NIDHIVAN EK ADBHUT RAHSHYA निधिवन एक अद्भुत रहस्य A RILIGIOUS STORY
प्रकृति भी जिसके वश मे हो एक अद्भुत और शत प्रतिशत सत्य जो सदियों से चली आ रही परंपरा को निभाते रहा है ।श्री राधाकृष्ण के इस प्रेम सन्दर्भ को हम आप के समक्ष एक कहानी के रूप में रख रहे हैं ।
निधिवन अपने आप में एक रहस्य मयी स्थान है ।जो भगवान श्री कृष्ण का सबसे प्रिय स्थान है । जहां कुछ लोगों का कहना हैैै कि प्रेम से उन्मत्त होकर गोपियां भगवान श्री कृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानती थी । उनसे पल भर की दूरी या देरी उनको सालों के समान लगती थी । उनकी निगाहें हमेशा चन्द्रमा के समान शीतल मन्द मन्द मुस्कान से भरे
होठों वाले ,सावन की धटायो के सदृश उनका रंग रुप ,कमल के पंखुड़ियों से भी सुंदर उनके नयन , सैकड़ों सूर्यो के तेज से भी ज्यादा तेज उनका मुख , वाणी में वो मधुरता की कोयल भी शरमा जाये , अपने शीश पर छोटे छोटे मयुर पंख धारण किए हुए भगवान श्रीकृष्ण को ढूंढती रहती थी ।यदि वो पल भर के लिए भी दूर हो जाय तो पानी से अलग हुई मछली की तरह तड़प उठती थी । उधर वैसे ही सभी गोपीकाओं में श्रेष्ठ श्री राधा रानी की तो बात ही कुछ और थी । सुन्दरता की साक्षात् मुर्ति, सैकड़ों रति भी उनके सामने तुच्छ पड़ जाय ,ऐसी बला की खूबसूरत, गौर वर्ण,मंझला कद, झील सी गहरी सुंदर सुंदर नयनों वाली , घुंघराले घुंघराले रेशम की तरह बालों वाली,छोटे छोटे सुंदर हाथों एवं छोटे छोटे पैरों वाली , नागिन की तरह मद मस्त चाल जिसे देखकर पल भर के लिए भगवान श्रीकृष्ण भी अपनी सुदध बुद्ध को बैठते थे । जब वे आमने सामने होते थे तो दोनों एक दूसरे को घंटों तक ऐसे निहारते थे जैसे ऐसी चीज देख रहे हो जो जीवन में कभी देखा ही नहीं हो । दोनों के नयन एक दूसरे में ऐसे उलझ जाते जैसे अथाह सागर में गोते लगा रहे हो । उन्हें यह भी सुदध नहीं होती कि अभी दिन है या रात ।भगवान श्रीकृष्ण ,श्री राधामय हो जाते और श्री राधा रानी श्री कृष्ण मय हो जाती । सैंकड़ों पल ऐसे बीत जाते जैसे अभी अभी मिले हो ।इन दोनों युगल प्रेमियों की ये तन्द्रा तब टूटती जब अन्य गोपियों के हंसी के ठहाके इन दोनों के कानों तक पहुंचते । फिर दोनों शरमा कर एक दूसरे को ऐसे देखते जैसे दोनों एक दूसरे को छुप कर देख रहे हो । लुका छिपी का यह खेल कई वर्षों से चला आ रहा था । गोपिकाएं भी कुछ कम नहीं भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में ऐसी पागल कि जब बांसुरी की आवाज सुनती तो गाय का आधा दुध निकालना छोड़कर भागी चली आती , तो कोई कुुंए से पानी निकालते वक्त अपने पानी का बर्तन कुंंए पर ही छोड़ कर चली आती , तो कोई आधा श्रृंगार छोड़ कर चली आती , तो कोई आधा खाना छोड़ कर चली आती । इन सभी युुुगल प्रेमियों का मिलने का मात्र स्थान था निधि वन । सभी गोपीकाओं को यह मालूम था कि यदि मयुर पंख धारण करने वाले सुमधुर भाषी भगवान श्रीकृष्ण यदि मिलेगे तो वह स्थान निधिवन ही होगा ।क्योकि निधिवन भगवान श्रीकृष्ण का सबसे प्रिय स्थान था। जो आज भी ज्यो का त्यो है । जिस प्रकार सदियों पहले था । उस वन कि कुछ ख़ासीयत है जो आज भी बरकरार है । धरती पर पेड़ो की हजारों प्रजातियां हैं । पर निधिवन में मात्र भगवान विष्णु की परम प्रिय तुलसी के पेड़ है । जो किसी मनुष्य या देवता द्वारा रोपी नहीं गई है ।सत प्रतिशत नैसर्गिक है ।और तुलसी के अलावा एक घास का तृण भी नहीं है । दुसरी ख़ासीयत यह है कि सूर्यास्त से पहले पशु पक्षी, कोई भी जीव जन्तु वहां रूक नहीं पाता ,यहां तक कि चिटियां भी शाम होते-होते वन के विपरित दिशा में जाती दिखाई देती है । कई लोगों का कहना है कि ये सारे तुलसी के पेड़ रात्रि के समय गोपीकाओं का रूप धारण कर लेती है ।और भगवान श्रीकृष्ण अनेक रूपों में सभी गोपीकाओं के साथ हास परिहास करते हैं । सभी गोपीकाओं को यही लगता है कि मेरे कृष्ण केवल मेरे पास है । भगवान श्रीकृष्ण भी कई रूपों में हर गोपीकाओं के साथ होते हैं । और सारा वातावरण प्रेममय हो जाता है । निधिवन के इस रहस्य को कई लोगों ने जानने की कोशिश की ,वो या तो मृत पाये गये या ऐसी स्थिति में नहीं रहे कि किसी से कुछ कह पाये । कुछ पुराने और आस्थावान लोगों का कहना है कि हमने के वल लोगों की हंसी ठिठौली की आवाजें सुनी है । निधिवन का यह रहस्य आज भी एक रहस्य ही होकर रह गया है । राधे राधे जय श्री राधे । दोस्तों यह कहानी आप को कैसी लगी दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें । बहुत बहुत धन्यवाद लेखक-भरत गोस्वामी ।
बहुत-बहुत धन्यवाद
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