VISHWASH KA FAL विश्वास का फल A RILIGIOUS STORY
मनुष्य का जीवन परेशानियों से भरा हुआ है। फिर भी मनुष्य जरा सा अध्यात्म के उपर विश्वास करले तो उसे बहुत राहत मिलती है ।यह तथ्य नैसर्गिक है । इसी तथ्य को दर्शाती एक कहानी का वर्णन हम करने जा रहे है जो लोक कथाओ मे प्रचलित है ।जिसका नाम है " विश्वास का फल " बहुत समय पहले एक पुुुुुुजारी रहते थे। एक पुराने मंदिर मे पूजा अर्चना किया करते थे। उस मंंदिर मे भगवान गणेेेश, भगवान भोलेनाथ और माता गिरजा के अलावा राम लक्ष्मण जानकी और राधे श्याम जी की मूर्तिया थी। सबको श्रृंगार करना, भजन ,भोजन और महा प्रसाद ,पूजा अर्चना प्रातः पूजा, अपरान्ह पूजा , संंध्या पूजा सारी सेवाएं पुुुुुुजारी स्वयं किया करते थे। सभी भगवान से उनको इतना लगाव था कि यदि एक दिन थोड़ा विलम्ब हो जाता । तो उनका दिल तडपनेे लगता । उस मंदिर मे सामान्य रूप सेे आम आदमी सेे लेकर श्ररीमंन्त तक के लिए एक ही नियम था। सब लोग सामान्य रूप से वहां पूजा अर्चना दर्शन किया करते थेे। सब कुुछ विधिवत चल रहा था । कुछ दिन बाद पुुुुुुजारी को बीस दिन के लिए कही अति आवश्यक कार्य के लिए जाना पड़ गया। भगवान लोगों को किसके भरोसेे छोड़ जाय। इस बात को लेकर पुजारी बहुुुत परेशान थे । उन्होनेे अपने सगेे सम्बंधि सबसे कहा पर भगवान के देेेखरेख की जिम्मेदारी किसी ने भी नहीं ली। पुजारी ने अपने एक पड़ोसी किसान से अपनी ब्यथा सुनाई किसान नेे नैतिकता के नाते बीस दिन के लिए मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी लेे ली अब पुजारी किसान को मंदिर की देख भाल का जिम्मा देेेेकर अपने गन्तव्य को चले गयेे । अब मंदिर की सारी जिम्मेदारी किसान की थी। उसने सुुुबह जल्दी उठ कर सभी मूर्तियो को बढिया से साफ सफाई, श्रृृंगार करके,धुप दीप नैैैैैवेध सभी भगवान लोगों को अर्पित किया । अब भोग चढाने की बारी आई किसान ने अपने मन पसंद का भोग तैयार करवाया था। उस ने बडे प्रेम से सभी भगवान को भोग अर्पित किया । एक घंंटा बीत गये दो घंटा बीत गये पुरा दिन बीत गया शाम ने दस्तक देना शुरू कर दिया । पर भोग वस्तु वैसेे की वैसे ही पडी है । किसान हैरान परेशान कहाँ क्या कमी रह गई । भगवान ने भोग ग्रहण क्यो नहीं किया। दो दिन बीत गये भगवान ने भोग ग्रहण नही किया। तीसरे दिन किसान भी जीद पर आ गया उसने सभी भगवान से कह दिया "आप लोग भोग ग्रहण नही करोगे, तो मै भी भूखा प्यासा ही रहूूंगा । पुरा दिन पुरी रात बीत गये पर किसान और उदास हो गया । चौथे दिन उसने परिजनो से पुुुनः भोग़ तैयार करने को कहा और विधवत भोग अर्पित किया। उस दिन भी शाम होने को आई। फिर भी कोई कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया। भूख प्यास सेे किसान की हालत भी खराब होती चली जा रही थी उसके आंंखो के आगे अंधेरा छाने लगा। सामने भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति भी धुुुुधली दिखाई देने लगी थी। वह आशा भरी दृष्टि से कभी भगवान श्री कृष्ण के चेहरे को देखता तो कभी भोग की थाली की तरफ देेेेखता ।दोनों अपनी अपनी जिद पर अडेे रहे। देखते देखते चौथे दिन की रात भी बितने को आई। किसान को लगा कि अब उसका शरीर जबान देेेेने वाला है। वह एक टक भगवान श्री कृष्ण के चेहरे की तरफ घूरता रहा मानो मन ही मन कह रहा हो "कन्हैया अब उपर ही मुुुुुुुलाकात होगी। " अचानक उसकी दृष्टि भगवान श्री कृष्ण के चेहरेे से हट कर भोग की थाली के उपर पडी देेेेखा, तो भोग गायब था। उसने दूसरे मूर्तियो की तरफ देखा वहां भी भोग की थाली खाली थी। खुशी के उमंग से किसान का दिल भर आया। उसके नैत्रो से खुुुुशी के आंसूू बहने लगे। वह भगवान के चरणों मे नत मस्तक हो गया। उधर पुजारी भी परेशान भगवान को छोड़ कर तो गये थे। लेकिन उनका दिल और दिमाग मंदिर मेे ही था । किसी तरह अपना काम जल्दी से जल्दी निपटा कर वे मंंदिर लौट आना चाहते थे। ऐसा करते करते बीस दिन बीत गये ।पुुुुुुजारी को रास्ते मे एक शरारत सूझी , उन्होने सोचा क्यो न हम आज के दिन छुप कर देखे? किसान ने किस तरह बीस दिन भगवान की देख भाल किया। वहां पहुंच कर पुजारी छुुुपकर किसान के देख भाल के तौर तरीके कि जांच करने लगे सब कुछ तो ठीक था । पर जब किसान सभी भगवान के सामने भोग की थाली रखने लगा तो वो दृृश्य देख कर पुजारी को पसीने आ गये। शरीर स्तब्ध सा हो गया । आंंखे सजल होने लगी। वे मन ही मन सोचने लगे विश्वास से बढकर दुुुुुुनिया मे कुछ भी नही है ।यह सब किसान के विश्वास का ही फल है । जिसतरह सुगन्ध फुल के अन्दर होकर भी दिखाई न ही देती ।पर महसूस की जा सकती है। उसी तरह विश्वास के अन्दर भगवान का वास है, जो हमे दिखाई नही देता , केवल महसूूस किया जा सकता है। दोस्तों यह धार्मिक कहानी आपको कैसी लगी दो शब्द कमेंट् बॉक्स मे जरूर लिखे धन्यवाद। लेखक भरत गोस्वामी
Very good
ReplyDeleteकहानी बहुत अच्छी लगी
Àti sundar
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