SHREE GANESHA श्री गणेशा A RILIGIOUS STORY

भगवान श्री गणेश  एक अद्भुत प्रतिभा के धनी हैं । बुद्धि विवेक में सबसे अग्रणीय है ।माता पार्वती और पिता भोले शंकर  के परम प्रिय पुत्र हैं । उनके ही  जन्म कि  यह कहानी बड़ी ही रोचक तथ्य है ।  भगवान श्री गणेश रिद्धि सिद्धि के दाता हैं ।और  वह  प्रथमेश है ।जिनकी पूजा अर्चना सबसे पहले  की जाती है ।                                       
                    
             

                                               

भगवान गणेश के जन्म को लेकर मानव लोक में
कई तरह की भ्रांतियां हैं । कई लोगों का कहना है कि सुर्य की  असहय गर्मी से  प्रभावित हो कर एक टुकड़ा अलग होकर वायु मंडल में गीरा  ।ज्यो ज्यो उसमें शीतलता आती गई ,त्यो त्यो उसका स्वरुप बनता गया ।कहीं ऊंचा ,कहीं नीचा,कहीं गहरा,कहीं समतल  जहां जैसा  आकार था वैसा ही स्थिर हो गया । जब वह पूरी तरह से शीतल हो गया तब वर्षा और वायु के कारण निचले हिस्से में पानी और बाकी हिस्से में जंगल उग आए । पानी ने समुद्र का रूप ले लिया और ऊंचाई पहाड़ के रूप में दिखाई देने लगा ।जल (वर्षा),वायु (हवा) अग्नि (गर्मी) समिश्रण प्रभाव से वातावरण बना। वातावरण से जलवायु बनी , जलवायु से मौसम ,मौसम ऋतुएं बनी और फिर ऋतुओं से दिन-रात और दिन रात से तिथि , तिथि से संम्वत  बना । वायु, अग्नि,जल, पृथ्वी और आकाश सभी के गुरूत्वाकर्षण  से एक  ऐसा  चमत्कार हुआ कि पृथ्वी पर  सहस्त्र जीव  पैदा हो गये  ।उन जीवों में एक जीव  मानव भी थी  । जिन्हें हम माता आदिशक्ति कहते हैं ।                                                                माता आदिशक्ति अकेले होने के कारण इधर उधर भटकते भटकते एक तालाब के किनारे पहुंची । उन्होंंने तालाब के पानी में अपना रूप देखा  ।उनको उनका रूप बहुत अच्छा लगा । न जाने उनके दिल में क्या विचार आया और उन्होंने तालाब से मिट्टी निकाल कर  अपने जैसा तीन मुर्तियां बनायी और तीनों में    प्राण प्रतिष्ठा किया । उन्होंने एक का नाम ब्रह्मा दुसरे का नाम विष्णु और तीसरे का नाम महेश रखा।अब जब वे तीनों सामान्य अवस्था में आये  । तो माता आदिशक्ति ने उनके सामने अपना विचार व्यक्त किया ।हमें अपनी संख्या को बढ़ाने के लिए  आपस में विवाह करना पड़ेगा । तब जाकर हम लोगों की संख्या बढ़ेगी ।ऐसा कह कर उन्होंने अपना विवाह का प्रस्ताव सबसे पहले ब्रह्मा जी के सामने रखा ।                                       ब्रह्मा जी ने यह कहकर टाल दिया कि "आप मेरे  मां  का स्वरूप है ।मै आपसे विवाह कैसे कर सकता हूं ।" इस पर क्रोध वश माता आदिशक्ति ने उन्हें अपने त्रिनेत्र से भष्म कर दिया ।वहीं प्रस्ताव उन्होंने विष्णुजी के सामने रखा । विष्णु जी ने भी वहीं कहा जो ब्रह्मा जी ने कहा था ।अत:  माता आदिशक्ति ने उन्हें भी भष्म कर दिया । अब बचे महेश जी  वे काफी होशियार थे । उन्होंने सोचा कि जब मैं भी इन्कार  करूंगा तो मेरा भी यही हश्र होगा । उन्होंने माता आदिशक्ति का प्रस्ताव मान लिया । उन्होंने माता आदिशक्ति से कहा "मैं आपके प्रस्ताव को स्वीकार करता हूं पर आपको भी मेरी कुछ शर्ते पूरी करनी होगी । " माता ने स्वीकार किया । महेश जी कि पहली शर्त थी ।कि आप मेरे दोनों भाइयों को जीवनदान देगी  ।मेरी  दुसरी  शर्त यह है कि यह त्रिनेत्र  मुझे दे देंगी ।माता ने उनकी दोनों शर्तें मान लिया । अब महेश जी को मालूम हो गया कि मैं माता आदिशक्ति के समान शक्तिशाली हो गया हूं ।तो उन्होंने वहीं कहा जो ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने कहा था ।आप मेरी मां स्वरूपा हैं ।मैं आपके के साथ विवाह कैसे कर सकता हूं ।आप 108 बार  स्वरूप धारण करें ।आपका 109 वहां स्वरूप को मैं वरण करूगा । "  तब  माता आदिशक्ति ने अपने 109 स्वरूप धारण किया  । माता का 109वां स्वरुप  माता पार्वती जी का था जिनसे भगवान महेश जी ने विधिवत विवाह किया । माता आदिशक्ति ने ब्रह्मा जी विष्णु जी को भी बचन दिया कि कालान्तर में मैं आप लोगों को  अपना पुत्र बनने का हो सौभाग्य प्रदान करूंगी ।                                ब्रह्मा जी  श्रीकार्तिकेय और विष्णु जी  श्री  गणेश के रूप में मेरे पुत्र कहलायेंगे ।इस तरह भगवान  श्री गणेश जी का जन्म हुआ । वे बुद्धि विवेक के स्वामी हैं।  एक बार भगवान श्री कार्तिकेय जी से उनसे शर्त लगाई । जो भी इस पृथ्वी का पांच बार परिक्रमा पहले कर लेंगा  वो श्रेष्ठ  माना जायेगा ।  भगवान श्री कार्तिकेय  का वाहन मोर है उन्होंने परिक्रमा शुरू कर दिया । अब भगवान श्री गणेश जी ने सोचा कि मेरा वाहन तो मुसक है  ।मैं तो  इनका मुकाबला नहीं कर सकता हूं ।तब उन्होंने अपनी बुद्धि विवेक का इस्तेमाल किया ।और भगवान  महेश जी और मां पार्वती को एक जगह बैठा कर  उनकी पांच बार परिक्रमा करनी शुरू कर दिया ।अब जब भगवान श्री कार्तिकेय जी ने पृथ्वी की पांच बार परिक्रमा पूरी कर ली तो वह श्री महेश जी के सामने आकर कहने लगे कि मैं श्रेष्ठ हूं । गणेश तो कहीं गया ही नहीं ।                         ‌‌‌‌‌‌‌‌‌                              ‌ ।     ‌‌‌ तब   भगवान  श्री महेश जी ने कहा ।" कार्तिकेय  गणेश श्रेष्ठ है । उन्होंनेे आप से पहले ही पृथ्वी की परिक्रमा कर लिया है ।माता पृथ्वी के समान है और पिता आकाश के समान है ।  इन दोनों की परिक्रमा गणेश ने कर लिया है । अतः गणेश श्रेष्ठ हुए  ।  पास में ही खड़े गणेश जी  भगवान कार्तिकेय जी को देखकर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे ।   दोस्तों यह कहानी कैसी लगी दो शब्द जरूर लिखें और अपने दोस्तों को शेयर जरुर करे। धन्यवाद आपका- लेखक-निर्देशक भरत गोस्वामी  

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