MAHIMA MATA MAIHAR KI महिमा माता मैहर की A RILIGIOUS STORY
हमारी पृथ्वी पर ऐसे ऐसे चमत्कार घटित हुए हैं ।जो अपने आप में एक मिशाल है । जिनके बारे में सोच कर मनुष्य अचंभित हुए बिना नहीं रह सकता । इन्हीं चमत्कारों के श्रृंखला में एक और नाम आता है ।भारत वर्ष में प्रसिद्ध एक बहुत ही पुराना मंदिर माता मैहर का एक मंदिर , जो कहा जाता है की मां के 52 शक्तिपीठो में से एक है ।जिस मंदिर का रहस्य आज तक एक रहस्य ही बना हुआ है ।
मां के 52 शक्ति पीठों में से यह भी एक शक्ति पीठ माना जाता है ।कई लोगों का कहना है कि मां का हार इस जगह पर गीरा था । तबसे त्रिकुट पर्वत पर स्थित यह मंदिर माता मैहर का मंदिर के नाम से मशहूर है । सदियां बीत गई । मां के मंदिर की कृति में कोई फर्क नहीं पड़ा है । लोगों का कहना है कि जब मां का प्रभाव प्रकाश में आया । तत्कालीन राजाओं और महाराजाओं में प्रथम पूजा की एक होड़ सी लग गई । सदियों से चली आ रही इस प्रथा का अन्त महोबा के राजकुमार वीर आल्हा ने किया । जो राजा शक्तिशाली होता था ।सबसे पहले पूूजा अर्चना वही करता था । इस तरह वाद-विवाद का भय बना रहता था ।जो मां को पसंद नहीं था । त्रिकूट पर्वत पर मां का दरबार खचा-खच भरा हुआ था । एक से बढ़कर एक वीर राजा वहां इकट्ठा हुए थे ।सबको अपने अपने शोर्य और पुरुषार्थ पर भरोसा था ।कि प्रथम पूजा तो मैं ही करूंगा । तीन दिन बीत गए आपसी सहमति से बात बनते नहीं दिख रही थी । आपस में तनाव का माहौल बनता जा रहा था । सभी राजाओं ने अपने शोर्य और पुरुषार्थ का गायन अपने अपने भांटो (वह व्यक्ति जो अपने राजा का शोर्य गान करता हैै) द्वारा करवा रहे थे । स्थिति यह आ गई कि वहां युद्ध की सम्भावना बढ़ने लगी । यदि युद्ध हुआ तो सब आपस में लड कर मर जाते और मां का मंदिर बीरान हो जाता । कोई एक दूसरे से शोर्य और पुरुषार्थ में कुछ कम न था ।इस विकट समस्या का हल किसी के पास न था । इस समस्या का हल न निकलते देख मां मैहर को स्वयं प्रकट होना पड़ा ।वह नहीं चाहती थी कि यहां कोई खून खराबा हो और मेरा मंदिर बदनाम हो जाय ।मां ने सर्व प्रथम सबको शान्त करवाया और कहा कि "आप लोग शांत रहे इस समस्या का हल हम खुद निकालेगे । " मां ने एक पात्र दिया और कहा कि " जो भी इस पात्र को अपने रक्त से भर देगा । वही व्यक्ति मेरे प्रथम पूजा का अधिकारी होगा । " । सभी वीर राजाओं ने मां के इस आदेश का पालन किया । और अपने अपने भाग्य की आज- माइश करने लगे । पर कोई भी राजा सफल नहीं हो पाया । पूरी छावनी में शर्मिंदगी फैल गई । सब राजाओं केेे लिए एक शर्म की बात थी । सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे । वही पर महोबा गढ़ के दो वीर राजकुमार आए हुए थे ।जो बहुत ही साहसी थे ।बड़े भाई आल्हा ने छोटे भाई रूदल सिंह सेकहा "रूदल यहां बात मान सम्मान की आ गई है। मैं इस शर्मिंदगी को बर्दाश्त नहीं कर सकता ।अब आप महोबा गढ़ का राज सम्भालो ,मै अपने प्राण देकर भी मां के बचन को पूरा करूंगा ।" ऐसा कह कर वीर आल्हा ने अपने ही तेगा से अपना सर उड़ा लिया । और वह मां का दिया हुआ पात्र भरकर मां को भेट किया । मां प्रसन्न हो गई उन्होंने उसे पहले जैसा किया और आल्हा को अमरत्व का वरदान दिया । और खुश हो कर बोली " आज से मैं तुम्हें प्रथम पूजा का अधिकार देती हूं ।इस लोक में विधि के नियति के समय के अनुसार तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी। पर मैंने तुम्हें अमरत्व का वरदान दिया है ।वह व्यर्थ नहीं जाएगा मृत्यु हो ने के बाद भी प्रथम पूजा का अधिकार तुम्हारा ही होगा। मैं तुम्हें बचन देती हूं ।जब तक यह पृथ्वी सलामत रहेगी । प्रथम पूजा तूम्ही करोगे । इस नियम में कोई भी व्यक्ति किसी तरह का बाधा उत्पन्न करने की कोशिश करेगा ।वह मृत्यु का भागी होगा ।" आज सदियों से जन जन में यह बात प्रसिद्ध है कि मां ने आल्हा को प्रथम पूजा का अधिकार दिया है । लोक कथाओं में चर्चित इस कहानी का लेखक भी असमंजस की स्थिति में वहां पहुंच गया ।यह सोच कर की कहां तक सच्चाई है ।वह इधर उधर भटकते रहने के बाद रात को चार बजे मंदिर पहुंच गया ।वह जब दर्शन के लिए कतार में खड़ा हुआ तो आगे पहले से ही छ: आदमी कतार में लगे हुए थे । सब उत्सुक थे कि हकिकत जानने को मिलेगा । सुबहसुबह जब मां का मंदिर का पट खुला तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा ।मां की पूजा अर्चना पहले से ही हुआ था । सदियों पुरानी कहानी आज भी उतना ही सच है , जितना पहले थी। सदियां बीत गई । आज भी लाखों श्रद्धालु वहां आज भी इस बात को मन में ले कर जाते हैं कि बात कहां तक सच है । कई लोगों ने इस बात को आजमाने के चक्कर में अपनी जान गंवा दिया । देश विदेश की कई लोगों ने इस रहस्य को जानने की कोशिश की पर वह सफल नहो सके ।आज तक यह रहस्य एक रहस्य ही बना हुआ है । दोस्तों यह कहानी आप को कैसी लगी कमेंट बॉक्स में दो शब्द जरूर लिखें और अपने दोस्तों को पढ़ाइए। जय मां मैहर वाली । लेखक--भरत गोस्वामी
मां के 52 शक्ति पीठों में से यह भी एक शक्ति पीठ माना जाता है ।कई लोगों का कहना है कि मां का हार इस जगह पर गीरा था । तबसे त्रिकुट पर्वत पर स्थित यह मंदिर माता मैहर का मंदिर के नाम से मशहूर है । सदियां बीत गई । मां के मंदिर की कृति में कोई फर्क नहीं पड़ा है । लोगों का कहना है कि जब मां का प्रभाव प्रकाश में आया । तत्कालीन राजाओं और महाराजाओं में प्रथम पूजा की एक होड़ सी लग गई । सदियों से चली आ रही इस प्रथा का अन्त महोबा के राजकुमार वीर आल्हा ने किया । जो राजा शक्तिशाली होता था ।सबसे पहले पूूजा अर्चना वही करता था । इस तरह वाद-विवाद का भय बना रहता था ।जो मां को पसंद नहीं था । त्रिकूट पर्वत पर मां का दरबार खचा-खच भरा हुआ था । एक से बढ़कर एक वीर राजा वहां इकट्ठा हुए थे ।सबको अपने अपने शोर्य और पुरुषार्थ पर भरोसा था ।कि प्रथम पूजा तो मैं ही करूंगा । तीन दिन बीत गए आपसी सहमति से बात बनते नहीं दिख रही थी । आपस में तनाव का माहौल बनता जा रहा था । सभी राजाओं ने अपने शोर्य और पुरुषार्थ का गायन अपने अपने भांटो (वह व्यक्ति जो अपने राजा का शोर्य गान करता हैै) द्वारा करवा रहे थे । स्थिति यह आ गई कि वहां युद्ध की सम्भावना बढ़ने लगी । यदि युद्ध हुआ तो सब आपस में लड कर मर जाते और मां का मंदिर बीरान हो जाता । कोई एक दूसरे से शोर्य और पुरुषार्थ में कुछ कम न था ।इस विकट समस्या का हल किसी के पास न था । इस समस्या का हल न निकलते देख मां मैहर को स्वयं प्रकट होना पड़ा ।वह नहीं चाहती थी कि यहां कोई खून खराबा हो और मेरा मंदिर बदनाम हो जाय ।मां ने सर्व प्रथम सबको शान्त करवाया और कहा कि "आप लोग शांत रहे इस समस्या का हल हम खुद निकालेगे । " मां ने एक पात्र दिया और कहा कि " जो भी इस पात्र को अपने रक्त से भर देगा । वही व्यक्ति मेरे प्रथम पूजा का अधिकारी होगा । " । सभी वीर राजाओं ने मां के इस आदेश का पालन किया । और अपने अपने भाग्य की आज- माइश करने लगे । पर कोई भी राजा सफल नहीं हो पाया । पूरी छावनी में शर्मिंदगी फैल गई । सब राजाओं केेे लिए एक शर्म की बात थी । सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे । वही पर महोबा गढ़ के दो वीर राजकुमार आए हुए थे ।जो बहुत ही साहसी थे ।बड़े भाई आल्हा ने छोटे भाई रूदल सिंह सेकहा "रूदल यहां बात मान सम्मान की आ गई है। मैं इस शर्मिंदगी को बर्दाश्त नहीं कर सकता ।अब आप महोबा गढ़ का राज सम्भालो ,मै अपने प्राण देकर भी मां के बचन को पूरा करूंगा ।" ऐसा कह कर वीर आल्हा ने अपने ही तेगा से अपना सर उड़ा लिया । और वह मां का दिया हुआ पात्र भरकर मां को भेट किया । मां प्रसन्न हो गई उन्होंने उसे पहले जैसा किया और आल्हा को अमरत्व का वरदान दिया । और खुश हो कर बोली " आज से मैं तुम्हें प्रथम पूजा का अधिकार देती हूं ।इस लोक में विधि के नियति के समय के अनुसार तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी। पर मैंने तुम्हें अमरत्व का वरदान दिया है ।वह व्यर्थ नहीं जाएगा मृत्यु हो ने के बाद भी प्रथम पूजा का अधिकार तुम्हारा ही होगा। मैं तुम्हें बचन देती हूं ।जब तक यह पृथ्वी सलामत रहेगी । प्रथम पूजा तूम्ही करोगे । इस नियम में कोई भी व्यक्ति किसी तरह का बाधा उत्पन्न करने की कोशिश करेगा ।वह मृत्यु का भागी होगा ।" आज सदियों से जन जन में यह बात प्रसिद्ध है कि मां ने आल्हा को प्रथम पूजा का अधिकार दिया है । लोक कथाओं में चर्चित इस कहानी का लेखक भी असमंजस की स्थिति में वहां पहुंच गया ।यह सोच कर की कहां तक सच्चाई है ।वह इधर उधर भटकते रहने के बाद रात को चार बजे मंदिर पहुंच गया ।वह जब दर्शन के लिए कतार में खड़ा हुआ तो आगे पहले से ही छ: आदमी कतार में लगे हुए थे । सब उत्सुक थे कि हकिकत जानने को मिलेगा । सुबहसुबह जब मां का मंदिर का पट खुला तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा ।मां की पूजा अर्चना पहले से ही हुआ था । सदियों पुरानी कहानी आज भी उतना ही सच है , जितना पहले थी। सदियां बीत गई । आज भी लाखों श्रद्धालु वहां आज भी इस बात को मन में ले कर जाते हैं कि बात कहां तक सच है । कई लोगों ने इस बात को आजमाने के चक्कर में अपनी जान गंवा दिया । देश विदेश की कई लोगों ने इस रहस्य को जानने की कोशिश की पर वह सफल नहो सके ।आज तक यह रहस्य एक रहस्य ही बना हुआ है । दोस्तों यह कहानी आप को कैसी लगी कमेंट बॉक्स में दो शब्द जरूर लिखें और अपने दोस्तों को पढ़ाइए। जय मां मैहर वाली । लेखक--भरत गोस्वामी
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