RUDRAKSHA KA MAHATVA रुद्राक्ष का महत्व A RELIGIOUS STORY
भगवान भोलेनाथ के जीवन से जुड़ी एक ऐसी कहानी जो पुराणों में बहुत चर्चित है । हम रूद्राक्ष और उसके महत्व के बारे में एक सुंदर कथा का वर्णन करने जा रहे हैं । मनुष्य हो या देवता सुख और दुख हर किसी के जीवन में आता जाता है । ऐसा नहीं है कि हम मनुष्य है तो तकलीफ और खुशी केवल हमारे लिए ही है । यह विधि का विधान है ।कि यह दोनों सबके जीवन में है । कभी कभी देवता भी इसके चुगंल में फस जाते हैं । राजा दक्ष की पुत्री माता गिरजा के साथ जब भगवान भोलेनाथ का विवाह हुआ तो कुछ दिन के बाद एक घटना घटी । राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया । कुछ मन मुटाव के कारण राजा दक्ष ने अपने जमाई भगवान भोलेनाथ को आमंत्रित नहीं किया । यह बात जब माता गिरजा को मालूम पड़ी तो उन्हें बड़ा कष्ट हुआ । पिता ही तो है वे यदि रूठे है तो उन्हें मना लेंगे ।यह सोच कर माता गिरजा ने भगवान भोलेनाथ से यज्ञ में चलने का अनुरोध किया पर भगवान भोलेनाथ ने जाने से इंकार कर दिया । तब माता गिरजा ने उनकी अवज्ञा करके अकेले ही यज्ञ स्थान पर पहुंच गई । वहां जाकर उन्होंने बहुत बड़ी भूल करदी । वहां किसी ने माता गिरजा का आदर सत्कार नहीं किया । तब रूष्ट हो कर माता गिरजा ने अपने आपको यज्ञ कुंड को सौंप दिया यह बात जब भगवान भोलेनाथ को मालूम पडी तो वे तुरंत वहां पहुंच कर सति माता गिरजा को गोद में उठा कर त्रिभुवन में भ्रमण करने लगे । जहां जहां भगवान भोलेनाथ के आंसू गिरे वहां-वहां रूद्राक्ष के पेड़ पौधे उग आते । प्राचीन काल में एक बहुत ही अय्यास और क्रुर राजा था उसे कोई संतान नहीं थी । संतान के चक्कर में वह नित्य प्रति एक विवाह करता ऐसा करते करते उसके पास अनेकों रानियां हो गई पर उसे संतान की प्राप्ति ना हों सकी । ज़िन्दगी से परेशान होकर वह भगवान भोलेनाथ की शरण में गया । कुछ दिनों के बाद उसे यह मालूम पडा कि बड़ी रानी को बच्चा होने वाला है । राजा बहुत खुश हुआ । उसकी अन्य रानियां बड़ी रानी से द्वेष करती थी ।इस लिए बड़ी रानी को किसी ने बिष दे दिया ।समय से जानकारी हो जाने के कारण मां और बच्चे दोनों की जान बच गई । समय पर जब रानी को पुत्र पैदा हूंआ तो वह बहुत कमजोर था हमेशा रोते रहता था उसको इस तरह रोता देख रानी भी रोने लगती । दोनों इतना रूदन करते की उनके रूदन से परेशान हो कर एक दिन राजा ने सैनिकों को आदेश दिया कि मां और बेटे दोनों को घने जंगल में छोड़ आओ । सैनिकों ने राजा की आज्ञा का पालन किया और मां बेटे दोनों को जंगल में छोड़ दिया ।उस दिन मां बेटे घने जंगल में रात विताई । दुसरे दिन दुसरे देश का राजकुमार शिकार के लिए अपने साथियों के साथ उधर से गुजर रहा था ।जब उसने एक स्त्री का रुदन सुना तो वह रानी के समीप जाकर रूदन का कारण पूछा तब रानी ने उसे अपना सारा वृत्तांत वतलाया। तो राजकुमार उनकी बेदना सुन कर बहुत द्रवित हो गया और रानी को अपने साथ लेकर अपने देश को चला गया । वहां पहुंच कर राजकुमार ने बच्चे को कई बैदय से दिखलाया पर कोई फर्क नजर नहीं आया । अन्त में एक दिन बच्चे ने इस दुनिया से बीदा ले लिया । अब रानी ना घर की रही ना घाट की ।वह सोची ।कि मेरा जब कोई है ही नहीं तो मैं रह कर क्या करूंगी ।इस लिए रानी मंदिर में जाकर सिढियो पर अपना माथा फोड़ ने लगी ।उसका सिर लहुलुहान हो गया । तब मंदिर के पुजारी ने अति दिन भाव से भगवान भोलेनाथ के लिंग को देखा और रानी के समीप जाकर बोला "बहन इतना अधीर मत होइए ये आपकी परिक्षा की घड़ी है । भगवान भोलेनाथ आपके साथ अन्याय नहीं होने देंगे । इतना कहकर पुजारी ने रूद्राक्ष की माला लेकर महा मृतजय का जाप करने लगा ।जाप करने के बाद उसनेे भगवान भोलेनाथ की लिंग पर घीसी हुई भष्म लेकर थोड़ी सी भष्म बच्चे के मुंह में डाल दी बच्चा हंसता हुआ उठ बैठा । और सबको आश्चर्यचकित हो कर देखने लगा ।तब भगवान भोलेनाथ स्वयं प्रगट हुए और उन्होंने बच्चे को दिर्घायु होने का आशीर्वाद दिया । और कहा कि अनेकों अनेक सुख भोग कर अन्त में मेरे शिवलोक में स्थान पावोगे । दोस्तों कहानी कैसी लगी दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें । धन्यवाद लेखक भरत गोस्वामी
बहुत-बहुत सुन्दर कहानी लगी ।
ReplyDeleteआध्यात्मिक और सास्कृतिक ब्यवस्था के अनुरूप मार्ग दर्शन है।पिता के घर भी बिना बुलाने के या किसी के घर किसी को बिना बुलाये नही जाना चाहिए ।अतिथि रूप में अपने नजदीकी के यहाँ भी नहीं जाना चाहिए ।यदि आपत्ति काल हो तो बात अलग है ।
बहुत-बहुत सुन्दर कहानी लगी ।
ReplyDeleteआध्यात्मिक और सास्कृतिक ब्यवस्था के अनुरूप मार्ग दर्शन है।पिता के घर भी बिना बुलाने के या किसी के घर किसी को बिना बुलाये नही जाना चाहिए ।अतिथि रूप में अपने नजदीकी के यहाँ भी नहीं जाना चाहिए ।यदि आपत्ति काल हो तो बात अलग है ।
बहुत ही सुंदर वर्णन किया है रूद्राक्ष का।
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