YOGIRAJ KRISHNA योगीराज कृष्ण - एक सुविचार

भगवान राम बारह  कला के अवतार थे । तो भगवान कृष्ण  सोलह कला के अवतार थे ।यानि पूर्ण  अवतार जिसे हम आज की भाषा में शत् प्रतिशत पुर्ण अवतार कह सकते हैं ।जिस तरह  हम आज शत् प्रतिशत को पुर्ण कहते हैं वैसे ही पुर्व काल में इसी पुर्णता को लोग  कहा करते थे कि यह बात सोलह आने सच है । भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार भगवान श्री कृष्ण  का अवतार भी भगवान राम के अवतार  कि तरह नारद जी की वजह से ही हुआ था । इस सुविचार में उसी कथा का वर्णन है ।                                            
                                      पुर्व काल मे  कामदेव के कारण ही महर्षि नारद जी का अपमान हुआ था । और उसी कारण उन्होंने अपने  स्वामी भगवान श्री हरि विष्णु को श्रापित किया था ।उनके श्राप को पूरा करने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु को राम के रुप मेंं अवतार  पड़ा था । भगवान श्री हरि विष्णु को श्राप देने के बाद भी  नारद जी की ह्रदय की अग्नि शान्त  नहीं हुई थी कि  उनकी मुलाकात कामदेव से हो गई । घृणावश  नारदजी काम देव को अर्ध दृष्टि से देख रहे थे ।                                       अपने सौंदर्य के मद  मे चूर  कामदेव को नारद जी का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा ।  वे सोचने लगे कि नारद जी मुझे ऐसे क्यु  देख रहे हैं ?  कामदेव से नहीं रहा गया  उन्होंने नारद  जी से पुछ ही लिया । नारदजी आप मुझे ऐसे क्यु देख रहे हो ? जिसके प्रति मन में कोई मलिनता होतो  सामने वाले की अच्छी बात भी बुरी लगती है । ठीक वही हुआ कामदेव के पुछने मात्र से नारद जी को लगा कि कामदेव मुझसे व्यंंग बोल रहे हैं । तब नारद जी ने आव देखा न ताव कामदेव को खरी खोटी सुना डाली । कामदेव   को गुस्सा आया और उन्होंने ने भी नारद जी को खरी खोटी सुना डाली ।  विचारो का शीत युद्ध चल रहा था ।                                                  ताव में आकर कामदेव के मुख से कुछ अप्रत्याशित शब्द निकल पड़े  ।  "मैं दुनिया में सबसे श्रेष्ठ हूं ।मेरे बिना चर ,अचर ,नर, नारायण, देवी, देवता, यहां तक कि पशु, पक्षी  का भी कोई अस्तीत्व नहीं है । ना ही मेरे बिना किसी की कोई इच्छा पुरी होने वाली है ।      नारद जी  ने अपना  अपमान तो सहन कर लिया था । पर अपने स्वामी भगवान श्री हरि विष्णु का अपमान सहन नहीं कर पाये । और उन्होंने वहां से चुपचाप  भगवान के दरबार की  तरफ  प्रस्थान किया ।उस वक्त वे बड़े उदास थे । वे जब भगवान श्री हरि विष्णु के दरबार पहुंचे तो  भगवान ने नारद जी से उनके उदासी   का कारण पूछा ।  तब नारद जीने भगवान श्री हरि विष्णु को  माजरा से अवगत कराया । कुछ देर मुस्कुराते रहने के बाद भगवान श्री हरि विष्णु ने नारद जी से कहा  "जाओ नारद और जाकर कामदेव से कह दो  पृथ्वी का पाप भार कम करने के लिए (महाभारत द्वारा)मै  भविष्य में अपने पूर्ण अवतार मे अवतार लूंगा ।उस समय सोलह सौ साठ रानियों के बीच रहकर भी  एक ब्रह्मचारी की तरह  योगी राज  कृष्ण के नाम से जाना जाऊंगा । कामदेव का कोई भी प्रयास और आसक्ति मुझे अपने कर्म पथ से विचलित नहीं कर पायेगी । उसी समय मैं कामदेव के मद का मर्दन करूंगा ।                             सचमुच भगवान श्रीकृष्ण  ने मातृत्व आसक्ति (कृष्ण यशोदा ), प्रेम आसक्ति (राधा विरह) और गोपी प्रेम  जै सी आसक्तियों से विचलित नहीं हुए और अपने कर्म पथ पर अपने ही नहीं बल्कि अपने प्रिय भक्त अर्जून को भी उपदेश देकर माया से आसक्त नहीं होने दिया । और इस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने कामदेव के गर्व को चूर चूर किया ।                                   

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