KATHA MAHATMAYA कथा महात्म्य A RELIGIOUS STORY


 .पूजा-पाठ ,जप-तप,अर्चना -आराधना,  हवनादि,आस्था सबका अपना अलग  अलग  महत्व  है। इसी तरह कथा  श्रवण का भी अपना  महत्व  है  ।कथा  कराने का भी अपना अलग  महत्व है  लोक कथाओ  मे प्रचलित  यह एक बहुत लोक  प्रिय कथा हैं  जिसे हम  प्रस्तुत  करने जा रहे है  । आशा है ,आप सबको  पसंद  आयेगी  ।                                     एक  मध्यम वर्गीय   मुहल्ला  सभी लोग  शान्ति मय ढंग से जीवन यापन कर रहे  थे।  उसी  मुहल्ले  का एक  बनिया( व्यापारी) जो  किसी की मजबूरी  का फायदा  उठा   लेता था। जरूरत   पडने  पर किसी भी  आदमी का  आर्थिक  मदद करता तो उससेे घुमा फिरा  कर  दुगना धन वसुलता और उपर से खरी खोटी भी   सुनाता था   । दिनो दिन उसकी क्रुुुुरता बढती चली जा  रही थी।   उसके आचरण मे किसी तरह का बदलाव न   आ कर उसका दुुुष्कर्म और दृढ होता गया  ।                                  कुछ वर्ष  बाद उसके  मुुुुुुहल्ले मे     एक  सज्जन  पुरूष के  यहां  भगवान  श्री सत्य नारायण की पूजा का आयोजन चल रहा था वहां  बनिया निमंत्रित था।  पंडितजी  अपना कथा प्रसंंग बोले जा रहे थे।  बनिया बड़े  ध्यान से उनकी बातो को सुन रहा था । उस कथा प्रसंग मे पंडितजी  के द्वारा  एक बात कही गई  थी  कि कथा  सुनने का फल तभी  प्राप्त  होता है ,जब कथा वाचक  को कुछ ना कुछ दान दिया जाय । यह सोच  कर बनिया अपनी फुलवाड़ी  मे गया और  एक अमरूद के पेेेड़ पर   चढ  कर फल तोडकर  दान दिया जाय ऐसा सोचने लगा। उस पेड पर   अमरूद केे बडे बडे फल लगे थे। अपने दुष्ट स्वभाव के कारण  यह बनिया  छोटे फल ढूढने  लगा  । इतने मे एक दुर्घटना  हुुई बनिया का पैर फिसला गया और वह पेड  पर सेेेेे गीर गया । वहां उसकी मृत्युु हो   गई  ।                                                           मरने के बाद   यमदूत  उसे यमराज के दरबार मेेे  ले गये । वहां यमराज के सचिव  चित्रगुप्त ने  बनिया के  पुरे जीवन का व्योरा यमराज को सुनाया  ताकि उसकेे  कर्म  के अनुसार उसे फल  दिया  जाय ।   पुुुरा व्योरा बतानेे के बाद कही ऐसा अच्छा कर्म  नही मिला जिससे उसको  अच्छा फल दिया जा सके ।उसका सारा व्योरा सुनने के बाद  यमराज बोले  " तुमने  जिन्दगी मे कोई अच्छा कर्म  नही किया हैै । इस लिए  तुुुुुम्हे   नरक  प्रदान किया जाता है । दूतो  इसे  नरक   मे  डाल दिया  जाय । "                    बनिया  गिडडाने  लगा   "महाराज सुुुुनिए तो सही,  पंडितजी  जो कथा केे दौरान  कह रहे थे कि, कथा के श्रवण  मात्र  सेेेेेेे मनुष्य के सारे पाप धुुल जाते है। तो  क्या कथा मे कही हुुई   यह बात  अक्षरशः  असत्य है।  ऐसा कैैैसे हो सकता  है महाराज , भगवान   श्री सत्य नाारायण  श्री हरि विष्णु  की परम  प्रिय कथा  प्रसंग है यह असत्य  कैसे हो सकती  है? यदि यह  असत्य   नही  है तो   पृृृृृथ्वी  वासियों  के साथ ढोंग क्यो ? पूजा पाठ, जप-तप ,कथा प्रसंग ,हवन यादि सब आडम्बर   है।  इसका कोई महत्व नही है। "                                                         अब  यमराज  के पास इसका कोई  जबाब ही  नही था  उन्होने  दूतो को बनिया को अतिथि  गृह मेे रखने  का आदेश दिया   । यमराज  की चिन्ता बढती जा रही थी।   उन्हें  असमंजस ने घेर रखा था। बात कुुुछ  सुलझता  न देख कर उन्होने ब्रह्मा  जी को या द  किया  ।ब्रह्मा  जी ने यमराज की ब्यथा सुनी  पर कोई इस समस्या का हल  न निकाल सके। तब  यमराज ने देवो के देव महादेव  की शरण  पहुुंचे पर वेेेे भी इस समस्या का हल  न निकाल सके।  तब  तीनो देव मील कर  भगवान श्री हरि विष्णु के यहां   पहुंचे  ।  और  सारी समस्या कह  सुनाई  ।                                                                      तब भगवान श्री  सत्य नारायण श्री हरि विष्णु  जी मुस्कुुुुुराये और बोले " यमराज  तुम्हारी  इस समस्या  का समाधान मेरे  पास भी नहीं है। पर सवाल यह उठता है , किया क्या  जाए।       जब चारो देव मील कर इस समस्या का हल नही निकाल सके तो दूतो को " बनिया को हम लोगों  के सामने पेश किया जाय " ऐसा आदेश दिया  ।                                                                 जब बनिया  ने  चारो देव को साक्षात्  देखा तो उसके आंखों से खुशी के आंसु छलक पडे ।"प्रभु  बडे बडे ऋषी,  मुनी आजीवन  तपस्या करते है।  तो भी आप लोगों  का दर्शन  दुर्लभ  होताहै।  मै तो एक तुच्छ बनिया हूं। मैने  तो जिन्दगी  मे कोई अच्छा  काम नही किया।  फिर भी आप लोगों का दुर्लभ  दर्शन  मुझे प्राप्त  हुआ।  मै धन्य  हो गया प्रभु  आप लोग मुझे स्वर्ग  दे या नरक  अब मेरी आत्मा आप लोगों के दर्शन  मात्र  से संतुष्ट हो गई है ।"                                                                            तब देवो के देव महादेव  ने कहा " वत्स पृथ्वी पर पूजा पाठ,जप- तप, कथा प्रसंग, हवनादि  आडम्बर नही  है । कथा प्रसंग  मे जो बात पंडित ने कहा है, वह बात अक्षरशः  सत्य  है।  श्री सत्य  नारायण  श्री हरि विष्णु के कथा प्रसंग को जोभी प्रेम पूर्वक  सुनता  या सुनाता है उसके सारे पाप समूल  नष्ट  होजाते है। और मनुष्य पुण्य  का भागी होता है। पूजा पाठ, जप- तप,कथा प्रसंग ,हवनादिऔर दर्शन  का अपना अलग अलग महत्व है। "   तत्पश्चात  श्री  महादेव के बचनो को सुनने के बाद  बनिया  भगवान  श्री महादेव के चरणों  मे गीर पडा  ।और हाथ जोड कर बोला "तब तो तीन  देवो के  दर्शन का लाभ मुझे मिलना चाहिए। " तब श्री महादेव  जी मुस्कुराये और कहा "  तथास्तु "     ।                                                     दोस्तों कहानी कैसी  लगी दो शब्द कमेंट्बाक्स   मे जरुर  लिखे। धन्यवाद  लेखक -भरत गोस्वामी                                                 

Comments

  1. शिक्षा लेने योग्य प्रसंग है

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  2. बहुत ही सुंदर प्रशतुती मे भाइ जी🙏🌹🌹🌹 धन्यवाद 🌹🌹🌹🌹

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