SURDASH KA NISCHAL KRISHANA PREM सूरदास का निश्चल कृष्ण प्रेम A RELIGIOUS STORY

भक्त वत्सल भगवान श्रीकृष्ण के गुणों का गुणगान जितना किया जाए उतना ही कम है । प्रभु अपने भक्तों का ध्यान कैसे रखते हैं । इसी तथ्य को दर्शाती, यह सत्य धटना भक्त और भगवान के निश्चल प्रेम  का एक अनूठा उदाहरण है।
                                                                      हमारे साधु संतों में से एक संत  सूरदास जी भी  थे। एक सुंदर प्रतिभा के धनी , सुंदर काया से युक्त शरीर, वाणी में इतनी मिठास कि जो सुुुने मंत्र मुग्ध होकर रह जाए । इतना सब कुछ होते हुए भी  उनके पास आंखेें नहीं थी । कुछ लोगों  कहना है कि वे  जन्म से अंंधे नहीं थे और कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से अंंधे थे ।उनके प्रति लोगों में कई  धारणाए  है । पर उनकी रचनाओं को देख कर ये जरूर लगता है कि वे भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी थे ।   जो रचनाएं भगवान  श्रीकृष्ण के बारे में लिख दिया है ।उससे यही प्रतीत होता है कि वे भगवान श्रीकृष्ण से अगाध प्रेम करते थे । उन्होने अपनी रचनाओं में भगवान श्रीकृष्ण के   बाल  जीवन के इतना सुन्दर चित्रण किया है कि कोई आंख वाला  भी  उतना सुन्दर चित्रण नहीं कर सकता । उन्होने अपनी बाल लीलाओं में एक छोटी सी छोटी बात  का भी   इतना मोहक चित्रण  किया है जो लोगों के  मन  को मोह लेता है ।                 
उनकी रचनाओं को पढ़कर लोग आश्चर्य चकित होते हैं कि एक नेत्रहीन व्यक्ति  भगवान श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित इतना मोहक और सुंदर वर्णन कैसे कर सकता है ।  ऐसा कोई व्यक्ति तभी सफल हो सकता है जब उसके आराध्य की उस पर असीम कृपा हो । वे स्वभाव से  बहुत ही मस्त थे ।जहां भी जाते लोग उनके भजन कीर्तन को सुनने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे । उनकी ख्याति दिनों दिन बढ़ती जा रही थी ।दूर दूर से लोग उनके भजन को सुनने के लिए आते ।जब वे भजन गाते थे तो वहां  का वातावरण उनके मधुर आवाज से गूंज उठता था । ऐसा करते कराते बहुत दिन बीत गए।    ‌‌‌                                               उनके जिन्दगी में एक बुरा समय आया ।   अंधेरी रात थी। सुनसान जगह थी ।  सूरदास जी कहीं चले जा रहे थे । रास्ते में एक कुआं आया नेत्रहीन होने के कारण उनको आभास नहीं हुआ और वे उस कुएं में गीर पड़े । जीवन में पहली बार ऐसा हुआ था इसलिए सूरदास जी घबरा गये । पानी के सतह पर हाथ पैर चलाते  चलाते उनकी हिम्मत ज़बाब दे रही थी । सुनसान जगह पर कई बार आवाज देने केबाद भी कोई सहायता की उम्मीद नहीं दिख रही थी ।  तभी उनके कानों में एक मिठी आवाज सुनाई दी "अपने हाथ आगे बढ़ाओ । "और उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ाया ।उस व्यक्ति ने उन्हें कुएं से बाहर निकाला और चुपचाप बिना कुछ बोले वहां से जाने लगा । सूरदास जी को उसके जाने का यहसास हुआ  तो सूरदास जी असमंंजस में पड़ गये,  इतना गहरा कुआं और बिना किसी सहारे के केवल हाथ से तो उसमें से निकालना कोई साधारण  बात नहीं है ये कृत्य कोई  साधारण व्यक्ति का नही हो सकता है । यह  कृपा जरूर मेरे प्रभु भगवान श्री कृष्ण की ही हो सकती है । उनके मन में यह आभास आते ही  उनके आंखों से आंसूओं की धारा बहने लगी ।                                                       उनके मुख से अनायास ही निकल पड़ा "हाथ  छुड़ाए जात हो,निबल जानि के मोहि । " "और  उन्होंने उस तरफ अति  दीन भाव से देखा जिस तरफ  प्रभु के पद चाप जाते हुए सुनाई दे रहे  थे ।उनका रोम रोम प्रभु भगवान श्रीकृष्ण के इस आगाध प्रेम  का यहसास करके पुलकित हो चुका था।दीन भाव से अपने आप को कोस रहे थे कि मैं अपने  प्रभु के इतना निकट स्थित होकर भी  उनके इस कृपाको समझ नहीं पाया ।     करूणानिधान भगवान श्रीकृष्ण  सूरदास जी की इस ह्रदय स्पर्शी विवशता को समझ गये और उनसे सूरदास जी का  दुःख देखा नहीं गया । अपार  प्रेम के आधीन होकर प्रभु भगवान श्रीकृष्ण ने सूरदास जी को गले से लगा लिया ।भक्त और भगवान दोनों के इस पवित्र मिलन को प्रकृति देख रही थी । दोनो प्रेम के अथाह सागर में गोते लगा रहे थे । दोनो की आंखें सजल थी ।जब प्रभु सहज  मुद्रा में आये तो  उन्होंने सूरदास जी से कहा"मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूं  ,।इसे स्वीकार करो ।मैं तुम्हें तुम्हारी दृष्टि देना चाहता हूं ।"इस पर सूरदास जी भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में गीर पड़े ।और विनय पूर्वक कहा  "प्रभु मेरे साथ ऐसा अन्याय मत किजिए, आपके प्रति जो छवि मेरे मन मंदिर में बसी है वहीं सुंदर छवि मेरे मन मंदिर में बसे रहने दिजीए  --------।           ‌‌‌                                  दोस्तों यह कहानी आप को कैसी लगी दो शब्द जरूर लिखें ताकि हमारा मनोबल बढ़ सके और अपने दोस्तों को शेयर जरुर करे। धन्यवाद                               

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