AKSHAYA TRITIYA अक्षय तृतीया A RELIGIOUS STORY


 वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की  तृतीया को अक्षय तृतीया के  नाम से  जाना  जाता  है।  यह  हमारे  सनातन धर्म  मे इतना शुभ माना  जाता है  कि  कोई  भी शुभ कार्य  करने के लिए  आज के  दिन  मुहूर्त  की  जरूरत नही  पडती । आज का  हर पल अपने  आप मे एक  शुभ  मुहूर्त  हैं  ।आज ही के  दिन भगवान परशुरामका जन्म  हुआ था  । आज के दिन ही मां गंगा का  पृथ्वी  पर  आगमन  हुआ था  ।मां  अन्नपुर्रणा   आज के दिन ही  अवतरित  हुई थी  ।वैसे  तो आज के दिन को  लेकर  बहुत  सी  कथाए  प्रसिद्ध है  । उनमे  से एक  कथा हम  आपके  समक्ष प्रस्तुत कर रहे है  ।                                                              यह कथा भगवान  श्री कृष्ण  काल  की हैै।उस समय की बात है  ।माधवेेेेन्द्र  पुुुरी  नामक एक  श्री कृष्ण भक्त  थे जो भगवान  श्री कृष्ण के  अनन्य  भक्त थे।   एक  बार  उनके  मन  मे श्री  वृन्दावन घुमने  की इच्छा  हुई । विन्धास   प्रवृति  के हो ने के  कारण  उन्होने  अपना  दिनचर्या का समान  लिया  और  वृृृृृन्दावन के लिए  निकल पडे़ ।वहां पहुँच कर  वे एक  वृक्ष के नीचे   विश्राम करने लगे।  अब  अंधेरे ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया  था।  भगवान श्रीकृष्ण  केे नाम   का जाप करते करते निद्रा  ने उन्हें  अपने  आगोश मे  ले लिया।  चांदनी रात ने भी अपना  जलवा  दिखाना  शुरू कर दिया था।                              इतने  मे  एक नन्हें  किशोर की आवाज़ ने उनके  तंद्रा  को  तोड़  डाला। जब उन्होने  नजर  उठा कर  सामने देखा तो एक किशोर  बालक  को देखा तो  देखते  रह गये  ।इतना  सुन्दर  बालक उन्होने पहले कभी नहीं  देखा  था।  काले काले  घुंघराले  बाल,   मेघ के सदृश  सुन्दर  काया ,कमल पुष्प  की तरह सुन्दर नयन ,सुराही दार  गर्दन  आवाज इतनी  मधुर  की  आत्मा  भी  सुनकर  गद गद हो  जाय।सैकड़ों  सुर्यो और सैकडो  काम देव  भी  उनके  छवि के समक्ष फीके  पड़ जाये  । इस  सुनेसाने  विरान  मे रात के इस वक्त  कहाँ  से  आया  ? और  किस लिए  आया  ? कई प्रश्न मन के  मंदिर  मे हल चल मचाये  हुए  थे  ? अनायास ही उनके  मुख  से निकल  पड़ा "आप  कौन है ?रात्रि के समय इस तरह  आने  का आप का अभिप्राय क्या है "? तब नन्हें से किशोर  बालक  ने कहा "मै तो एक ग्वाला  हूँ  ।मेरा नाम  गोपाल  है। इधर  से गुजर रहा था। आपको  देखा तो  सोचा  इस सुनसान  जगह  पर  यह  व्यक्ति कौन  है  । इस  सुनेसाने  मे इनको कुछ  खाने को  भी  नही  मिला होगा, मेरे  पास  थोडा़  दूध  है सोचा आपको  दे दुंगा।  शायद  थोड़ी  राह गीर की सेवा हो  जायेगी  ।                                                                तब  माधवेन्द्र  पूरी  ने कहा  " ठीक  है जैसी  हरि की इच्छा  ।"   ऐसा बोल कर उन्होने  दूध का पात्र  ले लिया माधवेन्द्र  पूरी  की यह आदत  थी कि  वे कभी  किसी से कुछ  मांगते  नही  थे  । किसी  ने उन्हे  कुछ  दिया  तो वे उसे अस्वीकार भी  नही  कर ते  थे  । भगवान को भोग अर्पित करके उन्होने  दूध ग्रहण  कर लिया तब उन्होने महसूस  किया  ऐसा   अमृत जैसा  दूध  तो  उन्होने कभी    पिया  ही नही था। दूध पीने के  बाद  जब  वे पात्र को वापस देने  लगे तो  उन्होने देखा  कि बालक  किशोर तो  वहां  था ही नहीं  ।  उन्हे बहुत आश्चर्य हुआ  ।                    फिर  श्रीकृष्ण  नाम का जाप करते करते  सो गये  । कुछ समय बाद उन्हें सपने  मे वही किशोर  बालक  दिखाई  दिया  जो अपना नाम  गोपाल  बता रहा था  । बालक   बोल रहा था । "मुगलो के  अत्याचार से  दुखी  होकर मंदिर केे  पुजारियो ने   मुझे  यहां से  सात   कोस की  दूरी पर  धने  झाडियो के  बीच  छुपा दिये  थे  ताकि  मुगल  मेरा  अपमान  न कर सके  ।अब  मुझे  झाड़ियों  से  निकाल कर  मुझे  गोवर्धन  पर्वत पर  स्थापित  करो ।" सुबह  जब माधवेन्द्र पूरी  की  नींद खुली  तो  सबसे  पहले उनकी  नजर  उस दूध के पात्र पर पडी़  तो  उनकी  आँखें  सजल  हो  उठी  । मेरे  प्रभु  ने मेरे लिए इतना कष्ट उठाया  । वैकुंठ  से मेरे लिए   दूध   लेकर आये  और मै उन्हें  पहचान  भी ना पाया । मै कितना  मुर्ख  हुँ। फिर उन्होने अपनी यात्रा  शुरू  किया। बीच मे  गांव  आते  ही  उन्होने सपने वाली  बात कुछ लोगो को  बताई  तो  कुछ लोग  उनकी  बातो को  मान कर  उनकी  मदद करने को तैयार  हो गये  । भगवान द्वारा  बताई  गयी  दिशा पर   कुछ  लोग  उनके  साथ  चल रहे थे।  आखिर कार  वह स्थान मिल  गया और  भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति भी मिल  गयी  ।उनके   खुशी  का ठिकाना ना रहा वे सब लोग मील कर भगवान श्री कृष्ण का  एक भव्य  मं दिर का निर्माण किये। विधि विधान  से  भगवान श्री कृष्ण  की मूर्ति की स्थापना की गयी ।  तब  माधवेन्द्र  जी  वही के होकर  रह गये ।                        कुछ दिन बीतने पर गोपाल जी   फिर  माधवेन्द्र पूरी के सपने मे आये और बोले  "सालो  से  झाड़ियों  मे रहने के कारण  मेरे  शरीर  मे बहुत  गर्मी   हो गई है  ।आप  जगन्नाथ पुरी  जाइए और वहां  से  मेरे  लिए  मलय चंदन लेकर  उससे  लेप करके मेरे शरीर के  गर्मी  को  शान्त  कीजिए  ।पुनः  सुबह  नींद  से  उठने  के  बाद  सबको  पूजा अर्चना का काम सौप कर  माधवेन्द्र  जी  जगन्नाथ  पूरी  के  लिए  चल दिए  ।रास्ते  मे  भगवान गोपी नाथ  जी  का मंदिर  मिला।  संध्या  का समय  था। माधवेन्द्र  जी   मंदिर  के  बाहर  एक  पेड़ के  नीचे   अपना आसन लगा कर  विश्राम  करने लगे  ।श्री कृष्ण  नाम  जाप करते करते उन्हे  नींद  आ गयी। उधर  गोपी नाथ जी मंदिर मे  संध्या आरती के  बाद  भगवान  को  खीर की सात  मटकी   भोग  मे चढाई  जाती  थी  ।पूजा अर्चना के बाद  जब  भगवान  गोपी नाथ जी की शयन  आरती  से पहले  पहले चढा हुआ  भोग  श्रधालू जन को  बांटा  जाता था। आज  सात  मटकी  के  बदले   वहां  छः  मटकी  ही मिली मुख्य  पुजारी  को  बडा़ आश्चर्य हुआ। बहुत ढुंढा  गया पर मटकी  का पता ना चला।  शयन आरती के बाद पुजारी  सोने  चला गया।                                               तब सपने मे उन्हें  एक  आवाज  सुनाई  दी, " मेरे मुर्ति के  पिछे  एक  खीर की  मटकी  रखी  गई है। मंदिर के कुछ  ही  दूरी  पर एक  पेड़ के नीचे मेरा एक भक्त  भूखा  सो रहा है  आप  वह खीर की  मटकी उसके  यहां पहुंचा  दो। " तुरन्त  पुजारी की नींद खुल गयी पहले तो उसने  साधारण  सपना समझ कर  टालने की  कोशिश किया पर दुसरे पल उसके  मन  मे विचार  आया  कि चल कर देख लेने  मे हर्ज  क्या है।  
 पुजारी जी ने मूर्ति के  पीछे जब  खीर की  मटकी  देखी  तो  उनको आश्चर्य का ठिकाना ना रहा।  उन्होने बिना  विलंम्ब  किये  उस  दिशा  मे  प्रस्थान किया जिस दिशा  मे जाने  का आदेश  हुआ  था  ।वहाँ  जाने  पर  जब  पुजारी  जी  माधवेन्द्र पूरी जी को  सचमुच  सोते  देखा  तो उनकी  आँखों से अश्रु धारा बह पडी़।  वाह  रे प्रभु  वाह  रे भक्त  ऐसी  भक्ति की  मिसाल  तो  मै जीवन  मे  पहली  बार  देख  रहा हूं । पुजारी  जी ने आदर  से माधवेन्द्र  पूरी  जी को  जगाया  और  उन्हे  सपने की  सारी  बाते  बताई  ।  पुजारी की  बाते  सुन कर  माधवेन्द्र पूरी  जी  फफक फफक के रोने लगे  ।और कहने  लगे  मै तो  एक सधारण मनुष्य  हूं मेरे  लिए  मेरे  प्रभु  इतना  कष्ट  क्यो  उठाते  है  । तब  पुजारी  ने उन्हें  वह खीर की  मटकी  दी और कहा  कि  आप कितने  भाग्यवान है कि भगवान को आप के लिए  खीर की चोरी  करने की नौबत  आ  गई। आज से भगवान के नाम के  आगे  एक  और  नाम  जुड जायेगा ।आज  से हम  लोग  उन्हें  खीर चोर के  नाम  से  पुकारेगे। सचमुच आज भी गोपी नाथ जी को  खीर चोर के  नाम  से  जाना जाता है  ।                                                    जब भगवान श्री कृष्ण की भेजी  हुई  खीर का स्वाद  माध़वेन्द्र पूरी  जी को  चखने  को मिला  तो उनके  मुख  से अनायास  ही  निकल पड़ा  "काश्  ऐसी खीर  मै एक  दिन  अपने  गोपाल जी को  भोग  लगा  पाता  तो  मेरी  जिन्दगी  घन्य  हो  जाती।  अगले दिन सुबह, ही  माधवेन्द्र  पूरी जी ने  जगन्नाथ पूरी  की  तरफ  प्रस्थान  किया  । वहां पहुुुुुंचने से  पहले ही  माधवेन्द्र  पूरी  जी की भक्ति  की  चर्चा वहांं पहुंच गई थी  । 
  लाखो लोग  माधवेन्द्र जी  के  दर्शन  के  लिए  उमड पडे़ भगवान जगन्नाथ जी के यहां  उनका  भव्य  स्वागत  हुआ और  चालिस  किलो मलय  चंदन और कपूर  देकर   वहां के  पुजारियो  ने  माधवेन्द्र  पूरी को  बिदा किया  ।  माधवेन्द्र जी पुनः  गोपी नाथ  जीके  यहां विश्राम किया ।तब  भगवान श्री कृष्ण  ने  पुनः  सपने मे आकर  माधवेन्द्र  जी को  आदेश  दिया  कि मै और  गोपी नाथ जी  एक  ही  है  आप  बिना  बिलंम्ब   गोपी नाथ जी को  मलय  चंदन का लेप  करवा  दो  उनके  उपर  किया हुआ  लेप  मुझे  गर्मी  से निजात  दिलवायेगा।  सुबह उठने पर  सपने  वाली बात   माधवेन्द्र पूरी जी मुख्य  पुजारी  को  बताया  तो वे  सपने के  आदेश  को   अपना  धर्म  मान कर गोपी प्रेम नाथ जी के  शरीर पर  मलय चंदन का  लेप करवा  दिया  ।        दोस्तो यह  कहानी आप को कैसी लगी  आप अपने  दो शब्द कमेंट् बॉक्स  मे जरूर लिखे धन्यवाद -भरत गोस्वामी  

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