VINDHAYACHAL NAGARI विंध्याचल नगरी एक सुविचार
भारत वर्ष की पावन भूमि में ऐसे ऐसे चमत्कार हुए हैं । कि सधारण मनुष्य को विश्वास ही नहीं होता है, की ऐसा भी होता है ।पर यह अक्षरशः सत्य है ।जो धटनाए आज धटती है वो कल कहानी हो जाती है । एक पुर्व काल की अद्भुत घटना को छूता यह सुविचार आप लोगों को अच्छा लगेगा ।इस प्रसंग में हम मां विंध्यवासिनी के प्रार्दुभाव की कथा सुनाएगे ।और उनके पावन धाम विंध्याचल नगरी के दर्शन कराएंगे ।
यह घटना उस समय की है जब दुष्ट कंस के अत्याचार से मां पृथ्वी रसातल को प्रस्थान करने को मजबूूूर हो गई । तब पृथ्वी नाथ कमल नयन भगवान श्री हरि विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया" हे देवी आप चिंता मत करो मैैं शीघ्र पृथ्वी पर अवतार लेने वाला हूं ।और आप के पाप भार को कम करने वाला हूं । जब भगवान श्री हरि विष्णु भगवान श्रीकृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेने वाले थे तब कंस के जेल में बंद महाराज बासुदेव और देवकी अपनी निद्रा अवस्था में सोए हुए हैं । तब महाराज बासुदेव जी को एक स्वप्न आता है । जैसे उनसे कोई कह रहा है " भगवान श्री हरि आपकी पत्नी देवी देवकी के गर्भ से अवतार लेंगे आपको उन्हें लेकर आपके मित्र महाराज नन्द के घर जाना है वहां उनकी पत्नी देवी यशोदा को पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई है उनके गोद में बालक श्रीकृष्ण को रख कर उनके कन्या को उठा लाना है ।और देवी देवकी के गोद में रख देना है । " जब महाराज बासुदेव की निद्रा टूटती है , तो देखते हैं कि सभी पहरेेदार सो रहे हैं । मेरे हाथों और पैरो की बेड़ियां खुल गई उनकी निगाह जब देवी देवकी के गोद की तरफ जाती है तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता है एक तेज पूंज बालक सचमुच देवी देवकी के गोद में खेल रहे हैं । विधि की लीला अपरम्पार है ऐसा सोच कर महाराज बासुदेव उस तेज पूंज बालक को नमस्कार करते हैं जो अपने अन्दर सहस्त्र कोटी सुर्य को समाहित किए हुए हैं । स्वप्न के अनुसार महाराज बासुदेव बालक को लेकर गोकुल के लिए निकल पड़ते हैं । उधर यमुना जी का जल भादों मास होने के कारण अपने अंतिम उड़ान रहा है ।पर महाराज बासुदेव बिना किसी संकोच के यमुना में प्रवेश कर जाते हैं ।मां यमुना नन्हे से प्रभु के नन्हे-नन्हे कोमल चरणों का स्पर्श करना चाहती है पर भगवान श्रीकृष्ण जानबूझ कर अपना पैर उपर की तरफ उठा लेते हैं । काफी तंग करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपना पैर यमुना जी के लिए आगे कर देते हैं । भगवान श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श के बाद मां यमुना स्वयं महाराज बासुदेव जी का मार्ग प्रशस्त करती है । वहां जाकर बासुदेव जी देखते हैं कि यहां भी सब सो रहे हैं । बालक श्रीकृष्ण को देवी यशोदा के गोद में सुला कर बासुदेव जी कन्या को उठा कर अपने मथुरा को प्रस्थान करते हैं । और मथुरा जाकर देवी देवकी की गोद में कन्या को सुला देते हैं । उनके ऐसा करने के बाद सब पहले जैसा हो जाता है उनके हाथ और पैर की बेड़ियां पहले जैसी जकड़ जाती है । पहरेदार जग जाते हैं । सुबह-सुबह जब दुष्ट कंस को यह बात मालूम होता है तो वह खुशी से झूम उठता हे आ गया मेरा असली दुशमन अन्य बालकों के भांति इसे भी मार कर मैं निश्चित हो जाऊंगा । कुछ सैनिकों के साथ वह जेल के तरफ चल देता है । वहां जाकर देखता है कि यह तो कन्या है ।उसे बहुत आश्चर्य होता है कि यह कन्या ,यह कन्या मेरा क्या बिगाड़ लेगी । उसके दिमाग में हलचल मची हुई अकारण इस कन्या का बध करके मुझे क्या मिलने वाला है फिर उसको आकाशवाणी याद आती है । "देवकी की आठवीं संतान तेरी शत्रु होगी । आगे बढकर देवी देवकी के गोद से कन्या को छीन लेता है ।और ज्यों पत्थर पर पटकने जाता है । कन्या उसके हाथ से छूट कर आकाश मार्ग में चली जाती है । वहां जाकर वह दुष्ट कंस से बोलती है " तु क्या मुझे मारेगा तुझे मारने वाला तो गोकुल में पल रहा है । " इतना कहकर वह कन्या विंध्याचल पर्वत पर चली जाती है और वहां पहुंच कर मां विंध्यवासिनी देवी के नाम से प्रसिद्ध होती है । अपने दोनों सहायिका महा सरस्वती और महांकाली के साथ वही निवास करने लगती है यह स्थान मिर्जा पुर रेलवे स्टेशन से कुछ ही दुरी पर मां गंगा नदी के किनारे पर बसा हुआ है ऐसा लगता है मां गंगा मां विंध्यवासिनी देवी के चरणों को पखार रही है । इतना सुन्दर और शान्त वातावरण लाखों श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है । सुनते हैं, विंध्याचल मां के दर्शन मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं । धन्यवाद है मां और धन्य है , तेरी विंध्याचल नगरी ।। दोस्तों यह सुविचार आप को कैसा लगा दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें अपने दोस्तों को शेयर करें । धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी
यह घटना उस समय की है जब दुष्ट कंस के अत्याचार से मां पृथ्वी रसातल को प्रस्थान करने को मजबूूूर हो गई । तब पृथ्वी नाथ कमल नयन भगवान श्री हरि विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया" हे देवी आप चिंता मत करो मैैं शीघ्र पृथ्वी पर अवतार लेने वाला हूं ।और आप के पाप भार को कम करने वाला हूं । जब भगवान श्री हरि विष्णु भगवान श्रीकृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेने वाले थे तब कंस के जेल में बंद महाराज बासुदेव और देवकी अपनी निद्रा अवस्था में सोए हुए हैं । तब महाराज बासुदेव जी को एक स्वप्न आता है । जैसे उनसे कोई कह रहा है " भगवान श्री हरि आपकी पत्नी देवी देवकी के गर्भ से अवतार लेंगे आपको उन्हें लेकर आपके मित्र महाराज नन्द के घर जाना है वहां उनकी पत्नी देवी यशोदा को पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई है उनके गोद में बालक श्रीकृष्ण को रख कर उनके कन्या को उठा लाना है ।और देवी देवकी के गोद में रख देना है । " जब महाराज बासुदेव की निद्रा टूटती है , तो देखते हैं कि सभी पहरेेदार सो रहे हैं । मेरे हाथों और पैरो की बेड़ियां खुल गई उनकी निगाह जब देवी देवकी के गोद की तरफ जाती है तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता है एक तेज पूंज बालक सचमुच देवी देवकी के गोद में खेल रहे हैं । विधि की लीला अपरम्पार है ऐसा सोच कर महाराज बासुदेव उस तेज पूंज बालक को नमस्कार करते हैं जो अपने अन्दर सहस्त्र कोटी सुर्य को समाहित किए हुए हैं । स्वप्न के अनुसार महाराज बासुदेव बालक को लेकर गोकुल के लिए निकल पड़ते हैं । उधर यमुना जी का जल भादों मास होने के कारण अपने अंतिम उड़ान रहा है ।पर महाराज बासुदेव बिना किसी संकोच के यमुना में प्रवेश कर जाते हैं ।मां यमुना नन्हे से प्रभु के नन्हे-नन्हे कोमल चरणों का स्पर्श करना चाहती है पर भगवान श्रीकृष्ण जानबूझ कर अपना पैर उपर की तरफ उठा लेते हैं । काफी तंग करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपना पैर यमुना जी के लिए आगे कर देते हैं । भगवान श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श के बाद मां यमुना स्वयं महाराज बासुदेव जी का मार्ग प्रशस्त करती है । वहां जाकर बासुदेव जी देखते हैं कि यहां भी सब सो रहे हैं । बालक श्रीकृष्ण को देवी यशोदा के गोद में सुला कर बासुदेव जी कन्या को उठा कर अपने मथुरा को प्रस्थान करते हैं । और मथुरा जाकर देवी देवकी की गोद में कन्या को सुला देते हैं । उनके ऐसा करने के बाद सब पहले जैसा हो जाता है उनके हाथ और पैर की बेड़ियां पहले जैसी जकड़ जाती है । पहरेदार जग जाते हैं । सुबह-सुबह जब दुष्ट कंस को यह बात मालूम होता है तो वह खुशी से झूम उठता हे आ गया मेरा असली दुशमन अन्य बालकों के भांति इसे भी मार कर मैं निश्चित हो जाऊंगा । कुछ सैनिकों के साथ वह जेल के तरफ चल देता है । वहां जाकर देखता है कि यह तो कन्या है ।उसे बहुत आश्चर्य होता है कि यह कन्या ,यह कन्या मेरा क्या बिगाड़ लेगी । उसके दिमाग में हलचल मची हुई अकारण इस कन्या का बध करके मुझे क्या मिलने वाला है फिर उसको आकाशवाणी याद आती है । "देवकी की आठवीं संतान तेरी शत्रु होगी । आगे बढकर देवी देवकी के गोद से कन्या को छीन लेता है ।और ज्यों पत्थर पर पटकने जाता है । कन्या उसके हाथ से छूट कर आकाश मार्ग में चली जाती है । वहां जाकर वह दुष्ट कंस से बोलती है " तु क्या मुझे मारेगा तुझे मारने वाला तो गोकुल में पल रहा है । " इतना कहकर वह कन्या विंध्याचल पर्वत पर चली जाती है और वहां पहुंच कर मां विंध्यवासिनी देवी के नाम से प्रसिद्ध होती है । अपने दोनों सहायिका महा सरस्वती और महांकाली के साथ वही निवास करने लगती है यह स्थान मिर्जा पुर रेलवे स्टेशन से कुछ ही दुरी पर मां गंगा नदी के किनारे पर बसा हुआ है ऐसा लगता है मां गंगा मां विंध्यवासिनी देवी के चरणों को पखार रही है । इतना सुन्दर और शान्त वातावरण लाखों श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है । सुनते हैं, विंध्याचल मां के दर्शन मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं । धन्यवाद है मां और धन्य है , तेरी विंध्याचल नगरी ।। दोस्तों यह सुविचार आप को कैसा लगा दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें अपने दोस्तों को शेयर करें । धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी
बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteबहुत अच्छा
ReplyDelete