GAUTAMI GANGA गौतमी गंगा A RELIGIOUS STORY

हमारे देश में ऐसी ऐसी घटनाएं घटित हुई है ,जिनको संधारण कहना   बिल्कुल सही नहीं होगा । असम्भव को सम्भव बनाती यह सुन्दर कथा  हमारे पुरातन कथाओं में से एक है । मां गंगा को भागीरथ के अलावा ऋषि गौतम ने भी दुसरी बार मां गंगा की उत्पत्ति की थी । जो गौतमी गंगा के नाम से प्रसिद्ध है । जो महाराष्ट्र के वन्य प्रदेश  में नासिक जिले मे  स्थित है ।
                            पुरातन काल से ही ऋषि मुनियों का निवास वन्य प्रदेशो में ही रहा है । एक समय बहुत बड़ा अकाल  पड़ा । कई  बरसों से पानी नहीं बरसा । मनुष्य जन पानी के बिना त्राहि त्राहि करने लगे ।  वन में रहने वाले सभी  जीव जंतु मनुष्य और ऋषि मुनि सब परेशान हो गए ।   वहीं पर गौतम ऋषि का आश्रम भी था । अत्यंत परेशान होने के बाद गौतम ऋषि ने वरूण देवता को प्रसन्न करने के लिए  यज्ञ का अनुष्ठान किया । तब वरूण देवता प्रसन्न हुए और उन्होंने गौतम ऋषि से यज्ञ करने का अभिप्राय क्या है , ऐसा पुछा । तब  गौतम ऋषि ने पानी की समस्या का निवारण करने की इच्छा जाहिर किया । उस वक्त वरूण देव ने कहा  मैं तो एक सेवक हूं जब तक   मालिक की इच्छा नहीं होगी तब तक मैं कुछ नहीं कर सकता  । पर मैं आप लोगों का आग्रह नहीं ठुकरा सकता ,और उन्होंने गोतम ऋषि को एक कमल पुष्प भेंट किया । और  कहा कि आप जितना बड़ा गड्ढा खोद सकते हो ,  उतना बड़ा गडढा खुदवा कर उसमें यह कमल पुष्प डाल देना ।  गौतम ऋषि ने जैसा वरूण देव ने कहा था वैसा ही किया ।  गड्ढे में कमल पुष्प डालते ही गड्ढा पानी से लबालब भर गया ।  गौतम ऋषि और उनके परिवार और शिष्य गण सभी खुशी से झूम उठे । यह बात पुरे वन्य प्रदेश में फैल गई और सब वहां आकर पानी पी पी कर अपने को धन्य समझने लगे । पानी की वजह से सब ऋषि मुनि अपने परिवार और शिष्यों के साथ आकर वहीं आस पास बसने लगे  ।आबादी बढ़ जाने के कारण गडढे पर ज्यादा भीड़ होने लगी । आये दिन पानी को लेकर  रोज एक नया झगड़ा खडा होने लगा ।               एक दिन अन्य ऋषि  पत्नियां पानी भर ही रही थी कि गौतम ऋषि के कुछ शिष्य पानी लेने वहां पहुंच गये  ।पहले से पानी भरती हुई ऋषि पत्नियों ने उनसे थोड़ा देर रूकने का आग्रह किया । पर वे बिना पानी लिए ही घर वापस चलें गये । और वहां जाकर ऋषि पत्नी अहिल्या से बोले कि कुछ  स्त्रियोंं ने हमको पानी नहीं भरने दिया । तब ऋषि पत्नी  अहिल्या  ने आवेश में आकर उन ऋषियों की  पत्नियों का अपमान कर दिया । कुछ ऋषि पत्नियां बिना पानी लिए घर वापस लौट गई । घर जाकर उन्होंने अपने पतियोंं से अपनेअपने अपमान की बात कही । तब सब ऋषियों ने मीलकर गौतम ऋषि से बदला लेने का बिचार करने लगे  ।  कोई बात बनते न देख कर उन्होंने भगवान गणेश की पूजा अर्चना की तब भगवान गणेश प्रगट हो कर  उनका मनोरथ पुछा  । तब ऋषियों ने अपने दिल की बात भगवान गणेश को बताया । भगवान गणेश जब उनके मनोदशा को जान गये तो उन्होंने ऋषियों को बहुत धिक्कारा   और कहने लगे " आप लोगों को तो बहुत बड़ा दिल रखना चाहिए   थोड़ी छोटी मोटी भूल तो इंसान से होती रहती है  । यह जानते हुए भी कि गौतम ऋषि कोई साधारण ऋषि नहीं है । वे भगवान भोलेनाथ के परम शिष्य हैं ।मैं क्या कोई भी उनका अहित नहीं कर सकता है ।आप लोगों की भलाई इसी में हैै किआप सब लोग अपने दिल से उनके प्रति बैर भाव निकाल दिजीए  इतना कहकर भगवान गणेश अन्तर्ध्यान हो गये ।                       अब ऋषियों का ईष्र्या भाव और बढ़ गया और वे कुछ और उपक्रम सोचने लगे । एक दिन गौतम ऋषि अपने खेत में कुछ काम करवाने गये हुए थे तो ऋषियों ने माया की गाय बना कर उनका खेत चरवाने लगे  । जब गौतम ऋषि ने गायों को खेत चरते देखा तो  एक मिट्टी का टुकड़ा उठा कर गायों की तरफ फेेंका ।उस छोटे से टुकड़े के प्रहार से एक गाय गीर कर मर गई । वहीं छिपे दुष्ट ऋषियों ने आकर गौतम ऋषि को बुरा भला कहने लगें । और अन्य ऋषियों को जमा करके गौतम ऋषि को गौ हत्यारा  करार देकर  बस्ती से निष्कासित  करने का  फैसला किया । पंच परमेश्वर का रूप होता है ।यह सोच कर गौतम ऋषि ने सपरिवार बस्ती का त्याग कर दिया । और वहां से थोड़ी दूरी पर   अपना आश्रम  बना कर रहने लगे । पछतावे कि आग उनके मन में जलती रहती थी ।          कुछ दिन बीतने के बाद फिर वही दुष्ट ऋषि वहां भी पहुंच गये और व्यंगात्मक भाषा का प्रयोग करने लगे । तब  गौतम ऋषि ने हाथ जोड़कर कहा "आप लोग श्रेष्ठ  ऋषिवर है  यदि मेरे दण्ड में कोई कमी रह गयी होतो आप लोग नि:संकोच कह सकते हैं  । तब उन ऋषियों ने कहा " आप अपने  कर्मों का फल भोग रहे हो हम लोग यदि चाहें तो इसका मुक्ती मार्ग बता सकते हैं ।  तब गौतम ऋषि ने आग्रह पूर्वक पुछा " आप लोगों की बड़ी कृपा होगी आप लोग जो भी आदेश देंगे उसे मैं हर हाल में पूरा करने की कोशिश करूंगा । तब उन ऋषियों ने कहा " पहली बात आप हमारी सौ बार परिक्रमा करेगे  और दुसरी बात आप भगवान भोलेनाथ को खुश करके मां गंगा को इस वन्य प्रदेश में ले आयेगे  । और उसमे सपरिवार स्नान करके हर पाप से मुक्त हो जायेंगे ।  ऐसा कह कर ऋषि वहां से चले गये । तब गौतम ऋषि ने भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए घोर तपस्या किया । तपस्या के फलस्वरूप  भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो गए । और प्रसन्न होकर गौतम ऋषि से वरदान मांगने को कहा ।तब गौतम ऋषि ने हाथ जोड़कर कहा भगवन आप तो अंतर्यामी है ।आप से कुछ भी छिपा नहीं है मैं अपने पाप भार से मुक्त होने के लिए आपसे मां गंगा को प्रगट करने के लिए आग्रह करता हूं ।    भगवान भोलेनाथ ने कहा " मैं तो भक्तों के आधीन हुं मैं आपके कल्याण के लिए गंगा को अवश्य प्रगट करूंगा । उन्होंने अपनी जटा से मां  गंगा को प्रकट कर दिया । वहीं मां गंगा आगे चल कर  गौतमी गंगा के नाम से  प्रसिद्ध हुई । जब गंगा मां प्रगट  हुई तो उन्होंने भगवान भोलेनाथ से कहा  " भगवन मैं आपसे दूर नहीं रह सकती इस लिए मैं आपसे आग्रह करती हूं । आप पार्वती के साथ मेरे तट पर निवास करें   । भगवान  भोलेनाथ उनके आग्रह को  अस्वीकार न कर सके और त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए । गौतम ऋषि ने सभी परिवार के साथ मां गंगा में स्नान किया और उस पाप से मुक्त हो गये जो पाप वे किये  ही नहीं थे  ।                                                                    दोस्तों कहानी कैसी लगी  दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी

Comments

  1. बहुत ही सुंदर कथा है।

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  2. बहोत सुंदर लगी कहानी

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