YOGIRAJ KRISHNA --2 योगीराज कृष्ण --2 एक सुविचार

योगीराज कृष्ण  प्रसंग कुछ अधिक हो रहा था , इस लिए  योगीराज कृष्ण--2  की रचना करना पड़ा । वैसे तो प्रभु भगवान श्रीकृष्ण के अवतार लेने के कई कारण थे ।पर ये दो कारणों का विशेष उल्लेख लोक कथाओं में चर्चित है । एक कारण तो आप सभी ने योगीराज कृष्ण में पढ़ लिया अब दुसरा महत्त्वपूर्ण कारण हम लोग इस रचना में पढ़ेंगे ।इस के लिए हमें आपको रामायण काल की   एक घटना से अवगत कराना होगा ।                       
                               मां सीता का स्वयंवर चल रहा था । कई जगह से  राजा और राजकुमार  वहां आए हुए थे ।   अपने अपने बल का प्रदर्शन  सब दिखा रहे थे ,पर शिव जी का धनुष उठाना तो दूर कोई उसे हिला ना सका । यह सब देखकर राजा जनक जी की चिंता बढ़ती चली जा रही थी ।  तब उसी सभा में   महर्षि विश्वामित्र अपने दोनों शिष्य राजकुुुुमार राम और राजकुमार लक्ष्मण  के साथ विराजमान थे । उन्हें राजा जनक जी के चिंता  का भान हुआ  और उन्होंने  राजकुमार राम को  राजा जनक जी  चिंता को दूर करने का आदेश दिया ।  उस स्थिति को बाबा तुलसीदास जी ने   बहुत सुंदर रूप में वर्णन किया है ।                                      उदित उदय गिरि मंच पर ,रघुबर वाल पतंग ।       विकसे संत सरोज सब ,हरषित लोचन भृंग ।।       जब भगवान श्रीराम गुरु की आज्ञा पाकर शिव जी के धनुष को उठाने के लिए मंच पर आसीन हुए उस समय उनकी कान्ति सैकड़ों सूर्यो  को लज्जित करने  वाली थी । उनके शरीर से एक ऐसी आभा निकल रही थी । जिसे देखकर वहां के सब नर और नारी  प्रफुल्लित हो गये । जो सज्जन पुरुष थे । उनके चेहरे तो भगवान श्रीराम की छवि को देख कर कमल के सदृृश खील गये । और जो दुर्जन लोग  थे उनके चेहरे तो मलिन  हो गये ।                                            वहां कि स्त्रियां  तो भगवान श्री राम को देखकर वेसुध सी हो गई  और सभी मन ही मन सोचने लगी की काश सीता जी जैसे मेरे पति भी होते । उनकी दशा उन कलियों के समान थी  जो भंवरे को देख कर एक कली की होती है । उनकी इस प्रेम व्यथा को देख कर भगवान श्री राम को  दया आई और उन्होंने  हर स्त्री के मन को सान्तावना दिया । और कहा कि इस अवतार मे मैं एक ही  स्त्री को वरण करुंगा ।पर भविष्य में जब पृथ्वी के पाप भार को कम करने के लिए महाभारत काल में  श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लूंगा तब आप सब की मनोकामना की पूर्ति करूंगा ।आप सब लोग गोपियों के रूप मे मेरा सानिध्य प्राप्त करोगे ।        जब महाभारत काल में भगवान विष्णु ने भगवान श्रीकृष्ण के रूप मेेंअवतार लिया तो  कई तरह की लीलाएं की । जिनमें मां यशोदा को वात्सल्य सुख दिया और  अपने रामायण काल में दिये हुए बचन को पुुुरा करने के लिए  उन्होंने गोपियों को प्रेम सानिध्य सुख  दिया ।  भगवान श्रीकृष्ण की बंशी की धुन  सुन कर   गोपियां जहां भी होती चाहे वह कुएं से पानी निकाल रही हो ।या खाना बना रही हो या  कोई भी काम कर रही हो  काम पुरा किये बीना ही दौडी चली आती । और भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में ऐसी  पागल हो जाती  कि ना उन्हें समय का भान रहता ,ना ही किसी तरह के बंधन का ही  ज्ञान होता । हर गोपिका के दिल में एक ही बात होती भगवान तो सिर्फ मेरे है मैं उनकी खास हूं । और एक दिन तो भगवान श्रीकृष्ण ने सारी हदें पार कर दी सभी के साथ महारास कर दिया हर गोपिका के साथ एक कृष्ण दिखाई दे रहे थे ।                                                  दोस्तों यह सुविचार आपको कैसा लगा दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी

Comments

  1. बड़ा ही सुन्दर और सत्य आक्ख्यान।प्यारे कृष्ण

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