KALIYUG KA ANAT कलियुग का अन्त


कर्म प्रधान विश्व करि राखा  ।  जो  जस करहि  सो तस फल चाखा ।।  गोस्वामी  तुलसी दास  जी द्वारा लिखित  यह पत्तियाँ  आज साकार हो  रही  हैं  ।अपनी  मेहनत और  लगन से  मनुष्य   आज क्या कुछ नहीं कर पा रहा है। चाँद तारे के सैर  से  लेकर ग्रहो पर आना जाना तक  सम्भव कर डाला  है। भक्ति के प्रति लोगों का झुुुुकाव और अपार श्रदधा इस बात संंकेत हैं  कि सतयुुग काआगमन  नजदिक आ रहा है ।   इसी के संदर्भ  मे जुडी यह  धार्मिक  कहानी आप
के समक्ष प्रस्तुत  कर रहे है  ।                                   यह कहानी  उस समय की है जब भगवान  श्री कृष्ण एक समय सोच रहे है कि पृथ्वी पर गये बहुुत दिन  गुजर गये  है  चलो एक बार  पृथ्वी  का  नया  दौर  कैैैैसा चल रहा है,  देख कर आते है  । यह सोच कर उन्होने एक सधारण मनुष्य  का रुप बनाया और पृृृथ्वी भ्रमण  के लिए  निकल पडे  । यहां बहुुत दिन तक मानव लीला करने के  बाद दुबारा पृथ्वी पर  आगमन  के कारण   पुरानी  समृतियां  उनके  मानस पटल पर तेजी से घूम रही है  । बाल्य काल से  लेकर  कि  सोरा अवस्था तक उन्होने जो  जो लिलायें  की थी। वो सारे दृश्य  एक एक करके भगवान श्री कृष्ण  के आँखो  केे  सामने  घूमते चले जा रहे  है  ।गोपियो का वह  निश्क्षल  प्रेम वो भुला नहीं पाये है ।                                                   मधुुवन  की  प्यारी  प्यारी गलियांं , कही आम के पेड पर कुहकती कोयल, तो कही फूलो के  झुरमुुुठो के बीच  नाचते  मोर , नयी दुलहन की  तरह सजी   संवरी धरती , कल कल का कौरव करता जमुना  का वह  अविरल बहता  निर्मल जल ,   झुुरमुठो केे ओट  लेकर नेत्रो  से अमृृृत पान करती गोपिकाये ,   उनका रूठना मनाना उनके  हृदय   स्पर्शी प्रेम की वह आनंद मय अनुभूति जो भगवान श्री कृष्ण के  दिलोदिमाग मे ऐसी छायी हुई है जैसे  यह  कल की  बात हो  । गोपिकाओ का आपस मे मिलन और एक दूसरे  से यह कह कर  संंतोष कर लेना कि कृृृष्ण  तो केवल मेरे है , बाकी तो सब प्यार  का दिखावा करती है  ।                                                                 मधुुवन का एक एक पल भगवान श्रीकृष्ण के यादो के  पटल पर   अनायास ही  घुुमते चले जा रहे हैं । वेसुध सेे भगवान श्री  कृष्ण पृथ्वी की ओर बढ़ चले आ रहेे   है ।यादो के घेरो ने उनको अपने  आगोश  मे ले लिया है  । बंंशी  की धुन सुन कर मनुष्य,  पशु पंछी भी  भगवान श्री कृष्ण के  आस पास इकठ्ठा  हो जाते थे।  कही पर राधा  रानी  अपने  सहलियो  के साथ  भगवान श्री कृष्ण के इस आत्मीय प्रेम  की चर्चा  करती नजर आ रही है   तो कहिं पर उधव जी  प्रेम  की परिभाषा  समझाते  नजर आ रहे है  । उनका कहना है कि  " है   प्रेम जगत  ही  सार और कुछ सार नही  ।                                                                             भगवान  श्री कृष्ण के कदम   एक   जगह     आकर रुक जाते   है ।   उनका ध्यान भंग होते ही उनके कानों  यह आवाज  आती है।   "    आप उधर मत जाइए  उधर घना   जंंगलहै ।  "    एक किशोर बालक   बोला  ।      किशोर बालक से मिल कर भगवान श्री कृष्ण  बहुत  खुश होते है। और उससे पुछते है ," बेटा आप कहां रहते है।" तो किसोर बालक जबाब देता है  ।      "हम पास मे ही एक गांव  मे रहते है ,लेकिन आप यहां के नही लगते है। आप की भेषभुषा कहती है कि आप कही अन्यत्र के रहिवाशी है  । बात बात मे भगवान श्री कृष्ण  उस किशोर  बालक से पुछते हैं  कि  आप क्या करते हो । तो किशोर बालक ने कहा कि मै गायो का चरवाहा हूं ।  थोडा ही दूरी पर मै और मेरे दोस्त  गाय चराने का काम करते है  । ऐसे ही चलते चलते भगवान श्री कृष्ण और वह किशोर बालक  एक पेड की छाँव  मे जाकर बैठ जाते है। वहां भी  बात का सिलसिला जारी रहता है । भगवान श्री कृष्ण  पुछते है  ।इस कार्य  से आप लोगों  को उबन नही होती ।" तो किसोर  बालक ने कहा  कि    हमारे कार्य  से श्रेष्ठ  कोई कार्य  नही है  ।"   इससे गो माता कि सेवा भी होती हैं  और हमारा  भरण पोषण भी होता  हैं  । तब भगवान ने कहा आप लोग तो बहुत धार्मिक  प्रवृति के लगते है आप लोग  तो भगवान को मानते होगे । हम तो भगवान को नहीं  मानते हैं  भगवान कोई नही है  यह सब बेकार की बात है भगवान होता तो कभी न कभी हमे दिखाई देता पर भगवान तो हमे दिखाई नही देता  ।" तब किसोर  बालक बोला आप ने कभी फुल देखा है आप फुल को देख सकते है  उसके खुशबु को नही देख सकते है। आप मिरची  को देख  सकते है उसका तीखा पन नही दिखाई देता  आप आम को देख सकते है उसका मीठापन दिखाई नही दे सकता उसको केवल महसूस किया जा सकता है  ठीक उसी तरह भगवान दिखाई नही   देते उन्हे केवल महसूस किया जा सकता है"  । " ठीक है  आप कहते हो तो  मै मान लेता हूँ  पर वास्तव मे भगवान है  कहां  ? " तब किशोर  बालक बोला "यदि आप मुझे  एक पहर का समय देते है तो मै भगवान कहां हैं   आप को बता सकता हूँ  । "ठीक है  मैने  एक पहर का समय दिया  ।"  एक पहर के बाद किशोर बालक   बोला  " पाताल और आकाश मे तो नही है। यदि आप मुझे  कुछ समय और दे तो मै कुछ बता सकता हूँ  । " "ठीक है  कुछ समय और दिया "   कुछ समय बाद वह किशोर बालक बोला  "भगवान इस समय पृथ्वी पर ही  है। और पांच कदम के आस पास ही है  ।पांच कदम के आस पास तो केवल हम दोनों  ही है  । या तो आप भगवान हो  सकते है  या हम भगवान हो  सकते हैं  ।हम तो भगवान हैं  नही इसलिए आप ही भगवान हो  । "   भगवान श्री कृष्ण  को आश्चर्य का ठिकाना ना रहा , अनायास ही उनके मुखार  बिन्द से निकल पडा   "अब कलियुग  का अन्त नजदीक आ रहा है। "                               दोस्तों यह कहानी  कैसी लगी  दो शब्द  कमेन्ट  बॉक्स  मे जरूर  लिखे  । धन्यवाद  लेखक- भरत गोस्वामी 

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