RAM RAJYA राम राज्य -एक सुविचार
राम एक ऐसा नाम हैं ,जो जन जन में प्रिय है ।पुरी दुनिया के दिलों पर राज करता एक ऐसा व्यक्तित्व ,एक ऐसा आदर्श चरित्र जो राम ने प्रस्तुत किया है । जिसे कोई भुल नहीं सकता है । भगवान विष्णु के इस विशेष अवतार ने एक ऐसा आदर्श चरित्र प्रस्तुत किया है कि जब तक सुर्य और चांद रहेंगे ।तब तक इनके नाम की कान्ति कभी धुमिल नहीं होगी । तत्कालीन महर्षि बाल्मीकि से लेकर बाबा तुलसीदास और कई लोगों ने अपने अपने हिसाब से इनके चरित्र को अलंकृत किया है ।
भगवान विष्णु के वैसे तो बहुत अवतार हुए हैं । शास्त्रों के अध्ययन से पता चलता है कि कुछ भी घटनाएं यदि पृथ्वी पर घटित होती हैं ,वो अकारण नहीं होती । उसका कोई न कोई कारण अवश्य होता है ।इस अवतार का अवतरण भी कई कारणों से हुआ है । भगवान विष्णु के अति प्रिय सेवक नारद मुनि को एक बार काम देव ने ग्रसित कर लिया । भगवान विष्णु तो अंतर्यामी है । उन्हें समझते देर नहीं लगी कि नारद कामदेव की वशीभूत हो गये है । भगवान विष्णु बहुत सोच में पड़ गये । नारद जी के इस ग्रसित मन को कामदेव से मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने एक माया की रचना की । एक रुपवती स्त्री से नारद की मुलाकात करवाई , जिसका स्वयंवर होने वाला था । नारद मुनि ने सोचा कि भगवान विष्णु से सुंदर रुप किसका हो सकता है । भगवान विष्णु से एक दिन के लिए उनका रूप मांग लेते हैं ।यह सोच कर नारद जी भगवान विष्णु के यहां पहुंचे और अपना आग्रह उनके सामने रखा । भगवान विष्णु ने उन्हें तथास्तु कहकर आश्वस्त कर दिया । नारद जी खुशी-खुशी स्वयंवर पहुंचे । वहां रूपवती ने दूसरे के गले मेंं माला डाल दिया । कुछ समय बाद नारद जी को पता चला कि भगवान विष्णु ने अपना रूप देने के बजाय बंदर का रुप दे दिया है । तो उनके क्रोध का ठिकाना नहीं रहा । उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया "जिस तरह स्त्री विरह की अग्नि मे मै जल रहा हूं । इसी तरह एक दिन आप भी स्त्री विरह की अग्नि मे तड़पोगे ।और जो बंदर का रुप आपने मुझे दिया है वहीं आपको इस विरह अग्नि से मुक्त करेंगेे । भगवान विष्णु ने चुप चाप नारद के इस श्राप को स्वीकार किया । ऋषि पत्नी अहिल्या परम सुंदरी थी । इन्द्र धोखे से उनके पति का रुप धारण कर अहिल्या के साथ रात्रि भ्रमण कर रहे थे । नित्य कर्म करने के बाद जब ऋषि अपने आश्रम पहुंचे तो उन्होंने अजनबी के साथ अपनी पत्नी को देख कर क्रोध बस अहिल्या को श्राप दे दिया " अपने दुष्कर्म के फल स्वरुप तुम शीला बन जाओगी । क्रोध शांत होनेे पर जब उन्हें सारी बात समझ में आई तो उन्होंने अपनी पत्नी अहिल्या को निर्दोष पाया । उनको अपने कर्म पर बहुत ग्लानि महसूस हुई । और उन्होने उसी वक्त अहिल्या से कहा अनजाने मे मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई । मेेेरा दिया हुआ श्राप मिथ्या तो नहीं हो सकता,दया के परम सागर भगवान श्री हरि विष्णु जब पृथ्वी का पाप भार कम करने के लिए मनुष्य के रूप मे पृथ्वी पर अवतार लेंगे । तब उन्हीं के श्री चरणों के स्पर्श सेेे आपका उद्धार होगा । राम ने अपने जीवनकाल मे एक ऐसा आदर्श चरित्र प्रस्तुत किया कि शास्त्रों मेें ऐसा कोई दूसरा व्यक्तित्व नहीं हुआ । अपने आदर्श चरित्र के चलते उन्हें जन मानस ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम की उपाधि दी । और कहा की आज तक ऐसा राजा कोई हुआ ना भविष्य में होगा । राम चरित मानस मेें बाबा तुलसीदास जी ने बड़े सुंदर शब्दों में लिखा है कि । राम राज बैठे त्रिलोका । हरषित भए सब लोका ।। बयर न कर काहू सन कोई ।। राम प्रताप विषमता खोई ।। अर्थात श्रीराम जी के राज्याभिषेक होने पर तीनों लोक हरषित हो गए । किसी के साथ कोई बैर नहीं यदि किसी के साथ भेदभाव था वह भी खत्म हो गया । दैहिक दैविक भौतिक तापा । राम राज नहीं काहूहि ब्यापा ।। सब नर करहूं परस्पर प्रीति । चलहि स्व धर्म सब निरत श्रुति नीति ।।
अर्थात उस वक्त दैैैैहिक , दैविक, भौतिक किसी तरह का ताप (दुख) किसी भी व्यक्ति को नहीं था । सभी मनुष्य परस्पर में प्रेमभाव से रहते थे । और वेदों के द्वारा बताए गए नितियों के अनुसार आपस में प्रेम रखते हैं । अल्प मृत्यु नही कवनिऊं पीरा ।सब सुंदर सब विरूज सरीरा ।। नहीं दरिद्र कोई दुखी न दीना । नहीं कोई अबुधं न लक्षन हिना ।।
अर्थात कम उम्र में किसी की मृत्यु नही होती थी । सब सवस्थ और सुंदर शरीर वाले लोग थे । नाही कोई दरिद्र था नाही कोई दुखी ही था ।ना ही कोई अज्ञानी था नाही कोई अशुभ लक्षन वाला ही था फुलहिफरही सदा तरु कानन । रहहि एक संग गज पंचानन ।। राम राज्य मे मनुष्य तो मनुष्य वन मेे पशु,पंछी,हाथी और सिंह सब एक साथ रहते थे ।और पेड़ , पौधे सदा फलों और फुलो से लदे रहते थे । दोस्तों यह सुविचार आप लोगों को कैसा लगा दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी ।
श्री कृष्ण को योगीराज कृष्ण भी कहा गया है।ऐसे कृष्ण जो गीता के संदेश के द्वारा अर्जून को युद्ध क्षेत्र में, संजय को धृतराष्ट्र के महल में और ब्यास जी को दिब्यदृष्टि में ,अभिभूत किये;धन्य है उनकी लीला।
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