DHRUV -TARA ध्रुव-तारा
हमारे इस संसार मे भक्त तो बहुत हुए पर भक्त प्रह्लाद और भक्त ध्रुव का नाम सभी भक्तो मे बहुत ही आदर से लिया जाता है ।जिन्होंने भक्ति की सारी हदे पार करके भक्ति की दुनिया मे अपना विशेष स्थान बनाया हैं । हम भक्त ध्रुव के जीवन से जुड़ी कुछ विशेष बाते कहानी के रूप मे प्रस्तुत कर रहे हैं । मनु और शतरूपा के पुत्र राजा उतानपाद की दो पत्नियां थी। एक रानी सुनिति तो दूसरी का नाम सुरुचि था। छोटी रानी सुरुचि बहुत सुन्दर पर स्वभाव की बहुत कुुुुटिल ,कपटी,ईष्यालु , और मधुर भाषी थी। मन ही मन वह बडी रानी सुनिति सेे बहुत ही ईष्याभाव रखती थी । सुन्दरता के साथ साथ वह किसी को अपने ओर आकृष्ट करने की कला मे माहिर थी। दोनों रानियों को एक एक पुुुुत्र थेे ।जो करीब करीब एक ही उम्र के थे । बडी रानी के पुत्र का नाम ध्रुुव और छोटी रानी के पुत्र का नाम उत्तम था। एक दिन उत्तम अपने पिता राजा उतानपाद के गोद मेे खेल रहा था । तब तक बालक ध्रुव भी वहां पहुंच गये और उत्तम को अपने पिता के गोद मे खेलता देख उन्हें पिता की गोद मेे बैैठने की इच्छा प्रबल हुई । और उन्होंने पिता की गोद की तरफ जाने का प्रयास किया , परन्तुु छोटी रानी की कर्कशा आवाज ने उस बालक को बुरी तरह से डरा दिया । छोटी रानी सुरुचि ने कहा " गोद मे बैठना ही था, तो थोडा सी तकदीर लेकर पैैैैदा होना था । जाओ पुत्र उत्तम ही केवल गोद मे बैठने का अधिकारी हैं । " बालक ध्रुु़व को बहुत बुरा लगा । वे रोने लगे उनका रूदन सुन कर उनकी मां बडी रानी सुनीति वहां पहुुंच गयी और बालक ध्रुव को गोद मे उठा लिया । रानी सुुुुनीति बहुुुत ही धार्मिक प्रवृति की महिला थी। वेे भगवान श्ररी हरि की भक्त थी । उन्होंंने बालक ध्रुव को हर तरह से समझाने की कोशिश की । पर उनके अन्दर अनादर की वह ज्वाला धधक रही थी। जो कम होने का नाम नही लेे रही थी। तब रानी सुुुुनीति ने कहा " पुत्र हमारे लिए कोई बुरा सोचता हैै तब भी उसके लिए बुरा सोचना गल्त हैंं । आप परम पिता भगवान श्री हरि पर भरोसा रखो । वे भला बुरा सब कुछ देखते है। " और उसके अनुसार सबको फल देेेेते हैं। मां की बात बालक ध्रुुव के समझ मे आ गयी और बाल बुदधि रखते हुए भी वेे भगवान श्री हरि के भक्त बन गये। उन्होने उस छोटी सी अवस्था मे वन के लिए प्रस्थान कर दिया। उन्होंने मन ही मन यह निश्चित कर लिया कि मै दुुुनिया की सबसे बडी गोद हासिल करूंगा । उन्होंने कुुछ दिन फलाहार और कुुछ दिन नीराहार और अन्त मे कुछ दिन वायुहार करके इतनी घोर तपस्या की, की पुरा ब्रहमांड हिलने लगा। देवतागण घबराने लगे ।और सब देवता मील कर भगवान श्री हरि विष्णु के यहां पहुंच कर अपने कल्याण की गुहार करने लगे। काफी अनुनय विनय बाद भगवान श्री हरि ने उन्हेें निश्चित रहनेे का अश्ववासन दिया। भगवान श्री हरि विष्णु गरूड पर सवार होकर बालक ध्रुव के समीप गये।एक अबोध बालक को एक पैर पर खड़ा होकर इतनी कठिन तपस्या करते देख उन्हें बडा आश्चर्य हुआ। भगवान श्री हरि विष्णु के समीप आते ही बालक ध्रुव को किसी के समीप आने का अहसास हुआ। और उन्होने अपने नेत्र खोल दिया। सामने जगत पिता श्री हरि विष्णु को देख कर बालक ध्रुव बेसुदध होकर श्री हरि विष्णु के रूप लावण्य को निहारते रह गये । मां ने भगवान के रूप का जैसा वर्णन किया था उससे कही और सुन्दर भगवान श्री हरि विष्णु के कमल के समान नेत्र, श्याम मेघ के समान उनकी सुन्दर काया, काले काले सुन्दर सुन्दर घुंघराले बाल, मन्द मन्द मुस्कराते हुए सैकड़ों सूर्य को लज्जित करने वाला उनका सुन्दर मुखडा देखकर बालक ध्रुव अपना अनादर आदर सब कुछ भूल गये। थोडा देर बाद भगवान श्री हरि विष्णु ने खुद मौन तोड़े हुए कहा"बत्स इतनी कम उम्र मे इतनी कठिन तपस्या आप किस लालसा से कर रहे हो ,मै आपकी तपस्या से बहुत खुश हूं। आप मुझे अपनी जिज्ञासा बताइए मै उसे अवश्य पूरा करूंगा ।" तब बालक ध्रुव को महसूस हुआ कि मै किस इच्छा की पूर्ति के लिए यह तप कर रहा हूँ । और उन्होंने सारी आप बीती बताते हुए विनय पूर्वक कहा " प्रभु मुझे आपकी गोद चाहिए, मै आपके गोद मे बैठना चाहता हूं ताकि मेरे अनादर की अग्नि जो मेरे मानस पटल को जला रही है वह शान्त हो सके। मां ने कहा था कि उनसे उत्तम गोद संसार मे कोई हो ही नही सकती । " बालक ध्रुव के मधुर बचनो को सुनकर भगवान श्री हरि विष्णु के मुखार विन्द से अनायास ही निकल पडा " तथास्तु " भगवान श्री हरि विष्णु ने भक्त ध्रुव की इच्छा पूरी की और उन्हें छत्तीस हजार वर्ष निरविघन्न राज्य करते हुए पृथ्वी की रक्षा का भार संभालने का आशीर्वाद दिया इतना होने के बाद उन्होने तारा मंडल मे ध्रुव तारा के नाम पद देकर यह भी आशीर्वाद दिया की चन्द्रमा और आप के द्वारा ही तारा मंडल प्रकाशित होगा। सदियों बीत जायेगी युग आयेगे और जायेगे, पर आपकी गरिमा कभी धूमिल नही होगी। दोस्तों कहानी कैसी लगी दो शब्द कमेंट विकास मे जरूर लिखे धन्यवाद- लेखक भरत गोस्वामी
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