SIKANDAR KA BACHPAN सिकंदर का बचपन A HISTORICAL STORY
महान सिकंदर को कौन नहीं जानता, उन्हों ने अपने शोर्य और कुशाग्र बुद्धि से पूरी दुनिया पर राज किया । लोक कथाओं में चर्चित उनके बचपन से जुड़ी कुछ खास बातें जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं ।
कबिलो का एक काफिला कुछ घोड़ों , कुछ ऊंंटो ,कुछ खच्चरो पर सामान लादे रात के अंधेरे में कहीं बढा जा रहा था । कुछ देर बाद सूरज के किरणों ने रात के अंधेरे आंचल को उजाले में बदलना शुरू कर दिया । पौ फटते ही सरदार चिल्लाया "हम आज यही विश्राम करेंगे । यहां पर्याप्त पीने का पानी, पेड़ों की छाया सब उपलब्ध है । आप सब यहीं विश्राम करें, शाम होते-होते आप लोगों को आगे क्या करना है उसकी जानकारी दी जाएगी ।सब लोग सरदार की बात को सुनकर जो जहां था वहीं रूक कर विश्राम करने लगा । दोपहर के बाद वहां से एक घोड़े का सौदागर गुजर रहा था । उसने कई शौकिन घोड़े रखेेंथे ।जो उन घोड़ों को देखता तो देखते रह जाता ।उसके पास एक से बढ़कर एक घोड़ों की भरमार थी । सौदागर ने सोचा क्यों ना जरा कबिले के सरदार से मील लिया जाय ।हो सकता है, सरदार को घोड़ों की जरूरत हो और मेरे कुछ घोड़े बीक जाय ।ऐसा सोच कर उसने अपना रूख कबिले की तरफ मोड़ लिया । वहां जब कबिले केेेे सरदार के सामने रूबरू हुआ ।तो सरदार ने बाइज्जत उसकी मेहमान नवाजी की ,और रूबरू होने कारण पूछा।इस पर सौदागर ने अपने आने का कारण बताया । उसकी बातों पर सरदार बहुत खुश हुआ ।सौदागर के पास कई नस्ल के घोड़े थे । उसने घोड़ों के बारे में जानकारी देनी शुरू कर दिया ।कौन सा घोड़ा कौन से देश से ताल्लुक रखता है । कौनसे-कौनसे घोड़े की क्या विशेषता है । सौदागर जब सब बयां कर लें गया तो एक घोड़े के पास आकर उसकी जुबान रूक गई । सरदार से नहीं रहा गया वह पूछ ही बैठा "क्यों भाई इस घोड़े के बारे में कुछ नहीं बताओगे ?" " क्या बताऊं सरदार इस घोड़े ने तो आज तक किसी को अपनी सवारी ही ना करनेे दी । यह बिगड़ैल घोड़ा है इसलिए इसकी बात किसी से नहीं करता । अब सरदार उस घोड़े के बारे में जानने के लिए वेताब हो गया । तब सौदागर ने सरदार से उस घोड़े के बारे में जानकारी दी और कहा कि "आज तक वह मर्द पैदा नहीं हुआ जो इसकी सवारी कर सके इस लिए मैंने भी यह सोच लिया है कि जो कोई मर्द इस घोड़े की सवारी कर लेगा उसको यह अनमोल घोड़ा मुफ्त में दिया जायेगा ।" सौदागर की बात सुनकर कर सरदार को बड़ी तौहीन महसूस हुई ।पर उसने अपने गुस्से पर काबू रखा ।उसे अपने कबिले केे जांवांज घुड़सवारों पर भरोसा था ।एक हल्की सी मुस्कान के साथ सरदार ने सौदागर से कहा "तब तो हम अवश्य इस घोड़े को अपनी खिदमत का एक मोका जरूर देना चाहेंगे । " सरदार ने तुरंत अपने जांवांज घुड़सवारों को इस धोड़े की सवारी करने का आदेश दिया । सभी घुड़सवार एक बार अपनी अपनी कलाकारी दिखला कर थक गए पर कोई घोड़े को काबू ना कर सका । पूरा कबीला इस तमाशे को देख रहा था । अब सरदार को और शर्मिंदगी महसूस हुई ।पुुुरे कबिले की इज्जत का सवाल था । अपने पिता के साथ मौजूद एक बालक इस तमाशे को देख रहा था । उससे नहीं रहा गया और उसने अपने पिता से घोड़े की घुड सवारी करने की इजाजत मांगी । सरदार ने उस बालक को इजाजत नहीं दी और कहां कि" आप अभी बच्चे हैं इस बिगड़ैल घोड़े को कैसे काबू कर सकते हैं।" पर उस वक्त उस बालक ने किसी की बात नहीं सुनी और घोड़े के पास जाकर पहले उसने घोड़े के माथे को चूम लिया । और प्यार से उसको सहलाने लगा । फिर उसने घोड़े की कमान संभाली और प्यार से सुर्य के बिपरीत दिशा में ले गया ।जिससे घोड़ा अपनी परछाई ना देख सके और फिर एक बार हवा में कलाबांजी कर वह बालक घोड़े पर सवार हो गया । यह बालक कोई और नहीं , शौर्य वीर विश्व बिजेता सिकंदर था । कुछ दिन बाद सरदार को यह चिंता सताने लगी । कि मेेेरा बेेेटा इतना होशियार है । मुझे उसकी शिक्षा दिछा के बारे में सोचना चाहिए । यह सोच कर सरदार ने कई हाफिज साहेबान से बात चीत की पर सिकंदर के एक ज़िद ने किसी को टिकने नहीं दिया । कोई भी हाफिज आता सिकंदर उससे यही बात कहता कि मैं एक प्रश्न पुछूगा ,यदि आप उसका सही उत्तर दे पाये तो ही मैं आपसे तामिल हासिल करूंगा ।और उसका प्रश्न होता "मैं दुनिया का बादशाह बनना चाहता हूं, आप के पास इसका कोई जवाब है ।" कितने मौलाना और हाफिज आए , पर किसी ने उस बालक का जवाब नहीं दिया । सब यहीं कहीं कर निकल जाते कि यदि मैं जानता कि दुनिया का बादशाह कैसे बना जाता है । तो मैं खुद दुनिया का बादशाह बन जाता । तुम्हें क्यों बताता । सरदार बेटे की जिंदगी को लेकर बहुत परेशान था । वह कई जगह अपने बेटेे को लेकर गया पर हर जगह उस को वही जवाब मिला । परेशान होकर उसने अपने बेटे की जिंदगी ईश्वर के भरोसे छोड़ दिया । कुछ दिन बाद सरदार को अपने बेटे की जिंदगी को लेकर और परेशानी झेलनी पड़ी । पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था । एक दिन सिकंदर की जिंदगी में एक हाफिज साहेब आये ।और उन्होंने स्वयं बालक के प्रश्न का उत्तर दे ने की जिम्मेदारी ली । उन्होंने स्वयं पन्द्रह दिनों का समय मांगा ।सरदार बहुत खुश हुआ । फिर पन्द्रह दिन बाद सरदार और बालक सिकंदर दोनों हाफिज साहेब केे यहां पहुंचे । हाफिज साहेब ने सात दिन का और समय मांगा ।सरदार और बालक सिकंदर उस दिन वापस आ गए । हाफिज साहेब बहुत ही नेक दिल इंसान थे । और पांच समय के नमाजी थे । अल्लाह से दुआ करते हैं " या अल्लाह आप इस मासुम की आरजू पूरी कर । " उस दिन सातवें दिन की आखिरी नमााज थी । हाफिज साहेब बहुत परेशान थे । सोच रहे थे कि बालक को क्या जबाव देंगे । उन्होंने अल्लाह से मिन्नतें की ।"या अल्लाह रहम फरमा मुझे उस बालक के प्रश्न का कोई इल्म दे । तब अल्लाह के तरफ से आकाशवाणी हुई " तू मेरा नेक वन्दा है । मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगा जा मैं तुम्हारी आरजू पूरी करता हूं । जब बालक सामने होगा ।उस वक्त जो अल्फाज तुम्हारे जुबां पर होगा । वही अल्फाज बालक के प्रश्न का उत्तर होगा । जब बालक सिकंदर हाफिज साहेबान के रूबरू हुआ । तो हाफिज साहेब केे अल्फाज सिकंदर के कानों में शीशे की तरह उतर गए । सिकंदर बहुत खुश हुआ । और हाफिज साहिबान के चरणों में नतमस्तक हो गया । दोस्तों यह कहानी आप को कैसी लगी दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखीएगा । और अपने दोस्तों को पढ़ाइएगा बहुत बहुत धन्यवाद । लेखक--भरत गोस्वामी
कबिलो का एक काफिला कुछ घोड़ों , कुछ ऊंंटो ,कुछ खच्चरो पर सामान लादे रात के अंधेरे में कहीं बढा जा रहा था । कुछ देर बाद सूरज के किरणों ने रात के अंधेरे आंचल को उजाले में बदलना शुरू कर दिया । पौ फटते ही सरदार चिल्लाया "हम आज यही विश्राम करेंगे । यहां पर्याप्त पीने का पानी, पेड़ों की छाया सब उपलब्ध है । आप सब यहीं विश्राम करें, शाम होते-होते आप लोगों को आगे क्या करना है उसकी जानकारी दी जाएगी ।सब लोग सरदार की बात को सुनकर जो जहां था वहीं रूक कर विश्राम करने लगा । दोपहर के बाद वहां से एक घोड़े का सौदागर गुजर रहा था । उसने कई शौकिन घोड़े रखेेंथे ।जो उन घोड़ों को देखता तो देखते रह जाता ।उसके पास एक से बढ़कर एक घोड़ों की भरमार थी । सौदागर ने सोचा क्यों ना जरा कबिले के सरदार से मील लिया जाय ।हो सकता है, सरदार को घोड़ों की जरूरत हो और मेरे कुछ घोड़े बीक जाय ।ऐसा सोच कर उसने अपना रूख कबिले की तरफ मोड़ लिया । वहां जब कबिले केेेे सरदार के सामने रूबरू हुआ ।तो सरदार ने बाइज्जत उसकी मेहमान नवाजी की ,और रूबरू होने कारण पूछा।इस पर सौदागर ने अपने आने का कारण बताया । उसकी बातों पर सरदार बहुत खुश हुआ ।सौदागर के पास कई नस्ल के घोड़े थे । उसने घोड़ों के बारे में जानकारी देनी शुरू कर दिया ।कौन सा घोड़ा कौन से देश से ताल्लुक रखता है । कौनसे-कौनसे घोड़े की क्या विशेषता है । सौदागर जब सब बयां कर लें गया तो एक घोड़े के पास आकर उसकी जुबान रूक गई । सरदार से नहीं रहा गया वह पूछ ही बैठा "क्यों भाई इस घोड़े के बारे में कुछ नहीं बताओगे ?" " क्या बताऊं सरदार इस घोड़े ने तो आज तक किसी को अपनी सवारी ही ना करनेे दी । यह बिगड़ैल घोड़ा है इसलिए इसकी बात किसी से नहीं करता । अब सरदार उस घोड़े के बारे में जानने के लिए वेताब हो गया । तब सौदागर ने सरदार से उस घोड़े के बारे में जानकारी दी और कहा कि "आज तक वह मर्द पैदा नहीं हुआ जो इसकी सवारी कर सके इस लिए मैंने भी यह सोच लिया है कि जो कोई मर्द इस घोड़े की सवारी कर लेगा उसको यह अनमोल घोड़ा मुफ्त में दिया जायेगा ।" सौदागर की बात सुनकर कर सरदार को बड़ी तौहीन महसूस हुई ।पर उसने अपने गुस्से पर काबू रखा ।उसे अपने कबिले केे जांवांज घुड़सवारों पर भरोसा था ।एक हल्की सी मुस्कान के साथ सरदार ने सौदागर से कहा "तब तो हम अवश्य इस घोड़े को अपनी खिदमत का एक मोका जरूर देना चाहेंगे । " सरदार ने तुरंत अपने जांवांज घुड़सवारों को इस धोड़े की सवारी करने का आदेश दिया । सभी घुड़सवार एक बार अपनी अपनी कलाकारी दिखला कर थक गए पर कोई घोड़े को काबू ना कर सका । पूरा कबीला इस तमाशे को देख रहा था । अब सरदार को और शर्मिंदगी महसूस हुई ।पुुुरे कबिले की इज्जत का सवाल था । अपने पिता के साथ मौजूद एक बालक इस तमाशे को देख रहा था । उससे नहीं रहा गया और उसने अपने पिता से घोड़े की घुड सवारी करने की इजाजत मांगी । सरदार ने उस बालक को इजाजत नहीं दी और कहां कि" आप अभी बच्चे हैं इस बिगड़ैल घोड़े को कैसे काबू कर सकते हैं।" पर उस वक्त उस बालक ने किसी की बात नहीं सुनी और घोड़े के पास जाकर पहले उसने घोड़े के माथे को चूम लिया । और प्यार से उसको सहलाने लगा । फिर उसने घोड़े की कमान संभाली और प्यार से सुर्य के बिपरीत दिशा में ले गया ।जिससे घोड़ा अपनी परछाई ना देख सके और फिर एक बार हवा में कलाबांजी कर वह बालक घोड़े पर सवार हो गया । यह बालक कोई और नहीं , शौर्य वीर विश्व बिजेता सिकंदर था । कुछ दिन बाद सरदार को यह चिंता सताने लगी । कि मेेेरा बेेेटा इतना होशियार है । मुझे उसकी शिक्षा दिछा के बारे में सोचना चाहिए । यह सोच कर सरदार ने कई हाफिज साहेबान से बात चीत की पर सिकंदर के एक ज़िद ने किसी को टिकने नहीं दिया । कोई भी हाफिज आता सिकंदर उससे यही बात कहता कि मैं एक प्रश्न पुछूगा ,यदि आप उसका सही उत्तर दे पाये तो ही मैं आपसे तामिल हासिल करूंगा ।और उसका प्रश्न होता "मैं दुनिया का बादशाह बनना चाहता हूं, आप के पास इसका कोई जवाब है ।" कितने मौलाना और हाफिज आए , पर किसी ने उस बालक का जवाब नहीं दिया । सब यहीं कहीं कर निकल जाते कि यदि मैं जानता कि दुनिया का बादशाह कैसे बना जाता है । तो मैं खुद दुनिया का बादशाह बन जाता । तुम्हें क्यों बताता । सरदार बेटे की जिंदगी को लेकर बहुत परेशान था । वह कई जगह अपने बेटेे को लेकर गया पर हर जगह उस को वही जवाब मिला । परेशान होकर उसने अपने बेटे की जिंदगी ईश्वर के भरोसे छोड़ दिया । कुछ दिन बाद सरदार को अपने बेटे की जिंदगी को लेकर और परेशानी झेलनी पड़ी । पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था । एक दिन सिकंदर की जिंदगी में एक हाफिज साहेब आये ।और उन्होंने स्वयं बालक के प्रश्न का उत्तर दे ने की जिम्मेदारी ली । उन्होंने स्वयं पन्द्रह दिनों का समय मांगा ।सरदार बहुत खुश हुआ । फिर पन्द्रह दिन बाद सरदार और बालक सिकंदर दोनों हाफिज साहेब केे यहां पहुंचे । हाफिज साहेब ने सात दिन का और समय मांगा ।सरदार और बालक सिकंदर उस दिन वापस आ गए । हाफिज साहेब बहुत ही नेक दिल इंसान थे । और पांच समय के नमाजी थे । अल्लाह से दुआ करते हैं " या अल्लाह आप इस मासुम की आरजू पूरी कर । " उस दिन सातवें दिन की आखिरी नमााज थी । हाफिज साहेब बहुत परेशान थे । सोच रहे थे कि बालक को क्या जबाव देंगे । उन्होंने अल्लाह से मिन्नतें की ।"या अल्लाह रहम फरमा मुझे उस बालक के प्रश्न का कोई इल्म दे । तब अल्लाह के तरफ से आकाशवाणी हुई " तू मेरा नेक वन्दा है । मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगा जा मैं तुम्हारी आरजू पूरी करता हूं । जब बालक सामने होगा ।उस वक्त जो अल्फाज तुम्हारे जुबां पर होगा । वही अल्फाज बालक के प्रश्न का उत्तर होगा । जब बालक सिकंदर हाफिज साहेबान के रूबरू हुआ । तो हाफिज साहेब केे अल्फाज सिकंदर के कानों में शीशे की तरह उतर गए । सिकंदर बहुत खुश हुआ । और हाफिज साहिबान के चरणों में नतमस्तक हो गया । दोस्तों यह कहानी आप को कैसी लगी दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखीएगा । और अपने दोस्तों को पढ़ाइएगा बहुत बहुत धन्यवाद । लेखक--भरत गोस्वामी
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