BHARAT HANUMAN MILAP भरत - हनुमान मिलाप A RILIGIOUS STORY

यह कहानी रामायणिक प्रसंग पर आधारित है । परिस्थितियां भले ही विपरीत हो पर दो महावीरों का यह मिलाप कोई साधारण मिलाप नहीं था ।भरत जी के चरित्र से जुड़ीं यह कहानी लोक कथाओं में चर्चित है ।यह उस वक्त का प्रसंग है जब हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने द्रोणागिरी पर्वत पर गये थे ।                                             जब हनुमान जी ने देखा कि यहां तो यह ज्ञात करना बहुत ही मुश्किल है कि इन वृक्षो और झाड़ियों में संजीवनी बूटी का पेड़ कौन सा है । तो वे बहुत परेेेशान  हो गए । लंकापति अपने माया जाल से पुरे  द्रोणागिरि पर्वत को भ्रमित कर दिया था ।ताकि हनुमान जी बूूूटी ना पा सके  और समय से ना पहुंचे तो लक्ष्मण जी को वे लोग बचा ना सके‌।बल और बुद्धि के अग्रणी हनुमान जी तो  बिना विलम्ब किए ,समय से  लंका पहुंचना चाहते थे । उन्होंने पुरा द्रोणा गिरी पर्वत को उखाड़ लिया और लंंका की ओर  चल पड़े ।                                                        अयोध्या नगर  से बाहर भरत जी ने अपना आश्रम बना रखा था जहां वे अपने भाई राम की चरण पादुका रख कर पुजन अर्चन किया करते थे। उनकी यह प्रतिज्ञा थी कि जब तक भाई राम अयोध्या से नहीं आयेंगे ।तब तक  हम भी नगर में प्रवेश नहीं करेंगे।  और एक संन्यासी का जीवन व्यतीत करेंगे । दूूर से ही अत्यंत भयंकर आवाज सुनकर भरत जी को शंका हुई कि कोई राक्षस अयोध्या की ओर  भयानक गति से आ रहा  है । उसेेेे रोकने के लिए  उन्होंने पास ही पड़े एक कुशा को अपने बाण पर सन्धान करके उस ओर छोड़ दिया । उस कुशा बाण  के प्रभाव से  हनुमानजी पर्वत सहित पृथ्वी पर आ गिरे ।   अनायास ही उनके मुुह से   हे राम हे राम निकल रहा था ।    जब भरत जी ने एक अजनबी आदमी के मुह से अपने भाई राम   के नाम का उच्चारण सुना तो बेतहाशा दौड़कर वहां पहुंचे ।
                    वहां पहुंच कर जब भरत जी  ने  एक विशेष व्यक्ति को अपने भाई राम के नाम का उच्चारण करते हुए देखा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने उस व्यक्ति को सहारा दे कर उठाया ।                          वहां एक अद्भुत चमत्कार हो गया ।भरत जी के द्वारा हनुमान जी के शरीर को छूते ही हनुमानजी के शरीर का दर्द बिल्कुल गायब हो गया । हनुमानजी जी आश्चर्य से भरत जी को देखने लगे और सोचने लगे की यह कौन महात्मा है, जिनके छूते ही मेरे शरीर का सारा दर्द गायब हो गया। तब उन्होंने भरत जी से पुछा की हे महात्मा आप कौन हैं ।आप के हाथ के स्पर्श मात्र से  मेरी सारी पीड़ा दूर हो गई । मुझे क्यों ऐसा लगता है कि मैं बहुत पहले से आपको  जानता हूं ।आप से मेरा  बहुत गहरा संबंध है ।     ‌                                       तब भरत जी ने कहा "भैया,  मैं भैया राम का अनुज भरत हूं । हे महां मानव आपको देख कर मुझे भी कुछ,ऐसा ही प्रतीत होता है कि मैं आपको पहले से ही जानता हूं । हे महां मानव आप  इस दशा में मेरे कारण ही आये हो । आप की इधर आने की गति इतनी भयंकर थी कि मैंने सोचा कोई राक्षस  नगर नष्ट कर ने के उद्देश्य से इधर आ रहा है। इस लिए मैंने अपने बाण  से आप को धायल कर दिया । अपने बड़े भाई का नाम सुन कर मैं दौड़ा चला आया । मेरा मन बहुत घबरा रहा है । आप शीघ्र ही अपना परिचय दिजी ए । तब हनुमानजी  ने कहा मैं प्रभु श्रीराम का दूत हनुमान हूं ।                                              हनुमान के इतना  कहते ही भरत जी ने हनुमानजी को गले लगा लिया और उनके आंखों से अश्रु धारा बहने लगी ।तब हनुमान जी ने संक्षिप्त में सारी बातें बताई   ऐसी  स्थिति पैदा हो जाने के कारण मैं   संजीवनी  बूटी लाने द्रोणागिरि पर्वत गया था ।  तब भरत जी बहुत ही विनम्र भाव से कहा भैया हनुमान आप तनिक चिंता ना करो ।आप पर्वत धारण करके मेरे बाण पर बैठो मैं पलक झपकते ही आपको लंका पहुंचा देता हूं ।                 ‌             हनुमानजी को आश्चर्य  का ठिकाना ना रहा ।वे भरत जी का मुख देखने लगे । उनकी आंखें नम हो गई ।और अनायास ही उनके मुख से निकल पड़ा। "भरत जी आज आप से मील कर मैं धन्य हो गया ।आज मुझे मालूम पड़ा कि मैं कोई भी काम कर के आता था तो मेरे स्वामी कहतै थे कि भरत के समान बलवान हो ।आज मैंने साक्षात् देख लिया । आप केवल मुझे जाने की आज्ञा देवे । मैं समय से लंका पहुंच जाऊंगा । भरत जी ने एक बार हनुमान जी को फिर से गले से लगा कर विदा किया  । हनुमानजी ने पर्वत को उठाया और तीव्र गति से लंका की ओर प्रस्थान कर दिया ।                                            दोस्तों कहानी कैसी लगी दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें । और अपने दोस्तों को पढ़ाइए  बहुत बहुत धन्यवाद ।लेखक ----भरत गोस्वामी

Comments

  1. बहुत ही मार्मिक और प्रेरणादायी कहानी लगी।

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