BHGWAN GAUTAM BUDDHA भगवान गौतम बुद्ध HISTORICAL STORY

 भगवान इस धरती पर कभी भी कहीं भी आ सकते हैं वे दुनिया के मालिक हैं । यदि यह तथ्य सत्य नहीं होता तो सबके सुरज अलग होते, सबके चांद अलग होते,सबकी प्रकृति अलग होती, लेकिन ये कोई इतिफाक नहीं है पूर्ण सत्य है की हों न हो  हम सब एक हैं । हमारे बीच दो शख्सीयत ऐसी आई । जिनके कर्म ने  उन्हें भगवान का दर्जा हासिल करवाया । दोनों शान्ति और अहिंसा के ऐसे मिसाल बने । जिनके आगे दुनिया नत मस्तक होती है । एक है भगवान गौतम बुद्ध और दुसरे है प्रभु यीशु मसीह । शांति और अहिंसा के अद्भुत अवतार ।आज हम भगवान गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ी एक सुंदर घटना पेश करने जा रहे हैं । .....                                 
                                  भगवान गौतम बुद्ध  शाक्य वंश केे राजा सुशोधन केेे पुत्र थे । स्वभाव सेेे ही  शान्त्त , उदिग्नता  और चंचलता से कोसो दूर थे । अन्य  राजकुमारों की भांति खेलो और प्रतिस्पर्धा मे  भाग लेेेेना  , राज कुमार  होने का दम्भ भरना ,उनके अन्दर ऐसी कोई भी आदत नहीं थी।  गीत, संगीत, विनोद और हास्य में उनकी रूचि   लेेेश मात्र भी नहीं थी । समुद्र के पानी की तरह उनका मन हमेशा गंभीर रहा करता था ।                                       उनके इस स्वभाव से उनकेे माता-पिता बहुत ही चिन्तित रहा करते थे ।ऐसा ही चलता रहा तो  मेरे बच्चे का भविष्य क्या होगा । उन्होंने कई भविष्य वक्ताओं से राय लिया ।पर सब कुछ बेकार ही रहा। राज कुमार सिद्धार्थ  के अन्दर कोई परिवर्तन नहीं देखकर  उनके माता पिता ने उनका विवाह एक सुशील और सुन्दर कन्या से करवा दिया । जिसके फलस्वरूप उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ।  फिर भी उनके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया । वैसे ही गुम सुम रहना  किसी    से अनाप शनाप प्रश्न करना उनकी आदत सी हो गई  थी ।                             एक दिन वे अपने दोस्तों के साथ कही घूमने जारहे थे । उनको एक हंस दिखाई पड़ा  जो किसी तीर् से घायल हो कर धरती पर गीर कर तड़प रहा था । राज कुमार सिद्धार्थ ने उसे अपने गोद में उठा लिया और अपने हाथ से ही तीर निकाल कर फेंक दिया और जोर से चिल्लाए कौन है जो इसको मारने कि घृष्तता किया है । हंस के पीड़ा को देख कर करूणा से राजकुमार सिद्धार्थ की आंखें सजल हो गई  ।                                                       एक दिन उनके जीवन में ऐसी घटना घटी  जिसने उनके जीवन में परिवर्तन ला दिया ।एक मरे हुए व्यक्ति को कुछ लोग  अंत संस्कार  को ले जा रहे थे । राजकुमार सिद्धार्थ उस मरे हुए व्यक्ति को बहुत ध्यान से देख रहे थे । उन्होंने अपने अंग रक्षक से पुछा ये क्या हो रहा है कुछ लोग एक व्यक्ति को  कहां ले के जा रहे हैं । तो अंगरक्षक ने कहा कि वह व्यक्ति मर गया है कुछ लोग उसको अंत संस्कार के लिए ले जा रहे हैं। और फिर राजकुमार सिद्धार्थ ने प्रश्नो की ऐसी झड़ी लगा दी की अंग रक्षक ने  हाथ जोड़कर कहा " युवराज आपके प्रश्नों का उत्तर कोई ज्ञानी पुरुष ही दे सकता है । "कहीं से भी संतोष जनक उत्तर न मिलने के कारण उनका मन उदिग्न हो चुका था ।  इसलिए उन्होंने बिना किसी संकोच के गृह त्याग कर दिया ।                                                   सत्य की खोज में भटकते भटकते  बिहार के  गया नामक एक निर्जन स्थान पर पहुंच गए । कभी कुछ खाने को मिला तो ठीक है नहीं, तो केवल पानी पीकर  कभी पेड़ो के फल, कभी उनके पत्तो को खाकर रह जाते ।  गया नामक स्थान में एक बरगद के पेड़ के नीचे पहुंचने पर उन्हें एक अद्भुत शान्ति का एहसास हुआ । उनकी आत्मा से आवाज आई कि यह स्थान  मेरे रहने के लिए अनुकूल रहेगा । फिर वे वहीं ध्यानस्थ हो कर अपने आप को  ब्रह्म में लीन कर लिया । वहां कि प्रकृति  उनकी देखभाल करने लगी ।         बरसों ध्यानस्थ होने के कारण उनका शरीर नाममात्र रह गया था । उनकी इस घोर तपस्या से खुश हो कर एक अज्ञात शक्ति ने  उन्हें ब्रह्म ज्ञान प्रदान किया । फिर  वहां से उन्होंने विश्व भ्रमण किया और कई जगह अपने उपदेश से  लोगों का मन जीत कर  दुनिया में  शांति और अहिंसा परमोधर्म का प्रचार किया ।    कई देश के राजा महाराजा उनके अनुयाई बन गये  ।उनके शिष्य हर जगह  जा कर उनका प्रचार करने लगे  ।         एक बुजुर्ग महिला का पोता गुड़ का सेवन करता था। उसके सेहत को लेकर बुजुर्ग महिला बहुत परेशान थी । उस वक्त किसी ने यह सुझाव दिया कि आप भगवान गौतम बुद्ध से मिलो वहीं पर आपको इस समस्या का हल मिल जाएगा । यदि भगवान गौतम बुद्ध ने इस बच्चे से कह दिया कि आप गुड़ मत खाना  तो यह बच्चा गुड़ नहीं खायेगा ।  बुजुर्ग महिला बहुत खुश हुई ,उसने भगवान गौतम बुद्ध से अपनी सारी समस्या  कह डाली  । तब भगवान गौतम बुद्ध ने उस बुजुर्ग महिला से कहा " ठीक है आप एक माह के बाद आइए । " बुजुर्ग महिला को कुछ अजीब सा लगा पर वह कुछ बोल नहीं पाई ।एक माह के बाद  बुजुर्ग महिला अपने पोते के साथ पहुंची ।और उसने भगवान गौतम बुद्ध से बच्चे को समझाने को कहा ।तब भगवान गौतम बुद्ध ने कहा"ठीक है एक पन्द्रह दिन बाद आओ । बुजुर्ग महिला  उस दिन भी बिना कुछ बोले घर वापस चली गई । फिर पन्द्रह दिन बाद भगवान गौतम बुद्ध ने  सात दिन के बाद आने को कहा । अब बुजुर्ग महिला बहुत परेशान हो गई । फिर भी वह कुछ नहीं बोल पाई ।  सात दिन  के बाद जब बुजुर्ग महिला अपने पोते को लेकर भगवान गौतम बुद्ध के आश्रम पहुंची तो   भगवान गौतम बुद्ध ने बच्चे के सिर पर हाथ फिराया और उसके बालो को सहलाते हुए  कहने लगे " बेटा ज्यादा गुड़ मत खाना  ज्यादा गुड़ सेहत के लिए नुकसानदायक होता है ।" बुजुर्ग महिला बहुत खुश हुई पर उसे एक बात समझ में नहीं आई  । इतनी सी बात कहने के लिए भगवान गौतम बुद्ध ने दो माह का समय क्यों लिया । आखिरकार बुजुर्ग महिला ने भगवान गौतम बुद्ध से पूछ ही लिया । भगवान आपने इतनी सी बात कहने के लिए दो माह का समय लगा दिया । तब भगवान गौतम बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा " आप जब पहली बार आई थी तो मैं खुद गुड़ खाने का शौकीन था इस लिए मैंने एक माह का समय लिया दुसरी बार आप आई तो थोड़ा थोड़ा  सा और कुछ कमी रह गया था । इसलिए   मैंने आपसे पन्द्रह दिन का समय और मांग लिया उसके वावजूद भी मुझसे गुड़ खाने की आदत नहीं छुटी तो मैंने आपसे सात दिन का समय और मांग लिया ।  आज आप  आई तो मैं पुरी तरह से गुड़ खाना बंद कर दिया हुं । इसलिए मैंने इस बच्चे से  कह दिया कि ज्यादा गुड़ खाना सेहत के लिए नुकसानदायक होता है । आज के बाद यह बच्चा गुड़ नहीं खायेगा ।                                      दोस्तों कहानी कैसी लगी । भगवान गौतम बुद्ध ने इस कहानी के जरिए दुनिया को  एक संदेश दिया  किसी    कि गल्ती निकालने से पहले आप ये परख लो कि मैं उसकी गलती निकालने के काबिल हूं या नहीं ।      अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी (भारत)

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