देख कर   उसका मन   एकाएक  खुशियो  से  उमड़  पड़ा।  उसने  अपने  जेब से कुछ  रूपये  निकाले  और भिखारिन  से बोला "  यह कुछ  पैसे  लेलो बच्चो के लिए और अपने  लिए कुछ  ढंग  के  कपडे  ले  लेना।"  यह सुनकर   भिखारिन स्तब्ध  रह गयी और उस शख्स के आग्रह  को  ना  ठुकरा  सकी ।और आंखे  नीची  करके  उसने  पैसे  ले लिए और कृतज्ञ  भरे  दृष्टि से उस शख्स  की  तरफ  देखती  रह गयी । उस दिन के  बाद वह शख़्स कुछ  भी  देता  वह  अस्वीकार  नही कर  पाती  । कुछ दिन बाद  उस  शख़्स के  मुंह  से निकल  गया  "तुम इस तरह  ऐसी  कडक  धूप  मे  बैठी  रहती हो  तो  मुझे  अच्छा नही  लगता है।   थोडी  ही दुरी पर  मेरा  घर  है ,उसमे  एक कमरा खाली  है  मै  कभी  कभी यहां आ जाता  हूं,  तुम  यदि  चाहो  तो  वहां  रह  सकती  हो  ।   उसके  शब्दो  मे  इतना  आग्रह  था कि  भिखारिन  ना ना कह  सकी  । वह  झिझकते  झिझकते  अपने  नजरो  को  झुकाये  रही  ।  और चुपचाप  उस शख्स के  पीछे पीछे  चलती  रही  ।  कुछ दिन रहने के बाद उसने   फूल  बेचने का काम  शुरू  किया  और बच्चो  कि देख  भाल  करने  लगी  ।                                                   बहुत  दिन  बीत गये  जब उस  शख्स का आना  नही हुआ  तो  भिखारिन  को  बहुत  चिंता  हुई  । और वह मन ही मन  ईश्वर  से  प्रार्थना  करने  लगी  " हे भगवन,हमारे  साहेब  कही  भी  हो  आप की  कृपा  दृष्टि  हमारे  साहेब  पर जरूर  रखना  ।    वह आज भी  उस  शख्स  की  दयालूता  को  भूली  नही  थी  ।  बहुत  दिन बाद   एक  दिन  उस  शख्स  का आगमन  हुआ  । वहां के  परिवर्तन को  देख कर  शख्स  को खुशी  का ठिकाना  ना रहा।  उसने  भिखारिन  की  बहुत  तारिफ  की  ।तब    भिखारिन  बोली "सब  आपकी  मेहरबानी है साहेब, आपने  हमे  सडक  से  उठा कर   यहां तक  पहुंचाया ,आपने  हमको और  हमारे  बच्चो को  आश्रय  दिया  ।  भला  आज के  युग मे  कौन  दुसरो  के लिए  कुछ  करता  है।  कुछ  देर बाद  उस  भिखारिन  ने  एक  आग्रह  किया साहेब  यदि आप  बुरा  ना  माने  तो  एक बात पुछू आपने  हमे  आश्रय  दिया , आपका  परिवार आपका  समाज  आपको  कुछ  कहता नही है।"  "समाज की  बात  तो  बहुत  दूर  है  । हमारे  परिवार वालो को हमारे  बारे मे  कुछ  सोचने  का समय नही  है। तो  तुम्हारे  बारे  मे  क्या सोचेगे ।   साहेब  एक और विनती  है,  खाने का समय  है  यदि  आप  बुरा ना माने  तो मै  खाना  खिलाने  की  गुस्ताखी कर  सकती हूं ।  उसका  आग्रह  इतना  दयनीय  था कि वह  शख्स  ना नही  कर  पाया।  खाते  खाते  उस  शख्स की आंखे  सजल  हो  गई  । भिखारिन  घबरा  गई " क्या  हो गया  साहेब  "  "कुछ  नही  बहुत  दिनो  बाद  ऐसा  खाना मिला  है  तो  आंखे  अपने आप को  रोक  नही  पाई ।"  " अरे  हां,  तुम  मेरे बारे  मे  पुछते  रहोगी  या अपने  बारे  मे भी  कुछ  बताओगी । इतना सुनना ही था कि भिखारिन  कि आंखे  सजल  हो  गयी  ।कान  लाल हो  गये । वह अपने आप को  सम्भाल  नही  पायी और फूट  फूट  कर  रोने  लगी ।                                                                             "माफ  करना  तुम्हे दुखी  करने  का इरादा नही था यदि तुम बताना  न चाहो  तो  मै तुम्हें  बाध्य  नही  करूंगा।  पर तुम इस तरह  दुखी  मत  हो।"  " नही  साहेब   जिन्दगी  मे  पहली  बार किसी ने मेरे  दर्द के ,मेरे  हालात के बारे  मे  पूछा  है मै आपको अपनी  आप बीती  जरूर  बताऊंगी  । मेरे  पति  एक  अच्छी कंपनी  मे काम करते थे  ।सास ससुर तो गुजर चुके थे । मेरे पति का छोटा  भाई और  हम पति पत्नी  खुशी  खुशी  रहा करते  थे  ।सब कुछ  अच्छा  चल  रहा था।   एक  सड़क  दुर्घटना मे मेरे  पति  की  मृत्यु  हो गई  ।कुछ  दिन तो  सब कुछ  सामान्य  था पर  कुछ दिन  बाद  उन  दोनों की  काना  फूसी बढती चली  गयी  हर  छोटी से  छोटी  बात को लेकर  झगडा होने  लगा।  कलह  इतना  बढ़  गया  कि मै  दोनो  बच्चो  को  भगवान  भरोसे  लेकर  वहां से  निकल  गई  ।और भीख  मांग कर  अपना  गुजर बसर  करने  लगी  ईश्वर की कृपा  से  आप  हमारे  जिन्दगी  मे आये और हमे आश्रय  दिया ।यह कहते  कहते  उसका  गला  इतना  रूध  गया  था कि  उसके  मुंह  से  आवाज  नही निकल  रही थी ।आवाज की जगह  उसके  सिसकियो  ने  ले रखी  थी  ।जो  रुकने  का नाम नही ले रही  थी।   उस शख्स ने  भाव विभोर हो कर अपने  हाथ उसके सर पर रख दिया।                                                                                दोस्तों  कहानी कैसी लगी  कमेन्ट  बाक्स  मे दो शब्द  जरूर लिखे ।लेखक भरत गोस्वामी मुम्बई, भारत  

Comments

  1. बहुत ही मार्मिक है।

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  2. Bhut hi marmik hai ort teri yhi khani aachl me hai doodh or aankho me pani
    Lgbhg aajkl sbhi dukhi hai koi tn dukhi koi mn dukhi koi dhn se bhya udas thode thode sb dukhi sukhi ram ka daas prmatma ki srn me hi santi hai

    ReplyDelete

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