KAMDEV MAN MARDANAM कामदेव मान मर्दनम् A RELIGIOUS STORY

कृपा के सागर भगवान शिव  ने क्रोध  के वशीभूत होकर संसार की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया था । जब उनका क्रोध शांत हुआ  तो उन्हें बड़ा दुख हुआ । कारण  कामदेव को दुसरे के उपकार के लिए ऐसा करने को विवश किया गया था । इस  प्रसंग में आगे क्या हुआ उसी का वर्णन हम करने जा रहे हैं ।
                      तारकासुर से दुखी हो कर देवता जब ब्रह्मा जी के पास पहुंचे  , तो उन्होंने  कामदेव से मदद मांगने की सलाह दी ।तब देवता मदद मांगनेे के लिए कामदेव के पास पहुंचे ।     देेेेर तक अनुुुनय-विनय करने के बाद  कामदेेव   देवता गण की मदद करने के लिए  राजी हो गए ।                                                    कामदेव को अपने आप पर बहुत धमंड हो गया था ,  कि संसार मेें कोई  भी व्यक्ति, जीव-जंतु ,देव ,दानव, चर, चराचर , ऋषि मुनि,  योगी संन्यासी  मैं किसी को भी वश में कर सकता हूं । मन में उन्माद लेकर वह हिमाचल पर्वत पर योग साधना मेें लिप्त भगवान शिव के मन‌ में   विवाह के प्रति   जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से  हिमाचल पर्वत पर भगवान शिव के समीप पहुंच गये । उन्होंने  अपनी  सारी शक्तियां लगा दी ,  पर भगवान शिव को कोई असर नहीं हुआ । उसका सारा घमंड चूर चूर हो गया । फिर वह अपने लोक चले गये ।                                   कामदेव को अपने उद्देश्य  में सफल न होता देख देवताओं को बड़ा कष्ट हुआ ।   और वे लोग पुुन:  ब्रह्मा जी केेे यहां पहुंचे ,  तब ब्रह्मा जी कहा कि उचित समय का इंतजार करो ।  जब उचित समय आया तो कामदेव ने अपनी पत्नी रति और अपने सेनापति बसंत को साथ लेकर पुुुरी तैयारी से  भगवान शिव को अपने माया में फसा कर विवाह के लिए राजी करने के काम में जुट गये । उस वक्त माता पार्वती अपने सहेलियों के साथ भगवान शिव के दर्शन के लिए आई हुई थी ।                                                 भगवान शिव अपने स्वभाव के अनुसार अपने योग साधना में मस्त रहे ।  जब कामदेव की माया  परास्त हो गई तो उसने अपना प्रभावशाली  धनुष उठा कर  भगवान शिव के ह्रदय पटल पर छोड़ दिया ।                                                         तब भगवान शिव की योग साधना  टुटी ,तो उन्होंने देखा कि कितना मनोहर  वातावरण है ।चारो तरफ सुगंधित  पवन का प्रवाह है ।  पुरी श्रृष्टि एक मघुमय स्वरुप में परिवर्तित हो गई है ।   कहीं फुलों पर भंवरे मंडरा रहे हैं । तो कहीं तितलियां अटखेलियां कर रही है ।  एक परम सुंदरी बाला आंखें बंद कर हाथ जोडे पूजा मुद्रा में बैठी है । उनके रुप को देख कर भगवान शिव  उस बाला के प्रति अत्यंत आकर्षित हो गए  ।   अनायास ही उनके मुखारविंद  से निकल पड़ा  "कहो प्रिय    आप कौन हैं और  किस वस्तु के प्राप्ति हेतु  आप इस पूजा मुद्रा में मग्न है ।  आप निश्चित होकर अपना हेतु व्यक्त कर सकती है । मैं उसे अवश्य पुरा करूंगा ।      तब माता पार्वती ने कहा "मैं हिमाचल राज की पुत्री    पार्वती हूं । आपके दर्शन   की अभिलाषा मुझे यहां खींच लाई है ।    यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी एक इच्छा पुरी करें अपने दासी के रुप में मुझे स्वीकार किजीए   ।"    तब आनंदमय  मन से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने  कहा "  अवश्य मैं शीघ्र ही आपको वरण करूंगा ।"   तब माता पार्वती शरमा कर अपने सहेलियों के पास भाग गई  ।                   कुछ पल बाद जब  भगवान शिव की तन्द्रा   टुटी तो वे समझ गये कि मेरे साथ धोखा हुआ है ।  क्रोध में   उनकी आंखे लाल हो गई । उन्होंने इधर उधर देखा तो वृक्ष की आड़ में कामदेव दिखाई दिया  , तब भगवान शिव ने अपने त्रीनेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया ।                             कामदेव की पत्नी रति रोती बिलखती देवताओं को कोसने लगी जिनके कारण उसके पति की यह दशा हुई थी।   उसके रुदन से त्रीभुवन में हाहाकार मच गया । नदियां और समुद्र अपने  मर्यादित  स्थान को छोड़कर अनयत्र बहने लगे  ।                            तब सब देवता दुखी होकर भगवान श्री हरि विष्णु के पास पहुंचे ।  उन्होंने देवताओं को दुखी देख कर कहा ।"  देवताओं तुम लोग चिंता मत करो । रति को साथ लेकर आप लोग भगवान शिव के शरण में जाओ ।   भगवान शिव जितना उपर से कठोर है , उतना ही  अन्दर से कोमल और भोले है ।  वे कृपा निधान और दया के सागर है ।  वे रति के दुख को अवश्य  हर लेंगे ।  "                                            सभी देवताओं ने रति को साथ लेकर भगवान शिव के परम धाम कैलाश पहुंचे । वहां पहुंच कर रोती बिलखती रति भगवान शिव के चरणों पर गीर पड़ी  । देेवताओं  ने नाना प्रकार से भगवान शिव की आराधना की ।और सारा वृत्तांत सत्य सत्य कह सुनाया । जो अब तक घटित हुआ था ।  तब भगवान शिव ने रति को सांत्वना देते हुए कहा" रति आपके पति ने परोपकार की भावना से प्रेरित होकर यह कार्य किया है ।  इस लिए उन्हें अवश्य न्याय  मिलेगा ।द्ववापर  युग में   भगवान श्री हरि विष्णु भगवान श्री कृष्ण के रुप में अवतार लेंगे ।उस समय उनकी पत्नी लक्ष्मी भी रुक्मिणी के रुप में अवतार लेंगी ।    उन्हें एक दिव्य  पुत्र की प्राप्ति होगी । जलनवश इन्द्र  उस बालक को समुद्र में फेंक आयेगे । उस बालक को एक मछली निगल जायेगी । कुछ समय बाद एक केवट के द्वारा वह मछली उसके जाल में फस जायेगी ।   तब उस मछली को वह केवट एक शंभर नामक राछस को  भेंट स्वरुप दे देगा । जब उस मछली का पेट चीरा जायेगा तो उसमें से वही बालक जिवित निकलेगा ।  जिसका नाम प्रदुम्न    होगा  । कुछ दिन बाद    वह राक्षस   शंभर इंद्र से युद्ध करके  तुम्हें अपना दासी बनाने के लिए छीन ले जायेगा । वहां प्रदुम्न से तुम्हारी  मुलाकात होगी  और प्रदुम्न उस राक्षस को मारकर पुनः तुम्हारे साथ तुम्हारे लोक चला आयेगा ।                          दोस्तों यह कहानी कैसी लगी दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी             

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