BHGWAN NANDIKESWAR भगवान नन्दिकेश्वर RILIGIOUS STORY

भगवान शिव  दुनिया के परम पिता है । पर आदि काल में एक समय ऐसा आया कि परम पिता परमात्मा भगवान शिव को भी एक समय किसी का  पुत्र बनना पड़ा । हां , चंद्र मौली  भगवान चन्द्रशेखर, देवाधिदेव महादेव, सैकड़ों नामों से जाने जाने वाले  भगवान शिव  भी एक बार  पुत्र के रूप में अवतार लिए थे । आज हम  शिव पुराण में वर्णित  एक कहानी का  वर्णन करने जा रहे हैं ।
                            बहुत समय पहलेे  शिलाद नाम केे एक ऋषि हुए थे । वे भगवान शिव के परम भक्त थे । भगवान शिव ने उन्हें धन्य ,धान्य वैभव और ऐश्वर्य सब कुछ दिया था पर उनको पुत्र नहीं था । उनके  जीवन काल मेें एक अद्भुत घटना घटी । एक दिन वे नदी मेें स्नान करने  गए हुए थे  ।  उन्होंने नदी के घाट पर  एक स्त्री को  अपने एक  साल के बच्चे के साथ प्यार और दुलार करते देखा ।  उस स्त्री  को अपने बच्चे से  प्यार करते देेख कर  ऋषि शिलाद के अन्दर भी ममत्व की ऐसी करूणा  जागी कि उनके जीवन काल में आंधी सी आ गई ।                                                            सोते, जागते, पूजा करते हर समय उनके मस्तिष्क में वही स्त्री वाला दृश्य घूमते रहता  था । उनके मन मे ममता का  सागर उमड़ पड़ा और उन्हें भी बालक को गोद में लेने की प्रबल इच्छा हुई । यह सोच कर वे दुखी हो गये ।  मन  अशांत था । फिर उन्हें एक युक्ति सुझी । और उन्होंने देवराज इन्द्र से पुत्र प्राप्ति के लिए ,आग्रह करने के लिए   घोर तपस्या की । देवराज इन्द्र उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्होंने ऋषि शिलाद से  उनकी इच्छा जानने  के लिए कहा  "ऋषि वर हम आपकी इस तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए  आप  किसी भी  तरह का बरदान मांग सकते हैं ।"                    तब ऋषि शिलाद ने कहा "प्रभु यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न है तो मुझे एक  पुत्र चाहिए जो बिना किसी मां के गर्भ के पैदा हुआ हो और कभी उसकी मृत्यु ना हो ।" अब देवराज इन्द्र सोच में पड़ गये । करूं तो क्या करू ये आपने क्या मांग लिया भला बिना मां के गर्भ के पुत्र कैसे हो सकता है । और इस पृथ्वी पर जो भी आया उसे जाना ही पड़ता है । चाहे वह स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु ही क्यों ना हो  । तब उन्होंने ऋषि शिलाद से कहा" यह असम्भव है ।ऐसा हो ही नहीं सकता ।आप कुछ और मांग सकते हैं । "  तब ऋषि शिलाद और दुखी हो गये । उनको दुखी देख कर  देवराज इन्द्र को बहुत पीड़ा हुई । उन्होंने कहा " ऋषिवर मैं आपकी पीड़ा को समझ सकता हूं ।पर सच मानिए ऐसा करना मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है । हां, पर मैं आपका मार्ग दर्शन कर सकता हूं  । भगवान त्रिलोकी नाथ एक ऐसे  देवता हैं जो  मां के गर्भ से पैदा नहीं हुए और ना ही  उनका कभी अन्त होता है । आप भगवान सदाशिव के शरण में जाइए वहां आपका मनोरथ अवश्य पूरा होगा । "  इतना कहकर देवराज इन्द्र अन्तर्ध्यान हो गये ।                                              आशा की आखीरी किरण  मानकर  ऋषि शिलाद ने ऐसी घोर तपस्या की की  त्रिभुवन में हाहाकार मच गया । सब देवता  भगवान सदाशिव से इस ज्वाला से बचाने का आग्रह करने लगे । भगवान शिव मुस्कुराते हुए बोले  "आप लोग निश्चिंत रहिए मैं इस हाहाकार रुपी ज्वाला को शांत करता हूं । "  तब पृथ्वीनाथ भगवान शिव  वहां पहुंचे जहां ऋषि शिलाद तपस्या कर रहे थे । उन्होंने देखा कि ऋषि शिलाद को  प्रकृति ने   एक अद्भुत आवरण से आच्छादित कर रखा है । पर वे तो देवो के देव महादेव भगवान शिव हैं भला उनको कौन रोक सकता है  । भगवान शिव के हाथों का स्पर्श पाकर ऋषि शिलाद  पहले जैसा हृष्ट पुष्ट हो गये ।                                                        भगवान शिव के हाथों के स्पर्श करते ही ऋषि शिलाद कि तंद्रा टूटी  । अचानक अपने आराध्य देव को सामने देखकर भावविभोर हो कर ऋषि शिलाद उनके चरणों में गीर पड़े । भगवान सदाशिव ने उठाकर उन्हें गले से लगा लिया । तब ऋषि शिलाद ने वह सब कुछ कहा जो वे चाहते थे । भगवान शिव मुस्कुराते हुए बोले । ऐसा तो असम्भव है पर आपके इस अगाध प्रेम और श्रृद्धा को  देखकर  मैं आप के लिए कुछ जरूर करूंगा ।आज तक मैं इस  जगत का परमपिता परमात्मा था । संसार मे मै ही एक ऐसा देवता हूं जो मां के गर्भ से पैदा नहीं हुआ ,ना ही मेरा कभी अन्त होता है ।  आज के छः माह बाद मैं आपके पुत्र के रूप मे प्रगट होऊंगा । .................                       दोस्तों यह कहानी कैसी लगी आप कमेंट बॉक्स में दो शब्द जरूर लिखें । और अपने दोस्तों को शेयर करें बहुत बहुत धन्यवाद हर-हर महादेव लेखक- भरत गोस्वामी 

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