RAJKUMAR AUR PRET राज कुमार और प्रेत A MOTIVATIONAL STORY


इस  जगत  मे  बहुत लोगो  का कहना है कि ,बिना प्रभु के  इच्छा एक पत्ता नही हिल सकता। इस बात का प्रमाण देती हुई लोक कथाओ  मे प्रचलित  यह कहानी इस तथ्य को सत्य साबित करती हैं। और ईश्वर के मर्जी के  बिना कुछ न होना इस तथ्य  को प्रमाणित करती है  ।                                         
बहुत समय पहले  एक राजा अपने  प्रजा  की सेवा मे लीन  थे।प्रजा  उन्हें  अपने पिता के समान  सम्मान  देती थी। उनका  एक ही राजकुमार  था। जिसका नाम  उत्तम  था। उत्तम बहुत ही  साहसी निडर और व्यवहार कुुशल बालक था।  राजा के  राज्य मे एक ऐसी जगह थी। जहां  एक प्रेत ने आतंक  म चा रखा था।  वह प्रतिदिन  गांव  के एक सदस्य के घर  सेे कोई  बच्चा जबरन  उठा ले जाता  था  ।  गांव के कई  सदस्य  इस समस्या का समाधान  ढूूंढ रहे थेे, पर इस समस्या का कोई समाधान नही   दिख रहा था ।                                                                   परेेेेेशान होकर कुछ सम्मानित  लोग राजा के यहां रक्षा की गुुुुुहार  की  । राजा ने उनकी याचना को सुना और उसके समाधान के लिए उन्होने सम्मानित दरबारियो को बुलाया और उनके साथ इस  बिषय पर मंंत्रणा  किया । अन्त मे सर्व  सम्मति से यह  तय किया गया कि,  नगर  नगर  ढिंढोरा   पीट वाया  जाय कि जो 
इस समस्या  से  गांव वालों  को मुक्त  करेगा उसे मुहं  मांगा इनाम  दिया जायेगा।                                                                 गांव -गांव नगर-   नगर ढिंढोरा पीट वाया गया।  चार दिन बीत गये कहीं से कोई  सूचना नही आई ।  राजा दुखी हो गये।  राजा को दुखी देखकर  राज कुमार  उत्तम  ने    राजा से पूछा" पिता जी आप  दुखी  क्यो है ? आप की यह उदासी मुझे अच्छी नही लगती  । आप जो भी हो मुझे स्पष्ट बताने की कोशिश करे। "   तब राजा ने राज  कुमार से   अपने उदासी का कारण  बताया।                                   पुरी  बात सुनने के बाद  राजकुमार  उत्तम  ने इस कार्य  को करने का जिम्मा लिया। और राजा के लाख मना करने के बाद भी  चन्द  सिपाहियों के साथ  उस गांव की तरफ  प्रस्थान किया।  जिस  वक्त  राजकुमार वहां पहुंचे उस वक्त  आकाश अपनी लालिमा को समेट  रहे रहा था।  उन्होने अपने  चन्द  सिपाहियों  को  लेकर  एक योजना बनाई। उस काम को  अंजाम  देने के लिए  जिस योजना बद्ध  काम का चयन  किया गया था उसके पूर्व  ही एक घटना घट  गई  ।                                राजकुमार  उत्तम ने सुना कुछ  लोग ऊंची आवाज  मे "बचाओ , बचाओ  " कह कर  रक्षा की पुकार  कर रहे थे।  राजकुमार उसी दिशा मे  अकेले ही निकल गये  । कुछ देर चलने के बाद  उन्होने  देखा की एक विशाल काय  मानव की आकृति वाला व्यक्ति  उनकी तरफ दौडा  चलाआ रहा है। यह क्या हो रहा हैं इतना समझने   का मोका ही नही मिला कि राजकुमार अपने  आप को प्रेत के गिरफ्त  मे पाये। फिर भी उन्होने   अपना मानसिक  संतुलन  नही खोया।  कुछ देर बाद  उन्होने अपने  आप को एक घने  जंगल  मे पाया। जहां दुर दुर तक किसी के वहां  रहने का आभास भी नही मील रहा था इतना धनघोर अंधेरा  था कि सामने की कोई वस्तु स्पष्ट दिखाई नही दे रही थी। 
राजकुमार पुरी तरह से किसी भी परिस्थिति  को सम्हालने के लिए  अपने आप को  तैयार  कर रहे थे।  उनकी सारी योजनाओं पर पानी फिर  गया था।  कुछ समय बाद जब अंधेरा कम हुआ तो उन्हे वही बिशालकाय आकृति दिखी  जो मध्यम  मध्यम मुस्कुरा रही थी,  साथ मे उसको आश्चर्य  भी हो रहा था ।राजकुमार के चेहरे पर किसी तरह का भय न देख कर  प्रेत परेशान था मुझे  देख कर ही अच्छो- अच्छो  की जान निकल जाती है। उनके  प्राण-पखेरु  उड जाते है। यह कैसा अदभुत  बालक  है।  इसके चेहरे  पर जरा भी भय नही  है।    आखिर कार उससे नही रहा गया।  उसने राज कुमार से पूछा "मुझे  देख कर तुम्हे  भय नही लगता।  तुम पहले बालक  हो जो अभी तक  जिन्दा हो।                                                                          राजकुमार  बोले" जिस ईश्वर ने  तुम्हे  बनाया है उसी ईश्वर ने मुझे  भी बनाया है तो फिर भय कैसा। "  यही है कि तुम जरा बिशालकाय  हो  और मै थोडा छोटा हूं। पर पता नही क्यू तुमको  देख कर  मुझे  भय नही लगता है। मुझे  ऐसा लगता है कि,मेरा तुम्हारा  कोई दिली  रास्ता है जो मेरे दिल केअन्दर तुम्हारे प्रति कोई संसय  पैदा नही  होने देता  है।   प्रेत को बालक  की मीठी मीठी बात बहुत अच्छी लगी। उसका दिल  पिघल  गया ।और उसने बालक को कुछ दिन बाद  खाने का प्रोग्राम बनाया  ।                            दो दिन बीत गये ना ही प्रेत का कुछ समाचार  मिला नाही राज कुमार का कही पता चला।  गांव वाले परेशान थे।   राजकुमार ने अपनी  मीठी मीठी बातोसे प्रेत का दिल जीत लिया।  सुबह सुबह उठ कर  घने जंगल से मीठे मीठे  फल लाकर राज कुमार खुद  भी खाते और प्रेत को भी मीठे फल खाने का आदि बना दिया  ।कुछ दिन बीत जाने  पर एक दिन राज कुमार ने  प्रेत से पुछा आप रोज रात  को कुछ समय के लिए   कहां  चले जाते हो।  तब प्रेत बोला "हम लोग  रोज रात को ईश्वर  के यहां जाते है।  वहां हमे रोज  बुलाया जाता है। "                     राज कुमार ने मीठे शब्दो मे पूछा   " तब तो आपकी वहां अच्छी  पहचान बन गयी होगी,। " हां  हां ये बात तो सहीहै  पर तुम ऐसे क्यों  पूछ रहे हो। " " मै इस लिए पूछ रहा हूं कि मुझे  यह जानना है  कि मेरी उम्र क्या है। " " बस  इतनी सी बात है तो मै ईश्वर  से पूछ कर तुम्हे  अवश्य  बता दूँगा। "  दूसरे दिन प्रेत ने आते ही राजकुमार  से बोला"तुम्हारी उम्र  तो बहुत लम्बी है। " तब राज कुमार ने दुखी होकर कहा "इसी बात का तो मुझे डर था। मै अधिक दिन जीना नही चाहता हूं।  तुम ईश्वर से कहकर  मेरी उम्र करवा  दो। "  "ठीक है मै ईश्वर  से तुम्हारी  बात अवश्य  कहूंगा। "  दूसरे  दिन प्रेत ने आते ही राज कुमार से कहा "बालक  जैसा तुमने कहा था वैसा ही हमने ईश्वर  से कह दिया पर उन्होने  हमारा जबाब देनेसे पहले  मुस्कराना शुरु कर दिया और फिर थोडी देर बाद  बोले "ऐसा नही हो सकता विधि के इस विधान को   हम नही बदल सकते है।  इस बारे मे कुछ नही कर सकते।  " राज कुमार  ने मन ही मन ईश्वर  को धन्यवाद  दिया दूसरे  दिन राज कुमार ने दो पथ्थरो  के घर्षण  से कुछ आग पैदा की  और हाथ मे जलता हुआ लकडी का टुकडा लेकर  उन्होने  प्रेत को  दौडा लिया जब समय से पहले तुम्हारा ईश्वर  मुझे नही मार सकता है तो मुझे  मारने की तुम्हारी क्या  औकात है । यह सत्य बचन  सुन कर  प्रेत हमेशा के लिए कही भाग गया।              दोस्तों  कहानी कैसी लगी  कमेन्ट बॉक्स  मे दो शब्द  अवश्य लिखे धन्यवाद लेखक- भरत गोस्वामी  

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