MAA JANKI KA VANGAMAN मां जानकी का वनगमन A RILIGIOUS STORY

यह रामायण  का एक बहुत ही  मार्मिक प्रसंग है ।जो तत्कालीन महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित प्रसंग है ।मां जानकी को निर्दोष होते हुए भी वन गमन की सजा दी गई थी । राजा राम ने राजधर्म से मजबूर हो कर मां जानकी को यह सजा दी थी । हम उसी प्रसंग का उल्लेख इस कहानी में करने जा रहे हैं । इस प्रसंग में कई तरह की भ्रांतियां हैं । पर यह  कहानी लोक कथाओं में चर्चित है ।
                            ऐसा कोई पहला दिन न था कि मां जानकी अपने पति  को दरबार के  काम काज से परेेेेशान ना देखा  हो । पर उस  दिन उनके पति  राजा राम के चेहरेे पर एक अजीब तरह की परेशानी झलक रही थी ।  मां  जानकी ने सोचा कि हर समय की तरह इस बार भी अपनेेे पति को उनकेेे मनपसंद भोजन  कराकर  प्रसन्न कर लूंगी।                        यह सोचकर मां जानकी के कदम रसोई घर की तरफ बढ़ रहे थे ।वहां जाते ही सब रसोइयों ने मां जानकी का अभिवादन किया और हाथ जोड़कर विनती पुर्वक कहा " माते  आज्ञा करें  हमारे रहते आप को किसी तरह की तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए । पर मां जानकी पति प्रेम में इतना  खो गई थी कि आदर पूर्वक बोली " आज मुझे अपने स्वामी के लिए विशेष भोजन बनाना है । बड़ी तन्मयता से उन्होंने भोजन की सारी तैयारी शुरू किया ।  आज दरबार मेंं घटी घटना से अनभिज्ञ मां जानकी बड़े प्रेम से अपने प्रिय श्री राम जी केेे लिए भोजन बनाने में जुटी थी । रह रह कर मां जानकी के मन में उनके प्रिय का चेहरा सामने आ जाता था । फिर भी मां जानकी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था । उन्हें यह भ्रम  था कि मेरे स्वामी को दरबार के कामकाज से कुुुुछ उलझन सी हो गई होगी । मै उनके   मनपसंद का भोजन कराके उनके इस उदासीनता  को दूर कर दूंगी । पर नियति को कुछ और ही मंजूर था । उधर राजा राम को इतना उदिग्नता ने घेर रखा था, की दास  को बुला कर कहा  कि" मैं मंत्रणा गृह जा रहा  हूं । आज वही विश्राम करूंगा।" दास दासियों ने     उनसे मिन्नतें की कि  आपके लिए आज मां जानकी ने  विशेष भोजन की तैयारी की है ।  इसके बाद भी बिना कुछ कहे राजा राम मंत्रणा गृृह  चले गए। उनके दरबारियों की भी वही हालत थी ।जो उनके राजा श्री राम की थी । राजा श्री राम के तो जीवन में आंधी सी आ गई थी । रात्रि का चौथा पहर आ गया, राजाराम की आंखों से नींद कोसों दूूर थी । मन मेंं उथल-पुथल मची हुई थी ।   उन्हें लगता था कि उनके जीवन मेंं आंधी सी आ गई है । उन्होंनेेेे विशेष दूत भेजकर लक्ष्मण को बुला भेजा।। उधर लक्ष्मण की हालत भी कुछ ऐसी ही थी । दरबार की धटना  ने उन्हें  भी सोने नहीं दिया था।   । विशेष दूत के बुलावेेे पर वे  अबिलंब मंत्रणा गृह पहुंचे ।    फिर दोनों भाइयोंं ने बहुुुत देर तक  बातचीत करने केे बाद एक भयानक फैसला लिया ।                                          फिर राजा राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण को  आदेश दिया कि अपनी भाभी जानकी को आज ही पौ फटने से पहले वन विहार का बहाना बना कर वन में छोड़ने का काम आप ही करोगे । मजबूर और लाचार लक्ष्मण जी रनिवास में जाकर दासियों द्वारा  मां जानकी को बुलाया और कहा कि "  हम लोगों को अभी अभी वन विहार के लिए निकलना है ऐसा भैया ने कहा  है ।" उधेड़बुन में मां जानकी को कुछ समझ में नहीं आया । और  वे लक्ष्मण के साथ निकल पड़ी। रास्ते मे लक्ष्मण जी सोच रहे थे कि मैं  कैसे भाभी मां से भैया राम का आदेश सुनाऊंगा उधर मां जानकी सोच रही थी कि  क्या कारण सेे मेरे प्रिय राम ने मुझे वन जाने के लिए कहा है ।                                                             अब रथ वन मे प्रवेश कर ने वाला ही था कि  लक्ष्मण जी के आंखों से अश्रु धारा बहने लगी । उन्हें अपने आप पर बहुत शर्म आ रही थी कि आज मैं कितना धृणित कार्य करने जा रहा हूं ।आज मैं कनिज नहीं होता तो भैया राम मुझे ऐसा काम करने के लिए विवश नहीं करते । मां जानकी ने जब लक्ष्मण जी के सिंसकियो को सुना तो वे तड़प उठी । और लक्ष्मण जी से इस का कारण पूछा तो लक्ष्मण जी के मुंह से कुछ निकल ही नहीं पा रहा था । तो मां जानकी ने सख्त होकर पूछा तो लक्ष्मण जी ने रोते हुए कहा "भाभी मां भैया राम ने आपको वन में छोड़ने का  आदेश दिया है । मां  जानकी को बहुत बड़ा आघात पहुंचा , पर उन्होंने अपने आप को सम्भाल लिया और सारी बातें स्पस्ट कहने को बोली जब सारी बात लक्ष्मण जी ने मां जानकी को बताया तो मां जानकी को अपने भाग्य को कोसने का मन किया । वे लक्ष्मण जी से बोली" पुत्र लक्ष्मण मैने तो सबके सामने अग्नि परीक्षा दिया था  । उसके बाद भी मेरे स्वामी ने मुझे इतनी बड़ी सजा दी ।"                        सोच के अथाह सागर में डुबी मां जानकी ने यह कभी सोचा भी नहीं था कि नियति उनके साथ ऐसा खेल  खेलेगी और वह भी इस हालात मे मैं इस निर्जन वन मे अकेली कैसे रहूंगी । उन्होंने लक्ष्मण जी से कहा " पुत्र लक्ष्मण मेरी दशा तो देखो मैं ऐसे हालात मे  वन निर्जन मे कैसे रह सकती हूं । "अपने  पुत्र को यह आप क्या देख ने को बोल रही है ।मैंने तो आज तक आपके चरणों के अलावा आपका मुख दर्शन भी नहीं किया है । भाभी मां आप मुझे अपने आप से दूर मत करो मैं आप के साथ रह कर आपकी सेवा करुंगा। " तब मां जानकी ने कहा"नियति ने मुझे सजा दी है तो इसे भोगने की अधिकारी भी मैं ही हूं । पुत्र लक्ष्मण तुम जाओ अपने भैया का ध्यान रखना । मुझे मेरे कर्मों का फल मुझे भोगने दो ।" ऐसा कह कर मां जानकी तेज कदमों से चलती हुई लक्ष्मण के आंखों से ओझल हो गई ।                                        दोस्तों यह कहानी आप को कैसी लगी दो शब्द कमेंट बॉक्स मे जरूर लिखें धन्यवाद लेखक- भरत गोस्वामी                                 

Comments

  1. बहुत सुन्दर कहानी

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  2. परमात्मा बड़ा दयालु है,उसके क्रोध में भी कल्याण छुपा होता है।

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