PRABHU YESHU EK AADERSH प्रभु यीशु एक आदर्श एक सुविचार A GOOD THOUGHT
दुनिया में मात्र भारत ही ऐसा देश है जहां सभी धर्मों को एक समान सम्मान दिया जाता है । यहां के लोग सभी धर्मों को अपने हिसाब से मनाते हैं । चाहे होली हो ,या दिवाली, ईद हो , क्रिसमस कोई भी त्योहार हो सब मिल कर जाति भेद भाव छोड़ कर सब सब त्योहार में शामिल होते हैं । ईश्वर के सभी अवतार किसी ना किसी उद्देश्य को लेकर ही हुए ।ऐसे ही एक अवतार का जिक्र हम आज महान शान्ति दूत ,एक अद्भुत चमत्कार से भरे प्रभु यीशु मसीह के चरित्र के एक सुंदर अंश द्वारा करेंगे ।
प्रभु यीशु मसीह का जन्म एक गड़ेरिया परिवार में हुआ था । प्रभु यीशु और प्रभु कृष्ण में कुछ बातें सामान्य थी । प्रभु कृष्ण जिस तरह अहिर यानि यादव जो गौ पालन में दक्ष होते हैं । उसी तरह प्रभु यीशु गडेर के यहां जिन्हें आज पाल कहा जाता है जो भेड़ पालन में दक्ष होते हैं ।उस वक्त छुआ छूत, रंग भेद ,जाति -प्रथा, आदि कुप्रथाएं अपनी चरम सीमा पर थी ।लोग उच्च, निम्न के भेद भाव में बंटे थे । निम्न वर्ग के लोगों दास के अलावा कोई काम नहीं करने दिया जाता था । ना ही उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार था । धार्मिक स्थलों पर प्रवेश वर्जित था। निम्न वर्ग के लोगों को समानता का अधिकार नहीं था । उस समय उच्च वर्ग के लोग निम्न वर्ग के लोगों से काम करवा लेने के वाद मेहनताना राशि देने के बजाय कोड़ों से मारा करते थे । उस वक्त राजा हुआ करते थे ।जिनके यहां उच्च वर्ग की ही सुनवाई होती थी ।निम्न वर्ग का कोई अस्तित्व नहीं था । प्रभु यीशु को यह बातें पसंद नहीं थी ।इन बातों को सोच कर प्रभु यीशु दुखी हो जाया करते थे । इन गंदी कुरीतियों से उबरने के लिए प्रभु यीशु ने शीत- युद्ध शुरू कर दिया। उन्होंने गोर-गरीब लोगों की सेवा करना शुरू कर दिया ।वह इंसान जो अपनी लंबी बिमारी से परेशान था, उसे चंगा कर दिया। धिरे -धिरे लोगों के तकलीफों को दूर करते करते वो गरीबों के मसीहा बन गये । प्रभु यीशु सब से प्यार करते थे । और एक दिन ऐसा आया कि प्रभु यीशु के चमत्कारों की चमक उच्च वर्ग के लोगों तक पहुंची तो वे लोग प्रभु यीशु से जलन रखने लगे । और उनको कैसे नीचा दिखाया जा सके वह प्रयत्न करने लगे । कुरीति और कुप्रथाओं से दुखी प्रभु यीशु को एक दिन मंदिर जाने की इच्छा हुई ।जब वे मंदिर पहुंचे तो मंदिर के द्वारपालो ने उन्हें रोक दिया ।और कहा कि" आप के लिए मंदिर प्रवेश निषेध है" ।उस समय राजतंत्र इतना प्रबल था , कि मंदिर का सारा संचालन प्रबंधन राजतंत्र कार्य समिति ही किया करती थी । वो जिसे चाहती थी उसे ही मंदिर प्रवेश की इजाजत थी ।बाद में जब मंदिर के पुजारियों ने भी प्रवेश का विरोध किया ।और प्रभु यीशु को बहुत खरी-खोटी सुनाई । कहा कि "तुम तो अपने आप को ईश्वर मानते हो ।लोग भी तुम्हें अपना ईश्वर ही मानते हैं । ईश्वर जैसा चमत्कार करते हो । ईश्वर जैसा उपदेश देते हो । और अपने आप को भविष्य वक्ता भी मानते हो । तुम्हें मंदिर में प्रवेश का ख्याल क्यों आ गया । बहुत देर तक वाद संवाद होने के बाद भी जब प्रभु यीशु को प्रवेश नहीं मिला तो वह मंदिर के प्रांगण में ही स्थित एक पेड़ की छांव में बैठ गये ।और मंदिर के तरफ बड़े ही दयनीय दृष्टि से देखने लगें । और उनका यह कार्य जब तक जारी रहा , तब तक कि उनके चेहरे पर एक लम्बी सी मुस्कान नहीं फैल गई । वहां उनके पास स्थित प्रबंधन कार्य समिति के कर्मचारियों और पुजारियों को बडा आश्चर्य हुआ कि कि इस शख्स को हम लोग इतनी देर से खरी खोटी सुना रहे हैं।और यह शख्स नाराज होने के बजाय मुस्कुरा रहा है । कुछ देर बाद जब पुजारियों से नहीं रहा गया तो उन्होंने प्रभु यीशु मसीह से मुस्कुरा ने का कारण पूछा । तब प्रभु यीशु ने कहा " मैं जिस उद्देश्य से यहां आया था ।मेरा वह उद्देश्य पुरा हुआ । मेरे प्रभु ने स्वयं आकर मुझे दर्शन दिया । तुम्हें यकिन ना हो तो तुम स्वयं जाकर देख लो ।" तब पुजारियों का एक दल मंदिर में जाकर वहां देखता है तो देखते ही रह गया वहां से उनके भगवान की प्रतिमा गायब थी । उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ ।ऐसा कैसे हो सकता है । यह तो असंभव है। यह सब प्रभु यीशु मसीह का चमत्कार था ।ईश्वर होते हुए भी उन्होंने अपने आप को कभी ईश्वर नहीं कहा ।वह केवल यही कहते रहे गये कि मैं तो ईश्वर का पुत्र हुं । ( यह था प्रभु यीशु मसीह के चरित्र कथा का एक अंश जो एक अच्छे सुविचार के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत किया गया । दोस्तों यह सुविचार आपको अच्छा लगा हो तो कमेंट बॉक्स में दो शब्द जरूर लिखें । बहुत बहुत धन्यवाद लेखक----भरत गोस्वामी )
प्रभु यीशु मसीह का जन्म एक गड़ेरिया परिवार में हुआ था । प्रभु यीशु और प्रभु कृष्ण में कुछ बातें सामान्य थी । प्रभु कृष्ण जिस तरह अहिर यानि यादव जो गौ पालन में दक्ष होते हैं । उसी तरह प्रभु यीशु गडेर के यहां जिन्हें आज पाल कहा जाता है जो भेड़ पालन में दक्ष होते हैं ।उस वक्त छुआ छूत, रंग भेद ,जाति -प्रथा, आदि कुप्रथाएं अपनी चरम सीमा पर थी ।लोग उच्च, निम्न के भेद भाव में बंटे थे । निम्न वर्ग के लोगों दास के अलावा कोई काम नहीं करने दिया जाता था । ना ही उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार था । धार्मिक स्थलों पर प्रवेश वर्जित था। निम्न वर्ग के लोगों को समानता का अधिकार नहीं था । उस समय उच्च वर्ग के लोग निम्न वर्ग के लोगों से काम करवा लेने के वाद मेहनताना राशि देने के बजाय कोड़ों से मारा करते थे । उस वक्त राजा हुआ करते थे ।जिनके यहां उच्च वर्ग की ही सुनवाई होती थी ।निम्न वर्ग का कोई अस्तित्व नहीं था । प्रभु यीशु को यह बातें पसंद नहीं थी ।इन बातों को सोच कर प्रभु यीशु दुखी हो जाया करते थे । इन गंदी कुरीतियों से उबरने के लिए प्रभु यीशु ने शीत- युद्ध शुरू कर दिया। उन्होंने गोर-गरीब लोगों की सेवा करना शुरू कर दिया ।वह इंसान जो अपनी लंबी बिमारी से परेशान था, उसे चंगा कर दिया। धिरे -धिरे लोगों के तकलीफों को दूर करते करते वो गरीबों के मसीहा बन गये । प्रभु यीशु सब से प्यार करते थे । और एक दिन ऐसा आया कि प्रभु यीशु के चमत्कारों की चमक उच्च वर्ग के लोगों तक पहुंची तो वे लोग प्रभु यीशु से जलन रखने लगे । और उनको कैसे नीचा दिखाया जा सके वह प्रयत्न करने लगे । कुरीति और कुप्रथाओं से दुखी प्रभु यीशु को एक दिन मंदिर जाने की इच्छा हुई ।जब वे मंदिर पहुंचे तो मंदिर के द्वारपालो ने उन्हें रोक दिया ।और कहा कि" आप के लिए मंदिर प्रवेश निषेध है" ।उस समय राजतंत्र इतना प्रबल था , कि मंदिर का सारा संचालन प्रबंधन राजतंत्र कार्य समिति ही किया करती थी । वो जिसे चाहती थी उसे ही मंदिर प्रवेश की इजाजत थी ।बाद में जब मंदिर के पुजारियों ने भी प्रवेश का विरोध किया ।और प्रभु यीशु को बहुत खरी-खोटी सुनाई । कहा कि "तुम तो अपने आप को ईश्वर मानते हो ।लोग भी तुम्हें अपना ईश्वर ही मानते हैं । ईश्वर जैसा चमत्कार करते हो । ईश्वर जैसा उपदेश देते हो । और अपने आप को भविष्य वक्ता भी मानते हो । तुम्हें मंदिर में प्रवेश का ख्याल क्यों आ गया । बहुत देर तक वाद संवाद होने के बाद भी जब प्रभु यीशु को प्रवेश नहीं मिला तो वह मंदिर के प्रांगण में ही स्थित एक पेड़ की छांव में बैठ गये ।और मंदिर के तरफ बड़े ही दयनीय दृष्टि से देखने लगें । और उनका यह कार्य जब तक जारी रहा , तब तक कि उनके चेहरे पर एक लम्बी सी मुस्कान नहीं फैल गई । वहां उनके पास स्थित प्रबंधन कार्य समिति के कर्मचारियों और पुजारियों को बडा आश्चर्य हुआ कि कि इस शख्स को हम लोग इतनी देर से खरी खोटी सुना रहे हैं।और यह शख्स नाराज होने के बजाय मुस्कुरा रहा है । कुछ देर बाद जब पुजारियों से नहीं रहा गया तो उन्होंने प्रभु यीशु मसीह से मुस्कुरा ने का कारण पूछा । तब प्रभु यीशु ने कहा " मैं जिस उद्देश्य से यहां आया था ।मेरा वह उद्देश्य पुरा हुआ । मेरे प्रभु ने स्वयं आकर मुझे दर्शन दिया । तुम्हें यकिन ना हो तो तुम स्वयं जाकर देख लो ।" तब पुजारियों का एक दल मंदिर में जाकर वहां देखता है तो देखते ही रह गया वहां से उनके भगवान की प्रतिमा गायब थी । उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ ।ऐसा कैसे हो सकता है । यह तो असंभव है। यह सब प्रभु यीशु मसीह का चमत्कार था ।ईश्वर होते हुए भी उन्होंने अपने आप को कभी ईश्वर नहीं कहा ।वह केवल यही कहते रहे गये कि मैं तो ईश्वर का पुत्र हुं । ( यह था प्रभु यीशु मसीह के चरित्र कथा का एक अंश जो एक अच्छे सुविचार के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत किया गया । दोस्तों यह सुविचार आपको अच्छा लगा हो तो कमेंट बॉक्स में दो शब्द जरूर लिखें । बहुत बहुत धन्यवाद लेखक----भरत गोस्वामी )
Nice thought
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