MATSYA AVATAR मत्स्य अवतार


भगवान श्री हरि विष्णु के अनेक अवतार हुए उनमे मत्स्य अवतार का महात्म्य  बहुत ही शुभ कारी है। ऋषी, मुनि, साधु ,सन्त ,गौ, ब्रह्मण ,पशु ,पंछी ,नर ,नारी सभी के रक्षा के लिए  भगवान श्री हरि विष्णु  ने  कोई भी रूप धारण करने मे कभी भी संकोच नही किया है। मत्स्य अवतार की  परम शुभ कारणी कथा का वर्णन हमने  इस कथा प्रसंग मे किया है  ।             
                    पुरातन काल मेे ब्रह्मा  जी ने एक दिन शुुुभ  संध्या के  समय जन कल्याण के लिए  वेदो की रचना की  ।जिन वेदो का अनुसरण  करके ऋषी, मुनि अपना जीवन  सुगम , सुन्दर और शान्तिमय ढंग  सेे बितातेे थे ।और अपनेे आहार व्यवहार से जन  मानस को  प्रभावित करते थे। जिससे जन मानस का  जीवन भी सुन्दर और सुगम रूप से व्यतित  होता था।  ऋषी, मुनियो  द्वारा प्रबचन प्रसार से जन मानस को   जीवन जी नेे की  कला मे   वृधि  होती  थी।  आपसी सहयोग और प्रेम  की वृधि  होती  थी।                                     एक दिन महादुष्ट राक्षस हयग्रीव  को वेेेदो की सुचना मिली और उसने वेदो को चुरा लिया ।   ऋषी, मुनि  बहुत दुखी  हो गये उन्होने मिल कर जगत की  रक्षा  करने वाले  भगवान श्री हरि विष्णु  से   वेदो  की  रक्षा के लिए  गुहार लगाई।  समय बीतता गया।                                                                             एक दिन सत्यव्रत नाम के राजा स्नान के बाद आचमन कर रहे थे। उसी वक्त   एक छोटी सी मछली उनके अंजली मे आई और परम पुण्य ,श्रधालू  राजा सत्यव्रत  से अपनी  रक्षा  की गुहार करने  लगी । प्रेम और श्रधा से ओत प्रोत  राजा सत्यव्रत     उस छोटी सी मछली के  आग्रह को न टाल सके । और उन्होने      अपने कमंंडल के जल मेे शरण  दे दी ।अगले दिन ही उस मछली का आकार  इतना बड़ा  हो गया कि राजा को उस  मछली को एक बड़े  घडे मे रखना  पड़ा  ।  अगलेे दिन पुनः उस मछली का आकार इतना बड़ा  हो गया की राजा सत्यव्रत को  उस मछली को सरोवर मेे रखवाना पड़ा  ।                                               कुछ दिन   बाद  उस मछली का आकार इतना बड़ा हो गया की राजा  सत्यव्रत को   मछली को समुुन्द्र मे छोडने  की   मजबूरी हो गयी।  तब अचानक  उनके  मन मे एक बात घर कर  ग्ई की आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। उन्होनेे अपने   आत्मज्ञान के योग से इस समस्या  का हल निकाला  तो पता चला  कि ये तो जगत के पालन हार  भगवान श्री हरि  विष्णु  है।  तब राजा सत्यव्रत ने कहा " दुनिया को शरण देनेेवाले भक्तवत्सल श्री हरि विष्णु  आप को इस   रूप  मे क्यो अवतार  लेेेना पड़ा ।  "                            तब भक्तवत्सल भगवान श्री हरि विष्णु  ने कहा "वत्स आज के सातवे  दिन महा प्रलय आने वाला है।  पुरी पृथ्वी जलमग्न हो जाये गी  ।तब मेरे द्वारा  भेजी हुई एक बिशाल नाव तुम्हारे पास  आयेगी ।    तुम सप्तऋषी और कुछ बीज   के साथ  उस नाव मे सवार हो जाना  ।जब तक उस महाप्रलय का प्रभाव रहेगा वह नाव ही तुम्हारी  रक्षा करेगी   महाप्रलय के कुप्रभाव से यदि नाव डगमगाने लगे तो  मै मत्स्य  के रुप मे तुम्हारे  आस  पास  ही रहूंगा  ।तुम नाव को वासुकि  नाग से मेरे सींग मे बांध  देना।  ऐसा कह कर भगवान श्री हरि विष्णु  वहां से अंतर्ध्यान    हो गये  ।       सात दिन  बाद  वही हुआ जो भगवान श्री हरि विष्णु ने  कहा था।  उस महाप्रलय मे भगवान  ने परम धर्म का अवलम्बन  करने वाले राजा सत्यव्रत और सप्त ऋषियो  की रक्षा की।   और  ऱाक्षस हयग्रीव को मार कर उससे वेदो को छीन कर ब्रहमा  जी को सौप दिया।                                दोस्तों  यह कहानी आपको कैसी लगी दो शब्द कमेंट बांक्स   मे जरूर लिखे  ।  लेखक- भरत गोस्वामी              

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