VIJYA AKADSHI बिजया एकादशी (एक महात्म्य कथा )
मनुष्य की जिंदगी में अपने पुर्वजों के प्रति प्रेम की एक अपार श्रद्धा है । हमारे जिन्दगी में आज जो कुछ भी प्रकृति ने प्रदान किया है । उनमें हमारे पुर्वजों का बहुत बड़ा योगदान रहा है । उनके प्रति हमारी भी कुछ जिम्मेदारियां होती है जिनका सही ढंग से उपयोग करने पर हमारा जीवन सुखमय होता है और अपने पूर्वजों से हमें दुआ मिलती रहती है ।किस तरह से उनका भी कल्याण हो इस महात्म्य में इसका वर्णन किया गया है । जिन मां बाप ने हमें बड़े ही परिश्रम से,बड़े ही कष्ट से हमारे जीवन को संवारा है । हमारी एक छोटी सी मुस्कान के लिए जिन्होंने अपनी मुस्कान को कोई महत्व नहीं दिया ।हमें पग पग पर कोई ना कोई शिक्षा देकर ,प्यार देकर हमें बड़ा किया । देश दुनिया दारी का ज्ञान कराया । हमारी एक छोटी सी छोटी खुशियों का बखुबी से ध्यान रखा । अपने उपर किसी तरह का कोई कष्ट नहीं आने दिया । वो हमारे मां, बाप,दादा दादी या कोई प्रिय जन हमारे पूर्वज जो किसी न किसी कारण से हमें छोड़ कर इस दुनिया से प्रस्थान कर गए । प्राणों से भी प्रिय वे लोग हमेशा याद आते हैं । और हम पागलों की तरह बेचैन रहते है कि काश उनकी एक झलक मिल पाती । उनके साथ बिताए हुए पलों की याद दिल को तड़पाती है । जो एक असहनीय कष्ट से कम नहीं होती है । जिस तरह मां बाप को सदा यह चिंता रहती है कि मेरे बेटे को कहीं कुछ हो न जाए वह भगवान से हमेशा प्रार्थना करते रहते हैं । उसी तरह बेटे के मन में भी वही चिंता रहती है कि कहीं मेरे मां बाप को कुछ हो ना जाए ।वह भी भगवान से हमेशा यही प्रार्थना करते रहता है । सदियों से चले आ रहे इस गुप्त प्रेम को कोई जाहिर करें या न करें । पर यह गुप्त प्रेम सब में रहता है । और यह अक्षरशः सत्य है कि इस गुप्त प्रेम में कोई बाधा आ जाए तो जो कष्ट होता है वह कष्ट असहनीय होता है । जिन से हम दिल से प्रेम करते हैं । यदि वह हमारे बीच ना रहे तो हमें बहुत कष्ट होता है ।कहीं ना कहीं दिल में यह टिस रहती है कि , काश हम उनके लिए कुछ कर पाते ।इसी कष्ट को कम करने के लिए हमारे आराध्य भगवान भोलेनाथ ने ऋषियों और महर्षिर्यों की एक सभा मे इस महात्म्य का उल्लेख किया था । उन्होंने कहा था कि "फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जो बिजया एकादशी के नाम से जानी जाती हैं । वह बहुत ही शुभ है । और भगवान श्री हरि विष्णु को कार्तिक एकादशी जो एकादशियों की रानी कहीं जाती है । उसके समान ही प्रिय है । जो भी इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करता है ।मैं उसके पूर्वजों को चाहे वह किसी भी योनि में हो उससे मुक्त कर के स्वर्ग भेज देता हूं ।ऐसा भगवान श्री हरि विष्णु ने स्वयं कहा था । " इस बिजया एकादशी व्रत में अन्य व्रत के समान ही है । शुद्ध, स्वच्छ, सामान्य ढंग से स्नान ध्यान कर कर पीले वस्त्र की वेदी बनाकर बीच में पीतल या मिट्टी का कलश रख कर पांंच पत्तो वाला आम का पल्लव कलश पर रखें । चावल को पीले रंग से रंग कर कटोरे में कलश के ऊपर रखें । भगवान श्री हरि विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखकर तस्वीर के सामने केला के पत्ते पर सात धान्य रखें । बाजरा,उड़द, गेहूं ,चना ,मुंग,जौ,चावल । भगवान श्री हरि विष्णु को पीला वस्त्र,पीला फल और तुलसी दल प्रदान करें । नीर आहार के अलावा कुछ भी ग्रहण ना करें । संध्या आरती के बाद फलाहार कर सकते हैं । दुसरे दिन सुबह एक ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही पारन करें । यदि ब्राम्हण न मिले तो घर के किसी वृद्ध या बड़े को भोजन कराने के बाद ही भोजन करें ।आपका कल्याण होगा ।
बहुत ही सुन्दर आख्यान ।
ReplyDeleteमन प्रसन्न हो गया ।